Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

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Page 14
________________ ५. निर्घात- बिना बादल के आकाश में व्यन्तरादिकृत घोर गर्जन होने पर, या बादलों सहित आकाश में कड़कने पर दो प्रहर तक अस्वाध्याय काल है। ६. यूपक- शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा, द्वितीया और तृतीया को सन्ध्या और चन्द्रप्रभा के मिलने को यूपक कहा जाता है। इन दिनों प्रहर रात्रि पर्यन्त स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। ७. यक्षादीप्त-कभी किसी दिशा में बिजली चमकने जैसा, थोड़े-थोड़े समय पीछे जो प्रकाश होता है, वह यक्षादीप्त होता है। अतः आकाश में जब तक यक्षाकार दीखता रहे, तब तक शास्त्र स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। ८. धूमिका कृष्ण-कार्तिक से लेकर माघ तक का समय मेघों का गर्भ मास होता है, इसमें धूम्रवर्ण की सूक्ष्म जलरूप धुंध पड़ती है, वह धूमिका कृष्ण कहलाती है। जब तक यह धून्ध पड़ती रहे, तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। ६. महिका श्वेत- शीतकाल में श्वेत वर्ण की सूक्ष्म जलरूप धून्ध महिका कहलाती है, जब तक वह गिरती रहे, तब तक अस्वाध्याय काल है। १०. रज उद्घात- वायु के कारण आकाश में जो चारों ओर धूलि छा जाती है, जब तक वह धूलि फैली रहे, तब तक स्वाध्याय वर्जित है। . उपरोक्त १० कारण आकाश सम्बन्धी अस्वाध्याय के हैं। औदारिक शरीर सम्बन्धी दस अनध्याय . ११-१२-१३ हड्डी, मांस और रुधिर- पंचेद्रिय तिर्यंच की हड्डी मांस और रुधिर यदि सामने दिखाई दें, तो जब तक वहाँ से उक्त वस्तुएं उठाई न जाएं. तब तक अस्वाध्याय है। वृत्तिकार ६० हाथ के आस-पास इन वस्तुओं के होने पर अस्वाध्याय मानते हैं। इसी प्रकार मनुष्य संबन्धि अस्थि, मांस और रुधिर का भी अनध्याय माना जाता है। विशेषता इतनी है कि इनका अस्वाध्याय तीन दिन तक। बालक एवं बालिका के जन्म का अस्वाध्याय क्रमशः सात एवं आठ दिन पर्यन्त का माना जाता है। १४. अशुचि- मल-मूत्र सामने दिखाई देने तक अस्वाध्याय है। १५. श्मशान- श्मशान भूमि के चारों ओर सौ-सौ हाथ पर्यन्त अस्वाध्याय माना गया है। १६. चन्द्रग्रहण- चन्द्रग्रहण होने पर जघन्य आठ, मध्यम बारह और उत्कृष्ट सोलह प्रहर पर्यन्त स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। १७. सुर्यग्रहण- सूर्यग्रहण होने पर भी क्रमशः आठ, बारह और सोलह प्रहर पर्यन्त अस्वाध्याय काल माना गया है। १८. पतन- किसी बड़े मान्य राजा अथवा राष्ट्र-पुरुष के निधन होने पर जब तक उसका दाह-संस्कार 11

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