Book Title: Nirayavalikasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 340
________________ . ३४४ . . . निरयावलिकामत्रे मारगिग्वरप्रचुरः अप्यरोगणदेवसंघ-चारण विद्याधरमिथुनसन्निचीर्णः, नित्यक्षणकः, दगाहवरवीरपुरुषत्रैलोक्यबलबतां मोमः शुभः प्रियदर्शनः मुरूपः प्रासादीयो यावत् प्रतिरूपः । तस्य ग्बलु रैवतकम्य पर्वतम्य अदृरमामन्ते, अत्र बलु नन्दनवनं नाम उद्यानम् अभवत्, सर्वत्रत पुप्प० यावद् दर्शनीयम् । तथा जिसमें अनेक तट-किनारे और कटक-पर्वतका रमणीय भाग, तथा विवर-सुन्दर गुफाएँ और अवझर-सुन्दर झरने एवं प्रपात-जहाँ झरना गिरता है वह स्थान, तथा प्रारभार पर्वतका झुका हआ रम्य प्रदेश और अनेक सुन्दर गिन्वर विद्यमान थे। वहा अप्सरागण देवगण और विद्याधरांके युगल आकर क्रीडा करते थे। और जहा जङ्घाचरण विद्याचरण सुनि भी ध्यान सोनादिके लिये निवास करते थे। तथा वह पर्वत उत्सवका एक रमणीय स्थल था। और नेमिनाथ भगवानसे युक्त होने के कारण तीनों लोकमें श्रेष्ठ बलवीर दशाहका बह पर्वत मोम-आहाद उत्पन्न करनेवाला था, शुभमंगलकारी था प्रियदर्शन-नत्रोंको मुख देनेवाला था, मुरूप-सुहावना था, प्रमादीय-मनको प्रसन्न करनेवाला था. दर्शनीय-देखने योग्य था, अभिरूप-अपनी सुन्दरताके कारण चमकता था, प्रनिरूपदर्शक जनोंके हृदय में प्रतिविम्बित हो जाता था। उस रैवतक पर्वतके समीपमें नन्दनवन नामक उद्यान था, जो सभी ऋतुओंके फूलोंसे सम्पन्न સુશોભિત હતિ તથા જેમાં અનેક તર=કિનારા અને વ=પર્વતના રમણીય ભાગ तथा विवर- २ शुभम ने अवझर-२१२ 271, प्रपातम्या Bety! ५३ छे ते स्थान, तथा मारमार-तना नभेला समय माग भने सु१२ रा. વિદ્યમાન હતા ત્યા અપરાગણ, દેવગણ, અને વિદ્યાધરોના જોડલા આવીને કીડા કરતા હતા અને જ્યા જ ઘાચરણ, વિદ્યાચરણ મુનિ પણ ધ્યાન, મન આદિ માટે નિવાસ કરતા હતા તથા આ પર્વત હમેશા ઉત્સવનું એક રમણીય સ્થાન હતું અને નેમીનાથ ભગવાનથી યુકત હેવાથી રણે લેકમાં શ્રેષ્ઠ બલવીર શાહને તે પર્વત सेोम= माता सन्न ४२वापाडतो, शुभ-भvin sो प्रियदर्शन-नेत्राने सुम आपापा तः, मुरूप=३पा मा२ नो, प्रासादीय-मनने प्रसन्न ४२वायाजा तो. दर्शनीय याय हतो, अभिरूपपोताना सुदरताने दीधे न्यभरत ता, प्रतिरूपनारन सयभा छ।५ पा3 तेवा हो, (प्रतिमिति थ જતે હતો.) તે રેવત પર્વતની પાસે નન્દનવન નામે એક બગીચે હતું. જે બધી अतुम्मामा वायी संपन्न वाथी हर्शनीयत. ते नन्नवान मायामां-मुरमिय:

Loading...

Page Navigation
1 ... 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437