Book Title: Mantrishwar Vimalshah
Author(s): Kirtivijay Gani
Publisher: Labdhi Lakshman Kirti Jain Yuvak Mandal

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Page 29
________________ मंत्रीश्वर विमलशाह गया तो सात पीढ़ियोंके अर्जित धवल यश पर कलंक की कालिमा पुत जायगी। अतः आप पुत्रकी अपेक्षा मंदिर बनवाने का ही वर माँगिये जिससे हम घीरे धीरे मोक्षके भागी बनें । पत्नीके ऐसे शब्द सुनकर विमलशाह अति प्रसन्न हुए। मध्यरात्रि में माँ का पुनः साक्षात्कार हुआ और मंत्रीश्वरने जिनमंदिर के निर्माण का वरदान माँगा। तत्पश्चात् देवी वहाँसे अदृश्य हो गई । अंतमें तीनों देवियों के वरदान लेकर विमलशाह वहाँसे पुनः पाटण लौटे । जैनाचार्य श्रीमद् धर्मघोषसूरीश्वरजी महाराज की प्रेरणा से मंत्रीश्वरने कई प्रकारसे धर्मकार्योंमें अपार लक्ष्मी का सव्यय किया था। एकबार उपदेश श्रवण के पश्चात् विमलशाह के नेत्र आँसुओं से भर उठे ! गुरुदेव ! जीवन में मेरे हाथ से अनेकों पापकर्म हुए हैं, कृपा कर मेरा उद्धार कीजिये-इस प्रकार दोनों हाथ जोड़कर हृदय के पश्चातापपूर्वक विनम्र वदन से विमलशाह गुरुदेव से विनती कर रहे थे। - ऐसे एक महान् शूरवीर, नरवीर, विमलशाह कैसे पाप भीरु थे। उन्हें परलोक का भय था। अंतःकरण धार्मिक भावनाओंसे ओतप्रोत था। तभी तो ऐसे उद्गार निकले थे। गुरुदेव के सदुपदेश से विमलशाहने अर्बुदाचल पर मंदिर बनवाने का निश्चय किया, पर अर्बुदाचल पर मिथ्यात्विजनों ने स्थल के लिये भारी झगड़ा किया। अंतमें स्वर्ण मोहरें बिछा कर स्थल प्राप्तः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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