Book Title: Mantrishwar Vimalshah
Author(s): Kirtivijay Gani
Publisher: Labdhi Lakshman Kirti Jain Yuvak Mandal

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Page 30
________________ २६ मंत्रीश्वर विमलशाह किया । एक अन्य स्थलके लिये पाँच करोड़ टंक देने पड़े और कार्य का श्रीगणेश हुआ । सहस्त्रों कारीगरों को काम पर लगाया और - त्वरित गति से कार्य आरम्भ हुआ । निपुण शिल्प शास्त्रियोंको आमंत्रित किया गया । ७०० शिल्पी कार्य पर लगे । सात सात मस्तक प्रमाण गहरी नींव खोदी गई । नींव भरने के लिये स्वर्णमोहरों से लदे सात सौ ऊट मँगवाये गये पर ऐसा करनेसे कहीं नींव कच्ची न रह जाय इस डर से सोनाचाँदीको गलाकर उसकी इंटे ढालकर नींव भरी गई। जिस स्थल पर जिनप्रासाद बनाया जा रहा था, उस भूमिके · स्वामी वालीनाथ ने पुनः उपद्रव खड़ा कर दिया। कहावत है कि ' श्रेयांसि बहु विघ्नानि ' कल्याणकारी कार्यों में अनर्चीत विघ्न आ पड़ते हैं । परंतु धैर्यशाली व्यक्ति विघ्न बाधाओं तथा विपदाओं से डरते नहीं, वे तो सामने जाकर उनसे जूझते हैं । दिनमें मंदिरका जितना भी कार्य होता था, रातको वालीनाथ पूरा का पूरा गिरा देता था । इस प्रकार एक दो दिन नहीं, एक दो महीने नहीं, परन्तु छः छः महीनों तक उपद्रव उसने बनाये - रक्खे । विमलशाह ने देवको नानाविधि समझाया, पर उसने बात नहीं मानी। अंतमें आधी रातको विमलशाह तलवार हाथमें लेकर कहीं छिपे रहे । ज्यों ही विकराल वालीनाथने प्रवेश किया त्यों ही - मंत्रीश्वर ने उस पर छलांग मारी जिससे उनके तेजसे वह बेचारा श्रीहीन, स्फूर्तिहीन बन गया और वहाँसे नौ दो ग्यारह हो गया। मतलब कि भाग छूटा । .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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