Book Title: Nandisutram Avchuri
Author(s): Devvachak,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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नन्दिसूत्रम्
अवचूरिसमलंकृतम्
॥१८९॥
से किं तं अंतगडदसाओ ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई उजाणाई चेइआई वणसंडाइं समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइयाइड्डिविसेसा भोगपरिचाया पव्वजाओ परिआया सुअपरिग्गहा तवोवहाणाई संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई अंतकिरियाओ आपविजंति, अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा संखिन अणुओगदारा संखिजा वेढा संखिजा सिलोगा संखिजाओ निजत्तीओ संखिजाओ पडिवत्तीओ संखिजाओ संगहणीओ से गं अंगठयाए अट्टमे अंगे एगे सुअक्खंघे अट्ट वग्गा अठ्ठ उद्देसणकाला अट्ठ समुद्देसणकाला संखिजा पयसहस्सा पयग्गेणं संखिजा अक्खरा अणंता गमा अणंता पजवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपन्नता भावा आघविनंति पन्नविजंति परूविजंति देसिजति निदसिज्जंति उवदंसिर्जति से एवं आया से एवं नाया से एवं विनाया से एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ । से तं अंतगडदसाओ॥८॥
अथ कास्ताः अंतकृत्दशाः ?, अंतो-विनाशः तं कर्मणः तत् फलभूतस्य वा संसारस्य ये कृतवन्तस्तेऽन्तकृतः-तीर्थकरादयः, तत् वक्तव्यताप्रतिबद्धा दशाध्ययनानि अंतकृतदशाः । तथा चाह सूरिः-अंतगडदसासु' 'ण' इत्यादि पाठसिद्धं यावत् 'अंतकिरियाउ' त्ति भावापेक्षया, अंताश्च ताः क्रियाश्च अंतक्रियाः शैलेश्यवस्थादिका गृह्यते । शेषं प्रकरार्थं यावत् 'अट्ठवम्गत्ति वर्गः समूहः, सच अंतकृतां अध्ययनानां वा वेदितव्यः, सर्वाणि च अध्ययनानि च वर्गवर्गान्तर्गतानि युगपदुद्दिश्यन्ते, अत आह-उद्देशा अष्टौ उद्देशन
॥१८९॥
न. सू.१६

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