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व्याख्याकार के दो शब्द
ज्ञान की आराधना से ही आत्मा अपना कल्याण कर सकता है। इसी विषय को लक्ष्य में रखकर मैंने नन्दीसूत्र की हिन्दी भाषाटीका लिखी है। इसमें कोई भी सन्देह नहीं है कि यह सूत्र आगमों के आध पार पर निर्माण किया गया है, वे सब पाठ आगमों में विद्यमान हैं। देववाचक जी आचार्य ने इन पाठों को यथास्थान रख कर अपनी योग्यता का पूर्ण परिचय दिया है। यह शास्त्र परम माङ्गलिक हैं, अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस का योग्यतापूर्ण अस्वाध्यायकाल को छोड़ कर अस्वाध्याय करना चाहिए।
वास्तव में यह शास्त्र आत्म-प्रकाश का मुख्य साधन है। मलयगिरि वृत्ति और चूर्णिकार ने इस सूत्र के विषय में बड़े अर्थयुक्त शब्दों में महात्म्य वर्णन किया है। अतः इसका स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए। मंगल शब्द को लक्ष्य में रख कर ही देववाचकगणी ने प्रस्तुत सूत्र में ज्ञान के अतिरिक्त तीन अज्ञान के विषय का विस्तारपूर्वक वर्णन नहीं किया, जैसे कि व्याख्याप्रज्ञप्ति आदि सूत्रों में किया है।
इस सूत्र में मुख्यतया पांच ज्ञानों का ही विशदरूप से वर्णन किया है। पाठकजन इसको योग्यता पूर्वक पठन करें। यदि अज्ञान व प्रमादवश जिनागम के विरुद्व कोई शब्द लिखा गया हो तो संस्था को सूचित करें, जिस से उसकी पुनरावृत्ति में शुद्वि की जा सके।
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यदि मेरे से कोई भूल हो गई हो, तो मैं उसका 'मिच्छामि दुक्कडं लेता हुआ विद्वद्वर्ग से व आगमपाठियों से प्रार्थना किए बिना नहीं रहूंगा कि मुझपर क्षमा करते हुए, इसको शुद्विपूर्वक पढ़ते हुए निर्वाणप्राप्ति के कारणीभूत बनें। इत्यलं विद्वत्सु।
नन्द्यध्ययनविवरणं, कृत्वा यदवाप्तमिह मया पुण्यम्। - तेन खल जीवलोको, लभतां जिनशासने नन्दीम्।।
संवत् २००२ ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशी ) वृहस्पतिवार, लुधियाना
( उपाध्याय जैन मुनि
आत्माराम
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