Book Title: Nandisutram Avchuri
Author(s): Devvachak, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 188
________________ नन्दित्रम् अवचूरिसमलंकृतम ॥१८६॥ अक्खाइआए पंच पंच उवक्खाइआ सयाई एगमेगाए उवक्खाइआए पंच पंच अक्खाइउवक्खाइआ सयाई एवमेव सपुव्वावरेणं अबुहाओ कहाणगकोडीओ हवंतित्ति समक्खायं, नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा संखिजा अणुओगदारा संखिजा वेढा संखिजा सिलोगा संखिजाओ निजुत्तीओ संखिजाओपडिवत्तीओसंखिजाओसंगहणीओ, से णं अंगठ्ठयाए छट्टे अंगे दो सुअक्खंघे एगूणवीसं अज्झयणासंखिजाएगूणवीसं उद्देसणकाला एगूणवीसं समुद्देसणकाला संखिज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं अक्खरा अणंता गमा अणंता पजवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबदनिकाइया जिणपन्नत्ता भावा आघविजंति पन्नविजंति परुविनंति दंसिर्जति निदसिजंति उवदंसिजंति से एवं आया से एवं नाया से एवं विन्नाया से एवं चरणकरणपरूवणा आधविजइ । से तं नायाधम्मकहाओ॥६॥ अथ केयं व्याख्या ? व्याख्यायंते जीवादयः पदार्थाः अनया इति व्याख्या, 'उपसर्गादात०' इति अप्रत्ययः, तथा चाह सूरि:-'विवाहे णं' इत्यादि, व्याख्यायां जीवा व्याख्यायंते, शेषं आनिगमनं पाठसिद्धं । अथ कास्ता ज्ञाताधर्मकथाः?, ज्ञातानिउदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः । अथवा ज्ञातानि-ज्ञाताध्ययनानि प्रथमश्रुतस्कंधे धर्मकथा द्वितीये श्रुतस्कंधे यासु ग्रंथपद्धतिषु ताः ज्ञाताधर्मकथाः पृषोदरादित्वात् पूर्वपदस्य दीर्षांतता, सूरिराह-ज्ञाताधर्मकथासु 'ण' इति वाक्यालंकारे ज्ञातानाउदाहरणभूतानां नगरादीनि आख्यायंते, तथा 'दसधम्मकहाणं वग्गा' इत्यादि, इह प्रथमश्रुतस्कंधे एकोनविंशतिआताध्ययनानि ज्ञातानि-उदाहरणानि तत् प्रधानानि अध्ययनानि द्वितीयश्रुतस्कंधे दश धर्मकथाः धर्मस्य-अहिंसालक्षणस्य प्रतिपादिकाः कथा धर्म ॥१८६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240