Book Title: Mantrishwar Vimalshah Author(s): Kirtivijay Gani Publisher: Labdhi Lakshman Kirti Jain Yuvak Mandal View full book textPage 3
________________ प्रस्तावना हिरोशिमा का अणु विस्फोट, भारत-चीन आदि के राज्य परिवर्तन, शीत युद्ध की संशयात्मक स्थिति तथा जीवन यापन के साधनों का विशेष व्यक्तियों के हाथ में केन्द्रीयकरण आदि कतिपय ऐसे ऐतिहासिक तथ्य हैं जिन्होंने मानवीय सांस्कृतिक तत्वों के विकास एवं मानव सभ्यता की प्रगति में अविश्वास तथा अश्रद्धा का बीजारोपण किया है तथा सभ्य मानव के नैराश्यपूर्ण हृदयमें विद्रोह की भावना जाग्रत कर दी है। आधुनिक मानव में ईश्वर और धर्म के प्रति आस्था डगमगा रही है । वह घोर अनिश्चय और जीवन की दुर्दानाविभिषिकाओं के समक्ष अपने को असहाय पा रहा है । अवसाद, अनास्था और निराशा से पीड़ित वह अपनी स्वयं की दृष्टि खो बैठा है । सागर के तूफान में फंसी अपनी जीवन नौका को किनारे लगाने के लिये वह व्यय है । पर जीवन की इस भीषण प्रतिकूलताओं के बीच भी व्यक्ति में आशा की किरण विद्यमान रहती है । उद्विग्न मन सुदूर इतिहास के पृष्ठों पर बड़ी उत्सुकता से झांकता है- देलवाडा के विश्व विख्यात एवं शिल्पकला में अद्वितीय जैन मन्दिरों की दीप्तिमान झलक उसका पथ प्रशस्त करती है । भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक तत्त्वों का परम्परागत सिंचन करती हुई इन मन्दिरों की ज्योति आज भी भँवर में फंसी नौकाका मार्गदर्शन करती है । इस दिव्य ज्योतिको आज से करीब एक हजार वर्ष पूर्व भारत के महान सपूत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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