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प्रबन्ध सम्पादक एक परिचय
पूज्य गुरूदेव युवाप्रज्ञ डा० श्री सुव्रतमुनि जी महाराज शास्त्री, एम०ए०, पी०एच०डी० का जीवन संघर्षों से ओत-प्रोत और विस्मयजनक है और साथ ही शिक्षाप्रद भी। 'कर्मण्येवाधिकारस्ते' उक्ति आप में चरितार्थ होती है। अरक्षितं तिष्ठति दैव रक्षितम्' कहावत भी यथार्थतः आपके जीवन में घटित होती है। मृत्युसम उपसर्गों तथा अनेक घटनाओं से परिपूर्ण आपका जीवन सदैव सुरक्षित रहा। अव्यक्त सता का महान सहयोग नकारा नहीं जा सकता। किसी विचारक मनीषी ने सच ही कहा है
जीवत्यनाथोऽपि वने विसर्जितः। - जीवन यात्रा में आगत समस्त विघ्न बाधाओं को पार करते हुए आप सदा ही अग्रिम पथ पर बढते रहे। आपका जन्म भारत वर्ष की पवित्र भूमि उतर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के गढी बहादुरपुर में हुआ |आपके पिता श्री रामशरण उपाध्याय एवं माता श्रीमती केला देवी उपाध्याय एक सीघे सच्चे सदगृहस्थ थे। उन्ही के यहां सन् १९५३ में शरद पूर्णिमा के दिन एक बालक का जन्म हुआ जिस का नाम रखा भोपाल। बचपन में ही अनासक्त भावना एवं सत्संगति के कारण बालक की रूचि प्रभु भक्ति में रही ज्ञानार्जन करना भोपाल का विशेष शौक था। . घर में रहते हुए ही इण्टर मीडिएट पास करके युवा अवस्था को प्राप्त भोपाल अपने अग्रज श्री कृष्णपाल के पास लुधियाना आए वहीं पर वर्तमान समय सर्व श्रेष्ठ सन्त उतर भारतीय पर्वतक पूज्य वर गुरूवर्य भण्डारी श्री पदमचन्द जी महाराज से जुलाई १६७४ को भेंट हुई और तभी भोपाल को अध्यात्म का प्रकाश पथ प्राप्त हो गया।
. भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण वर्ष सन् १६७४ में ८ दिसम्बर भगवान महावीर के दीक्षा कल्याण के दिवस पर भोपाल परम श्रद्वेय गुरूदेव उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि के पास दीक्षित, हो गये। तब आप का नाम रखा गया सुव्रतमुनि। तब से आप सेवा स्वाध्याय और सयंम साधना में, तत्पर हुए। गुरू कृपा से आप ने प्रभाकर शास्त्री एवं एम०ए० हिन्दी और सस्कृत में की फिर आपने कुरुक्षेत्र · विश्वविद्यालय से 'योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्याय" विषय पर शोघ प्रबन्ध लिखकर डाक्ट्रेट की उच्च उपाधि प्राप्त कर शिक्षा जगत में उच्च स्थान बनाया तदनन्तर आपने जैनागमों का अध्ययन किया और गुरूजनों के आशीष से आप धर्म प्रभावना आत्म आराधना एवं संयम साधना में निरन्तर प्रगति करते रहे हैं।
अध्ययन चिन्तन मनन एवं लेखन में आप सलंग्न रहते हैं। गुरूजनों के प्रति आपके मन में अनन्य निष्ठा है। यही कारण है कि आपने जैन धर्म दिवाकर, जैन आगम रत्नाकर, धर्म धुरन्धर आचार्य सम्राट परम पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज द्वारा व्याख्यात श्री नन्दी सूत्र का नवीन संस्करण प्रकाशित कराया है। जो कि आपके जीवन का एक महत्वपूर्ण कार्य है। आप स्वभाव से विन्रम और विचारशील साधक हैं। जैन स्थानकवासी समाज में आपका उल्लेखनीय स्थान है आपकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।
गया।
मन्त्री आचार्य श्री आत्माराम जैन
बोध प्रकाशन
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