Book Title: Nirgrantha-1
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 333
________________ अतुल त्रिपाठी Nirgrantha ओर मुख किये हाथियों का अंकन एक जगह वेदीबंध कुंभ कर्ण पर हुआ है (चित्र ७)। यहाँ दक्षिणी-पूर्वी कर्ण के जंघा के दक्षिणी मुख पर चतुर्भुज बलराम का अंकन है। दक्षिणी-पश्चिमी कर्ण के दक्षिणी मुख पर दो देवियों का अंकन है जिन पर क्रमश: “विमला" व "कान्ती" नाम खुदा हुआ है। पश्चिमी भाग पर दो चतुर्भुजी अज्ञात देवीयों का अंकन है। उत्तरी वेदीबंध कुंभ के भद्र भाग पर पश्चिमी मुख पर द्विभुजी गणेश का नृत्यमुद्रा में अंकन है, साथ ही एक सुन्दर मकर-प्रणाल भी संलग्न है (चित्र ८)। उत्तरी मंदिर के गर्भगृह की चतुर्शाखा द्वारशाखा - पत्रशाखा, रूपशाखा, स्तंभशाखा व रूपशाखा से मिलकर बनी है। पत्रशाखा वल्ली से अलंकृत है जो कि नीचे मयूर के मुख से उद्गमित होता है। पत्रशाखा के निचले भाग पर कलशधारिणी स्त्रियों (गंगा ? एवं यमुना ?) का अंकन है। पेद्या पर चतुर्भुज प्रतिहारों का त्रिभंग में अंकन है व इनके दोनों और चामरधारिणी स्त्रियों का अंकन है। द्वार का उदुम्बर भाग दो भागों में विभाजित है, जिसके दोनों ओर निकले हुए ग्रासमुखों का अंकन है। उदुम्बर के दोनों कोनों पर पेद्या के नीचे सर्वानुभूति का बांयी ओर व अम्बिका का दाँयी ओर ललितासन मुद्रा में अंकन है। उत्तरंग पर पत्रशाखा जारी रहता है। पत्रशाखा के ऊपर मालाधारी विद्याधरों का अंकन है जो कि ललाटबिम्ब की ओर मुख किए हैं। ललाटबिम्ब पर पद्मासनासीन जिन का अंकन है। दक्षिणी मंदिर की द्वारशाखा भी लगभग इसी प्रकार की है परन्तु इसके स्तंभशाखा के दोनों ओर बकुलमाला है। उत्तरी मंदिर के गर्भगृह के भीतर पार्श्वनाथ की श्याम व बॉयी एवं दांयी ओर क्रमश: जिन आदिनाथ व संभवनाथ पद्मासनासीन आधुनिक प्रतिमायें हैं। उत्तरी मंदिर की छत पर पाँच स्तर व मध्य में पद्मशिला है। दक्षिणी मन्दिर के गर्भगृह की दूसरी स्तर हंसमाला रूप में है व मध्य में पद्म का अंकन है। दक्षिणी मन्दिर की प्राग्नीव का समतल वितान पर अर्द्धपद्मों का अंकन है जो कि माणिक्य की किनारी युक्त है। गूढ़मंडप का वितान पर बारह स्तरयुक्त है व बीच में पद्मशिला है। दक्षिणी मन्दिर की द्वारशाखा विशिष्ट है जिसकी कुछ गर्भगृह से साम्य है। गूढ़मंडप से लगी नौचौकी बारह मिश्रक स्तंभो पर आश्रित है। दक्षिणी मन्दिर की एक-दो चौकियों को छोड़कर बाकी पर कुछ विशेष अलंकरण नहीं है। नौचौकी से लगा हुआ चबूतरा पीठ पर आधारित है। दक्षिणी मन्दिर के पूर्वी सोपान के निकट दो उच्चालक-स्तंभो के मध्य आंदोल-तोरण (चित्र ९) है। आंदोल-तोरण पांच खंड से मिलकर बना है, जिसमें तीसरा भारपट्टक को छूता है। हर खण्ड के नीचे लुंबिका निकली हुई है। भारपट्टक" पर पार्श्वनाथ पद्मासनासीन प्रतिमा रही होगी जो अब विद्यमान नहीं है। जहाँ तक उपरोक्त दोनों मन्दिरों का प्रश्न है, स्थापत्य की शैली की दृष्टि से ये दोनों मन्दिर निश्चित रूप से १५वीं शताब्दी के प्रतीत होते है। गूढ़मंडप के दक्षिण कटि-भद्र के दॉयी ओर एक द्विभुजी प्रतिमा पर भ्रष्ट भाषा में सवनु १६१२ प्रषकृसुदी १३ सच जाल प्रसृतकीटक व उत्तरी भद्र की प्रतिमा के नीचे संवत् १५६४ वर्षा अंकित है। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि मन्दिर, खासकर गूढ़मंडप भाग पुनःनिर्माण की प्रक्रिया से गुजरा। चित्रसूची :१) चित्र १ - उत्तर पार्श्वनाथ मन्दिर, पश्चिमी भाग। चित्र २ - दक्षिणी पार्श्वनाथ मन्दिर, पश्चिमी भाग। ३) चित्र ३ - उत्तरी पार्श्वनाथ मन्दिर, मूल प्रासाद, दक्षिणी भाग। ४) चित्र ४ - दक्षिणी पार्श्वनाथ मन्दिर, मूल प्रासाद, दक्षिणी पश्चिमी भाग। २) Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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