Book Title: Nirayavalikasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 434
________________ निरयावलिका मृत्रे जातानियोचिनादययमन्निवेशरन्ति, सर्वाणि-मकलानि अगानि-अज्यतेच्या या प्रागी यम्नानि मन्तकादारभ्य चरणान्तानि यस्मिन शरीरे तन मनोमान्ममा पनिपूर्णमानमर्वाङ्गम्, अत एव तादृशं मुन्दरमद्भवपुर्यस्याः मा नयी1, 'गनी नि गगी चन्द्रग्नदत सौम्यः प्रासादक आकार स्वरूपं या मा. पवना कमनीया. चिनारिणी, 'प्रिय'ति मियदर्शकजनमनासादर दर्गनमालारनं यस्याः मा प्रियदर्शना, यत्तु-दर्शनं रूपमिति व्यारपान नगर्योनगवान विशेषणपोनरत्तचापत्या हेयमेव । यन गवंविशेषणविशिष्टाऽत. एवम्याम गनिमाविपचण्यवती. पण लावग्यस्याप्युपत्रसितत्वात् ॥१०॥ . मल्-तत्थणं चंपाय नगरीप नेणियस्स रन्नो भजा कृणियम रन्नो चुल्हमाउया काली नामं देवी होत्था, सोमालपाणिपाया जाव सुरुवा ।। ११ ।।। है ! हम मान उन्मान और प्रमाणले युक्त होने के कारण सुजात पागोय असपत्रांकी रचनासे सुन्दर) जो मङ्ग-जिमके द्वारा प्रागी मान होता है-किमी आकृतिक रूपम दिखाई देता है उसे, अर्थाने लेकर मस्तक नक अवयवाको अंग कहते हैं। इन मय अंगार मुन्दर अंगवाली महारानी पद्मावनी थी। _ मिमीमामा चन्द्रमांक समान शान्न आकारवाली थी 'ना' जो यामनीगा-चित्त हरण करनेवाली हो उस स्त्रीको 'कान्ता' कहते हैं। विपणा जिमकी दृष्टि दर्शकों के मनमें आसाट उत्पन्न करती सो र श्रीमी प्रियदर्शनाकहते है। इस प्रकार उक्तगुणविशिष्ट हानेर-मार गच्या अंमलप लावनी थी ।। १० ॥ ....... ... . (याय५ Rumaril नायी ११.) ... Ar : - नना ३५मा दणार . .. .. मीना यात स भगाथा १६. . . . . . . . पानी पनी 'गमा १४.सानात savl ती 'कंवा गनी श्रीन. 'कान्ता' परटंग Art 1 तीन kin at : २ : १.८, गु...22त 'मुरूपा'

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