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Vol. I-1995
थारापद्रगच्छ का संक्षिप्त...
वाचक हरिगुप्त [किसी वैराग्यप्रधान कृति के कर्ता, तोरमाण के गुरु, मृत्यु प्राय:
| ई. स. ५२९] कवि देवगुप्तसूरि [सुपुरुषचरिय के रचनाकार]
शिवचन्द्रगणिमहत्तर[भिल्लमाल में स्थिरवास]
नाग
वृन्द
दुर्ग
मम्मट
अग्निशर्मा
वटेश्वर क्षमाश्रमण [आकाशवप्रनगर में . जिनमंदिर के निर्माता]
तत्त्वाचार्य
यक्षमहत्तर
दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि [वि० सं० ८३५ ई० स०७७८ / शकसं०७०० में] कुवलयमालाकहा के रचनाकार
कृष्णर्षि
जयसिंहसूरि [वि० सं० ९१५ / ई० स० ८५९ में धर्मापदेशमालाविवरण के रचनाकार
उक्त आधार पर वटेश्वर क्षमाश्रमण का समय प्राय: ई० स०६७५-७२५ के बीच मान सकते हैं। चूंकि वे अपने समय के एक प्रभावक आचार्य रहें होंगे, अत: ११ वीं शती के प्रारम्भ में थारापद्रगच्छीय पूर्णभद्रसूरि द्वारा उन्हें अपने पूर्वज के रूप में स्मरण करना यही सूचित करता है कि वटेश्वर क्षमाश्रमण के ही किसी शिष्य की परम्परा आगे चलकर थारापद्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुई, जिसमें बाद में प्राय: ५वीं पीढ़ी के करीब ज्येष्ठाचार्यादि हुए होंगे। थारापद्रगच्छ से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्यों का वर्गीकरण- १. प्रतिमालेख, २. शिलालेख
इसमें जिनप्रतिमालेखों को दो भागों में बांटा जा सकता है - क. थारापद्रगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें एवं उन पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण ख. थारापद्रगच्छीय मुनिजनों की प्रेरणा से इस गच्छ के श्रावकों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें एवं उन पर उत्कीर्ण लेखों
का विवरण
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