Book Title: Marankandika Author(s): Amitgati Acharya, Jinmati Mata Publisher: Nandlal Mangilal Jain Nagaland View full book textPage 4
________________ [ ५ ] गाथा १९९१ तथा गाथा १९९२ में बतायी गयी विधि का मरणकंडिका में उल्लेख नहीं है, बल्कि इन दो गाथाओं पर इलोक रचना हो नहीं है । अस्तु । इस ग्रंथ में आगत विविध छन्दों के न म एव लक्षण इसप्रकार हैं समानिका- अक्षर S I S 1 5 I S I ग्लोर जी समाति का तु ऽ 3 ' S S । 5 1 S I い स्या दिन्द्र व ज्रा यदि तौ ज गौ गः इन्द्रवा - ११ अक्षर उपेन्द्रवजा - ११ अक्षर ' 5 1 S I । 5 1 5 5 उपेन्द्रवज्रा प्र थ मे ल घोसा उपजाति -- इन्द्रवचा और उपेन्द्रवज्रा का मिला हुआ लक्षण जिसमें हो वह उपजाति कहलाती है। तथा किसी समान प्रक्षर वाले दो छन्दों का मिला लक्षण जिस श्लोक में हो वह उपजाति है । जैसे वंशस्थ और इन्द्रवंशा का मिला लक्षण भी उपजाति है । शालिनी -- ११ अक्षर अनुकुला - ११ अक्षर रथोद्धता - ११ अक्षर स्वागता -- ११ पर दोधक - ११ अक्षर श्येनी - ११ अक्षर वंशस्थ - १२ अक्षर सोटक S - १२ प्रक्षर 5 3 $ S ऽ I S L ऽ मा तौ यो चेच्छा नि तो वेद लो के ऽ । 1 $ S I - い 5 ग गा श्चेत् I | $ S 1 S रात् परे ने र ल गं र यो द्ध ता S ' S । I I 13 I 1 S S स्वागता र न भ गे गुंरुणा स्र -2-AP स्था द नु क्रू लाभ त 5 1 S 1 I い न S 1 I S 1 I S I 1 S 5 दोध कमिच्छति भत्रित याद गौ 5 15 1 S । S ! $ IS ये क्यु दी कि तार जो र लौ गुरुः | S ' S S 1 1 5 1 S 1 3 वदंति वंश स्थवि लं ज तो जरो 1 G 1 I S 1 1 5 I 1 $ वद तो ट क म ब्धि स का रघु तम् भुजंगप्रयात - १२ अक्षर । 5 S 1 5 भुजंगप्रयातं च तु भि यं का रेंः S I S SI 5 5Page Navigation
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