Book Title: Mantrishwar Vimalshah
Author(s): Kirtivijay Gani
Publisher: Labdhi Lakshman Kirti Jain Yuvak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ मंत्री पर विमलशाह २१७ प्रकार देश-२ के राजा उसकी प्रभुता स्वीकार करने लग गये । बंभणीया के पंड्या राजा को तथा रोम के राजा को जीतकर जब विमलशाह सिंहासनारूढं हुए तब- पाटण के राजा भीमदेवने छत्रचामर की भेंट भेजी और कहलाया कि मंत्रीश्वर ! तुम्हारा प्रताप, तीनों खंडोंमें फैला हुआ है। हम हाथ जोड़कर विनती करते हैं: कि हमारे साथ कोई वैरभाव न रखें । आपके हृदय को कण्ट: पहुँचाना हमारे लिये लज्जाजनक है। __इस प्रकार चंद्रावती के महाराजा बनने का यश विमलशाह को प्राप्त हुआ। राजसिंहासन पर बैठने के पश्चात् एक बार खुली छत पर चढ़ कर उन्होंने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई तो उन्हें नगर की शोभा अच्छी नहीं लगी। फलस्वरूप उन्होंने नये सिरे से नगर निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया। विमलशाह जैसे धर्मपरायण जिस नगरके स्वामी हों वहाँ धर्म की उन्नति का पूछना ही क्या ? उन्होंने कलाकौशल्य से शोभायमान १८०० सुन्दर जिन मंदिर बनवाये । ८४ बाजार और ८४ जाति बस्तियाँ, सात मंदिर अंबाजी के बनवाये तथा प्रसिद्ध पौषधशालाओं, उपाश्रयो, धर्मशालाओं और दानशालाओं आदि का तो पूछना ही क्या ? नगर की शोभा वास्तवमें कुबेरकी अलकापुरी को भी मात कर रही थी। नगर की शोभा देखकर सभी घड़ीभरके लिये स्तब्ध बन जाते थे। विमलशाह जैसे जैन राजा जहाँ सिंहासन की शोभा बढ़ा रहे हों, वहाँ का वातावरण धर्ममय बना रहे तो इसमें कोई नवीनता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32