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शिवप्रसाद
वटेश्वर
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ज्येष्ठाचार्य
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शांतिभद्रसूरि ( प्रथम )
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सिद्धान्तमहोदधि सर्वदेवसूरि
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शालिभद्रसूरि ( प्रथम )
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शांतिभद्रसूरि (द्वितीय)
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पूर्णभद्रसूरि (वि० सं० १०८४ / ई० स० १०२८ में रामसेन स्थित जिनालय में उपर्युक्त प्रतिमा के प्रतिष्ठापक)
थारापद्रगच्छ से सम्बद्ध कालक्रम में द्वितीय प्रमाण है वि० सं० १११० / ई० स० १०५४ में आचार्य पूर्णभद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख । वर्तमान में यह प्रतिमा अहमदाबाद में झवेरीवाड़ के एक जिनालय में है। मेहता ने लेख की वाचना इस प्रकार की है :
Nirgrantha
थारापद्रपुरीयगच्छगगनोद्योतक भास्वानभूत् सूरिः सागरसीम विश्रुतगुणः श्री शालिभद्राभिधः ।
तच्छिष्य समजन्यज्ञानवृजिनासंग: सतामग्रणीः सूरि : सर्वगुणोत्करैकवसतिः श्री पूर्णभद्राह्वयः ।।
तस्य श्री शालिभद्रप्रभु रलमकृतोच्चैः पदपुण्यमूर्तिः
विद्वच्चूडामणे : स्वेशसि (शि) विस (श) दयशो व्यानशेवस्व विश्वम् । स्थाने तस्यापि सूरि : समजनि भुवनेऽनन्यसाधारणानां
लीलागारं गुणानामनुपम महिमा पूर्णभद्राभिधानः ॥ श्री शालिसूरिनिजगुरुपुण्यार्थमिदं विधापित तेन । अजितजिनबिंबमतुलं नंदतु रघुसेन जिनभु (भ) वने ॥ संवत् १९१० चैत्र सुदि १३
इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य पूर्णभद्रसूरि का शालिभद्रसूरि के पट्टधर के रूप में उल्लेख है । लेख से ज्ञात होता है की यह प्रतिमा भी रामसेन स्थित राजा रघुसेन द्वारा निर्मित जिनालय में ही स्थापित की गयी थी । इस लेख के अनुसार गुर्वावली इस प्रकार है :
शालिभद्रसूरि I
पूर्णभद्रसूरि (वि० सं० १११० / ई० स० १०५४ में राजा रघुसेन द्वारा निर्मित जिनालय में प्रतिमा प्रतिष्ठापक)
साहित्य स्रोतों में देखा जाये तो थारापद्रगच्छ के नमिसाधु द्वारा प्रणीत दो कृतियाँ मिली हैं :
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