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(५) शब्द नय :
शब्द नय हरेक शब्दो में हरेक अर्थकी वाचकता शक्ति का स्वीकार करता है । 'सर्वः सर्वार्थवाचकः' इस नय की उद्घोषणा है । विशेषतः विभिन्न शब्द एक अर्थ के वाचक होते है और विभिन्न अर्थ एक शब्द से वाच्य बन सकते है यह बात शब्द नय को मान्य है । पंकज-कुमुदकमल इत्यादि शब्द एक ही अर्थ के वाचक है । यह इस नय का अभिप्राय है । (६) समभिरूढ नय :
प्रत्येक शब्द को अपनी स्वतंत्र वाचकता शक्ति है, यह दृष्टि समभिरूढ नय की है । व्युत्पत्त्यर्थ से भले ही पंके जायमान अन्य पदार्थ हो, लेकिन पंकज पुष्पविशेष का ही वाचक है । इस तरह कुमुद उस को कहेंगे जो रात्रि को आनंदित करे । पंकज-कुमुद-कमल ये प्रत्येक पद की अर्थवाचकता शक्ति भिन्न भिन्न है।
(७) एवंभूत नय : .
प्रत्येक वस्तु का अपना धर्म और अपनी क्रिया होती है ।
वस्तु के होने के उद्देश्य को 'अर्थ' कहते है । अर्थपूर्ति के लिये वस्तु की वर्तना को अर्थक्रिया कहते है । वस्तु का नामाभिधान भी इसी अर्थक्रिया के आधार पर होता है । एवंभूत नय का अभिप्राय है कि वस्तु जब अपनी नियंत अर्थक्रिया में प्रवर्तमान है तब ही उसके वाचक
शब्द का प्रयोग सान्वर्थ हो सकता है, अन्यथा नहीं । पंकजपद पंकजनामक पुष्पविशेषरूप अर्थ का वाचक उसी समय होगा जब वह पंके जायमान हो । उससे पूर्व या पश्चात् वह पंकजपदवाच्य नहीं है । यह नय तमाम औपचारिकता को पीछे रख के शुद्ध वस्तुतत्त्व को देखता है । इसीलिये सूक्ष्मतम है ।
नयो की यह संक्षिप्त तथा स्थूल परिभाषा है । सातो नय भले ही एक दूसरे से भिन्न हो, या फिर विरुद्ध लगते हो लेकिन अन्तर्गत रूप से प्रत्येक