Book Title: Nandisutram Avchuri
Author(s): Devvachak, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 217
________________ नन्दिसूत्रम् | ॥२१५॥ नव अवचूरि| समलंकृतम् तत् आरतस्तु ये श्रुतज्ञानिनः ते सर्वद्रव्यादिपरिज्ञाने भजनीयाः । केचित् सर्वद्रव्यादि जानंति केचित् न इति भावः, इत्थंभूता च भजनां मतिवैचित्र्यात् वेदितव्याः । सम्प्रति संग्रहगाथामाह अक्खरसन्नी सम्मं । साइअ खलु सपज्जवसिअंच । गमिअं अंगपविढें । सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥१॥ आगम सत्थग्गहणं । जं बुद्धिगुणेंहिं अट्ठहिं दिहूँ । विति सुअनाण लंभं । तं पुब्ब विसारया धीर। ॥२॥ सुस्सूसई पडिपुच्छई । परोई गिण्हों ईहएयाव। तत्तो अपोहए वा । धारे करेइ वा सम्मं ॥ ३ ॥ मूअं हुंकारं वा वाढक्कार पडिपुच्छविमंसा। तत्तो पसंग पारायणं च परिनिट्ठ सत्तमाए ॥४॥ सुत्तत्थो खलु पढमो बीओ निज्जुत्ति मीसिओ भणिओ। तइओ य निरवसेसो एस विही होइ अणुओगे ॥५॥ सेत्तं अंगपविट्ठ । सेत्तं सुअनाणं । सेत्तं परोक्खनाणं । सेत्तं नंदी सम्मत्ता। ॥ इति श्री नंदीसूत्रमूलपाठः॥ ॥२१५॥

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