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५ : विमलवसहि प्रासाद इसी अवधिमें विचरण करते-२ महान् धर्मधुरन्धर जैनाचार्य श्री धर्मघोषसूरीश्वरजी महाराज अर्बुदाचल की तलहटीमें आ पहुंचे। प्रकृति की ऐसी अनुपम छटा निहारकर सूरीश्वरजी को लगा कि ऐसे रमणीय पर्वत पर यदि श्री जिन मंदिरोंका निर्माण कराया जाय तो कितना अच्छा हो। उन्होंने अंबाजी का स्मरण किया और तत्काल ही उनका साक्षात्कार हो गया। सूरीश्वरजीने उनके समक्ष.. अपनी हार्दिक इच्छा प्रकट की और कहा कि यदि यहाँ जिन मंदिर बनें तो वास्तव में यह पर्वत एक भव्य तीर्थ के रूप में ख्याति प्राप्त करे।
सूरीश्वरजी की हार्दिक अभिलाषा जानकर देवीने कहागुरुदेव यदि आपको अपनी यह मनोकामना पूर्ण करनी हो तो आप यहाँ से पाटण पधारिये। वहाँ मंत्रीश्वर विमलशाह है । बस इतने शब्द कहकर देवी अदृश्य हो गई। . देवीके वचनों को सुनकर वहाँसे विहार कर सूरीश्वरजी पाटण पधारे। देव-गुरु-भक्त मंत्रीश्वर विमलशाह भी गुरुदेव के दर्शनों के-- लिये आये । अपनी मनोकामना विमलशाह के समक्ष प्रकट करते हुए गुरुमहाराजने कहा-विमलशाह ! अति रमणीय पर्वत अर्बुदाचल की जलवायु, नैसर्गिक सौन्दर्य तथा भव्य वातावरण देखकर मुझे
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