Book Title: Mantrishwar Vimalshah
Author(s): Kirtivijay Gani
Publisher: Labdhi Lakshman Kirti Jain Yuvak Mandal

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Page 32
________________ मंत्रीश्वर विमलशाह ____अठारह करोड़, तरेपन लाख द्रव्यका व्यय तो विमलशाह के जिन मंदिरोंमें ही हो गया था। आज भी दूर-२ देशों के यात्री इन जिनमंदिरों के दर्शनलाभ कर अपने आपको कृतकृत्य मानते हैं तथा इनकी कला को देखकर आत्म विस्मृत हो जाते हैं। यहाँ के मंदिर जगत् की अद्भुत वस्तुओंके रूप में प्रसिद्ध हैं। इन तीर्थों का ‘दर्शन भी जीवन में एक महान कार्य की सिद्धि के समान है। विमलशाह का कलाप्रेम अद्भुत था। ऐसी ही कलाकारीगरी तथा पच्चीकारी से युक्त भव्य जिनमंदिर इन्होंने आरासण कुंभारियाजी में भी बनवाये हैं। मंत्रीश्वर विमलशाह ने जैन शासन की अनुपम प्रभावना कर जीवन को उज्जवल बनाया है। आज भी इतिहास के पृष्ठौ पर इनकी यशस्वी देह स्वर्णाक्षरों में जगमगा रही है / * समाप्त * Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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