Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 5
________________ है की जो वाचक वर्ग इस प्रकार के साहित्य के लिये उत्सुक है, तथा इसे समझने की कक्षा में प्राप्त है उन्हें हिन्दी समझने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए तथा ग्रंथ समझ ने में सौकर्य भी रहेगा। अधिक, हिन्दी अनुवाद के कारण विशाल वाचकवर्ग इस ग्रथ का लाभ ले पाएगा। 'डितवर्य श्री दुर्गानाथ झा मैथिली विद्वान होने पर भी कई वर्षों से अमदावाद में आ बसे हैं । प्राचीन और नव्यन्याय के तो वे दिग्गज विद्वान है । अनेक जैन साधु-साध्वी को कई वर्षों से तर्कशास्त्र के आकर ग्रन्थों को पढ़ा रहे हैं । जैन साधुओं के परिचय से जैनन्याय से भी वे सुपरिचित हो गये हैं। उपा० श्री यशोविजय म० के ग्रन्थों को वे आदर की दृष्टि से देखते हैं । अतः उन का किया हुआ यह भावानुवाद विवरण अनेक दृष्टि से उपादेय बनेगा इस में कोई संदेह नहीं है । पीडितजी ने बडे कौशल से इस कार्य को सम्पूर्ण किया है एतदर्थ हमारे तो वे बडे धन्यवाद के पात्र हैं। पू. मुनिराज श्री जयसुदर विजयजी महाराज ने श्रीमदुपाध्यायजी के स्वहस्तादर्शप्रति के अनुसार मूल ग्रन्थ को शुद्ध करने में. हिन्दी विवेचन के संशोधन में और उस के सम्पादनादि में पर्याप्त परिश्रम किया है-इस में कोई संदेह नहीं है। चारित्रसम्राट कर्मसाहित्यनिष्णात सिद्धान्तमहोदधि स्व. पूज्यपाद आचार्यभगवत श्री विजय प्रेमसूरीश्वरजी म. सा. हमारे प्रातः स्मरणीय गुरुवर्य है । आपश्री की हमारे संघ प्रति अपार कृपा रही है। वस्तुतः आप की प्रेरणा के बल पर ही हमारा संघ धर्म आराधना के स्थान पर प्रतिष्ठित है। आपश्री के पट्टालंकार १०८ वर्धमान तप ओली के आराधक पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय भुवनभानु सूरिजी म. सा. के भी हमारे संघ के ऊपर अगणित उपकार हैं । आपश्री के शुभाशिष के कारण ही प्रस्तुत ग्रंथ सफलता से प्रकाशित हो रहा है । आपश्री के प्रशिष्य एवं शान्तमूर्ति स्व. पू. मुनिराजश्री धर्म घोषविजयजी म. सा. के गीतार्थ शिष्टरत्न पन्यासप्रवर प. पू. जयघोषविजयजी म. सा. ने सदा हमारे संघ को रत्नत्रयी की आराधना के लिये अप्रमत्त भाव से प्रेरणा दी है । बहुश्रुत विद्वान् प. पू. मुनिराजश्री जयसुदरविजयजी म.सा. को हम कैसे भूल सकते हैं ? आपश्री प्रौढप्रज्ञा के कारण स्याद्वादकल्पलता, सन्मतितर्क प्रकरण, उपदेशरहस्य आदि अनेक जटिल ग्रंथों के सफल संशोधक-सपादक या अनुवादक हैं । आपश्रीने इस ग्रंथ का भी संशोधन संपादन बडी कुशलता से परिपूर्ण किया है । आपश्री के उपकार का ऋण अदा करने के लिये हम असमर्थ हैं। जिन की प्राथमिक आर्थिक सहाय से पडितजी ने इस ग्रन्थ का निश्चिन्तरूप से विवेचन कार्य सिद्ध किया है वे-आराधनाभुवन जन संघ (दादर-मुबई) ट्रस्ट के सदस्य भी धन्यवादाह हैं। . इस ग्रंथ के सुंदर मुद्रण के लिये श्री अश्विनभाई, सरस्वतीकंपोझवाले धन्यवाद के पात्र है । इस ग्रंथ में जिन का भी प्रत्यक्ष–परोक्ष रूप से सहयोग प्राप्त हुआ है उन सभी को हार्दिक धन्यवाद । मोक्षसाधना के मार्ग में यह ग्रंथ पाथेय है । चतुर्विधसंघ इस पाथेय को लेकर सुखपूर्वक ध्येय तक पहच पावे यही मंगल भावना प्रीयन्तां गुरवः । हर्षद संघबी सेवकश्री अंधेरी गुजराती जैन संघ

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