Book Title: Nandisutram Avchuri
Author(s): Devvachak, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 161
________________ नन्दिसूत्रम् ॥१५९॥ इझं सपज्जवमित पन्नविचंति पापडच अणाइओ कालओ, भावओ, तत्थ दवओ णं सम्मसुयं एगं पुरिसे पडुच्च साइ सपज्जवसिअं, बहवे पुरिसे अवचूरिय पडुच्च अणाइअं अपजवसि। खेत्तओ णं पंच भरहाई पंच एरंवयाई पडुच्च साइअंसपज्जवसि समलं कृतम् पंच महाविदेहाइं पडुच अणाइअं अपज्जवसिअं । कालओणं उस्सप्पिणिं ओसप्पिणिं च पडुच्च साइअं सपज्जवसिअं नोउस्सप्पिणि नोओसप्पिणिं च पडुच अणाइअं अपजवसि। भावओ णं जे जया जिणपन्नत्ता भावा आपविजंति पन्नविज्जति परूविजंति दंसिर्जति निदंसिर्जति उवदंसिर्जति तया भावे पडुच्च साइअं सपन्जवसिखाओवसमिअं पुण भावं पड्डुच्च अणाइअं अपज्जवसि। अहवा भवसिद्धियस्स सुयं साइअं सपज्जवसिअंच, अभवसिद्धियस्स सुयं अणाइयं अपज्जवसियं च, सबागासपएसग्गं सवागासपएसेहिं अणंतगुणिअं पञवक्खरं निष्फजइ, सव्वजीवाणं पि अणं अक्खरस्सअणंतभागो निबुग्घाडिओ। 'जइ पुण सोऽवि आवरिजा तेणं जीवो अजीवत्तं पाविज्ञा। सुदुवि मेहसमुदए होइ पभा चंदसूराणं' । सेत्तं साइअंसपजवसिअं, सेत्तं अणाइअं अपज्जवसिअं सुयं । अथ किं तत् सादिसपर्यवसितं अनादिअपर्यवसितं च ?, तत्र सह आदिना वर्तते इति सादि, तथा पर्यवसानं पर्यवसितं, I भावे क्तप्रत्ययः, सह पर्यवसितेन वर्तते इति सपर्यवसितं, आदिरहितं अनादि, न पर्यवसितं अपर्यवसितं, आचार्य आह-इति एतत् 11 ॥१५९॥ द्वादशांग मणिपिटकं व्यवच्छित्तिप्रतिपादनपरो नयो व्यवस्थितिनयः, पर्यायास्तिकनय इत्यर्थः, तस्य अर्थो व्यवच्छितिनयार्थी, पर्याय इत्यर्थः । तस्य भावो व्यवच्छित्तिनयार्थता, तया पर्यायापेक्षया इत्यर्थः, किमित्याह-सादिसपर्यवसितं नारकादिभवपरिणति

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