Book Title: Nirayavalikasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 363
________________ - मुन्दरबोधिनी टीका वर्ग ५ अ. १ निषधकुमारवर्णनम् ३६७ अच्छत्रकः, अनुपानत्का, फलकशय्या, काष्टशय्या, केशलोचो, ब्रह्मचर्यवासः, परगृहप्रवेशः, पिण्डपातः, लब्धापलब्धः, उच्चावचाश्च ग्रामकण्टका अध्यास्यन्ते, तमर्थमाराधयिष्यति, आराध्य चरमैरुच्छ्वास-निःश्वासैः सेत्स्यति, भोत्स्यते, यावत् सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति । एवं खलु जम्बूः ! श्रमणेन भगवता महावीरेण यावत्संप्राप्तेन यावत् निक्षेपकः ॥ ३ ॥ ॥ प्रथममध्ययनं समाप्तम् ॥ १ ॥ टीका-'तएणं अरहा' इत्यादि । यस्यार्थ-यन्मोक्षप्राप्त्यर्थं क्रियते नग्नभावः अचेलत्वं परिमितवस्त्रधारित्वमित्यर्थः, मुण्डभावः दीक्षितत्वम् । अस्नातका देशसर्वस्नानवर्जितः स्वात्मेति शेषः, अदन्तवर्णकः दन्तवर्णो-दन्तानामुज्ज्वलीकरणं स एव दन्तवर्णकः, अ लिदन्तशाणकाष्ठादिभिर्दन्तघर्पणं, न दन्तवर्णकोऽदन्तवर्णकः दन्तोज्ज्वलीकरणव्यापारराहित्यम् । अच्छत्रका छत्ररहितः । अनुपानका पादत्राणरहितः, उपलक्षणमेतत्-शकटशिविकातुरगादि वाहनानामपि फलकशय्यां-फलकं प्रतिलमायतकाष्ठं तद्रूपा शय्या (पाटा) इति भाषायाम् । मुण्डत्व, अस्नातक देशतः और सर्वतः स्नान वर्जन, अदन्तवर्णक अलि दातन आदिसे दांतोंको स्वच्छ न करना और मिसी आदिसे दांतको न रंगना, अच्छत्ररजोहरण आदिका भी छत्र धारण नही करना, अनुपानत्क-पगरखी तथा मौजे आदिको नहीं पहिनना, एवं गाडो शिबिका और घोडा आदिकी सवारी नहीं करना, फलकशय्याकाण्ठ आदिके पाटपर सोना, काष्ठशय्या काष्ठपर सोना, केशलोच-अपने या दूसरे साधुओंके हाथसे केशोंका लुंचन करना-कराना । ब्रह्मचर्यवासविषय सुख परित्याग रूप ब्रह्मचर्यमें स्थिर होना, परगृहप्रवेशभिक्षाके लिए गृहस्थोंके घरमें जाना, पिण्डपात-भिक्षाग्रहण, लब्धापलब्ध-लाभ भुत्प, अस्नातकशित मने सवत स्नान वन (न न), अदन्तवर्णक मागणी दन्तशाण-te (133) माहिया हाताने २१२७ न ४२वा तया भी माया हातन न २१। अच्छत्रता मानुि पy छत्र धारण न ४२, अनुपानत्कપગરખા અને મોજા આદિ પગમાં ન પહેરવા, વળી ગાડી પાલખી અને ઘોડા આદિની सवारी न ४२वी, फलकशय्या=1४1नी(3108नी नावटी)पाट ५२ सूर्यु काप्ठशय्यासा1 ५२ सूबु केशलोच-पोताना मी साधुम्माना डायथी शानु सुन्यन ४२७४२॥१वु, ब्रह्मचर्यवास-विषयसुम परित्याग३पी प्राय भां स्थि२ २९, परगृहमवेश मिक्षा भाटे स्थाना घरमा ४, पिण्डपात-मिक्षाAY, लब्धापलब्ध-बाल मन

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