Book Title: Nandanvan Kalpataru 2007 00 SrNo 18
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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प्रा. अभिराजराजेन्द्रमिश्रः
રૂ
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(१) रामायणम् !! राष्ट्रसौधे स्फुरन्मञ्जुवातायनम् भाति बन्धो ! न किं रम्यरामायणम् ॥१॥ उत्तमादर्शबिम्बोच्वयं संसृजत् भूतलेऽद्याऽपि भाऽऽभाति रामायणम् ॥२॥ वर्णयज्जीवनं कर्मणां सम्प्लवैः ग्रन्थिमुद्धाटयत्याशु रामायणम् जानकीलोचनाश्रूच्चयैः क्षालितम् शारदादर्पणं भाति रामायणम् જો राघवीयामहो पौटपाकी शुचम् | प्राज्ञतुष्ट्यै समाख्याति रामायणम् ॥५॥ लक्षयल्लोकसम्बन्धमूर्ध्वक्रमैः संहिता भाति वृत्तस्य रामायणम् ॥६॥ यत्र शोकः स्वयं श्लोकतामागतः आदिकाव्यं तदेकं हि रामायणम् विश्वभूगोलमाश्लेषपाशे दधद् विश्वसाहित्यमूलं नु रामायणम् ૮
॥७॥
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