Book Title: Marankandika Author(s): Amitgati Acharya, Jinmati Mata Publisher: Nandlal Mangilal Jain Nagaland View full book textPage 2
________________ आदि वचन द्वादशांग जिनवारण में प्रथम अंग श्राचारांग है, इसमें मुनियों के आचरण का वर्णन है, यह गणधर देव द्वारा ग्रथित विशाल १८ हजार पद प्रमास श्रुत है, इसी को आधार बनाकर वर्तमान पंचमकाल के मूलाचार आदि ग्रंथ श्री कुन्दकुन्द प्राचार्य आदि द्वारा रचे गये हैं। श्री शिवकोटि श्राचार्य प्रणोत प्राकृत भाषामय गाथाबद्ध भगवती नाराघा तथा इसकी तिच्या स्वरूप आचार्य प्रमित गति प्रणीत संस्कृत श्लोक बद्ध मरणकण्डिका भी आचारांग से सम्बद्ध है | भगवती आराधना का प्रकाशन अनेक बार हुआ है । मूलाराधना नाम से सोलापुर से प्रका शित इस भगवती आराधना में श्री अपराजित सूरिकृत संस्कृत टीका पण्डित श्राशाधरकृत संस्कृत टीका तथा आचार्य अमितगति कृत संस्कृत श्लोक स्वरूप मरणकण्डिका समाविष्ट है। संस्कृत टोका रहित गाथा युक्त हिन्दी अनुवाद युक्त प्रकाशन तथा संस्कृत टीका सहित हिन्दी अनुवाद का प्रकाशन भी हुआ है । किन्तु मण्डका का स्वतंत्र प्रकाशन तथा उसका हिन्दी अनुवाद अभी तक नहीं हुआ था, इम कमो को देखकर अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगो, परमपूज्य श्राचार्य रत्न श्री अजितसागरजी महाराज ने श्रामिका जिनमती माताजी को प्रेरणा दी कि इसका अनुवाद करें। माताजी ने आचार्य श्री की आज्ञा शिरोधार्य करके तत्काल मदनगंज किशनगढ़ नगरी के चातुर्मास में अनुवाद प्रारम्भ कर दिया और मैंने संस्कृत श्लोकों की प्र ेस कॉपी तैयार की। अनुवाद बढाई मास में पूर्ण किया और धाचार्य श्री के आदेशानुसार यहीं कमल प्रिन्टर्स में मुद्रण हेतु दे दिया । इसके अनुवाद में श्राचार्य श्री द्वारा प्रोषित एवं उन्हीं के द्वारा नागौर शास्त्र भण्डार को प्रति से लिखित जो कॉपी थी उसका आधार लिया गया है। तथा मूलाराधना में स्थित श्लोकों का भी । मुद्रित मूलाराधना में मरकण्डिका के प्रारम्भ के १९ श्लोक नहीं हैं। ये बलोक ऐलक पत्रालाल सरस्वती भवन, ब्यावर को हस्त लिखित प्रति तथा उदयपुर की हस्तलिखित प्रति में भी नहीं हैं, केवल नागौर की हस्तलिखित प्रति में हैं। प्रति परिचय - ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन की प्रति सुवाच्य है, इसमें ग्रन्थ पूर्णता के अनंतर पाठ इलोक प्रमाण प्रशस्ति है तदनंतर आराधना स्तव नाम के प्रकरण में ३२ श्लोक हैं । पुनश्च कौन से नक्षत्र में क्षपक संस्तर ग्रहण करे तो कौन से नक्षत्र में मरा होगा, इस विषय का प्रतिपादन करने वाला "नक्खत्त गणना" नाम का प्राकृत भाषामय गद्य प्रकरण है । इस ग्रन्थ को श्लोक संख्या २२७९ है । यह प्रति मम्वत् १५६८ की लिखी हुई है । (२) उदयपुर की हस्तलिखित प्रति में भी यही क्रम है किन्तु श्लोक संख्या २२५२ हैं । संवत् १६२१ की लिखी हुई है ।Page Navigation
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