Book Title: Nirayavalikasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 355
________________ सुन्दरबोधिनी टीका वर्ग ५ अ. १ निषधकुमारवर्णनम् ३५९ मूलम्-तपणं अरहा अरिटृनेमी अण्णया कयाइं वारवईओ नयरीओ जाव बहिया जणवयविहारं विहरइ | निसढे कुमारे समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ । तपणं से निसढे कुमारे अण्णया कयाइं जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव दब्भसंथारोवगए विहरइ । तरणं निसदस्स कुमारस्य पुवरत्तावरत० धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूचे अज्झथिए० धन्ना णं ते गामागर जाव संनिवेसा जत्थणं अरहा अरिनेमी विहरइ । धन्ना णं ते राईसर जाव सत्थवाहप्पभईओ जे णं अरिट्टनेमिं वंदति नमसंति जाव पज्जुवासंति, जइ णं अरहा अरिनेमी पुत्राणुपुविं० नंदणवणे विहरेजा तोणं अहं अरहं अरिटृनेमिं वंदिना जाव पज्जुवा - वरदत्त पूछते है हे भदन्त ! क्या यह निषधकुमार आपके समीप प्रव्रजित होगा ? भगवान कहते हैं— हाँ; वरदत्त ! यह निषधकुमार अनगार बन सकेगा । वरदत्त कहते हैं हे भदन्त ! आप जो कहते हैं वह सत्य ही है; ऐसा कह कर वरदत्त अनगार आत्माको तप संयमसे भावित करते हुए विचरने लगे ॥ २ ॥ વરદત્ત પૂછે છે— હે ભદન્ત 1 આ નિધારી આપની પાસે પ્રજિત થવામાં સમર્થ છે ? ભગવાન કહે છે त! हा, आ निषयकुमार अनगार मनवामां समर्थ छे વરદત્ત કહે છે હુંભદન્ત ! આપ કહેા છે તેમજ છે એમ કહીને વરદત્ત અનગાર આત્માને तथ-सयम व लावित १२तां वियरचा साग्या. - ( २ ) 21

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