________________
मंत्रीश्वर विमलशाह और नवकोटि मारवाड आदि सभी देशों में तथा दसों दिशाओं में मेरा डंका बन रहा है, मैंने गुज गत का दंड धारण किया है, भीमदेव मेरा स्वामी है । अतः मैंने उसे पदभ्रष्ट नहीं किया है । जिसका नमक खाया है उसका वध कैसे किया जाए ! इससे तो मेरा कुल
और मेरा धर्म दोनों लजाते हैं । भले ही इसने मेरे प्राण लेने के भने को षडयन्त्र रचेहों पर सेवक तो स्वामीभक्त है, कृतघ्न नहीं। इन बातों से विमलशाह की नीति परायणता और उनका जैनत्व वस्तुतः चमक उठता है।
विमलशाह ने आगंतुक विदेशी व्यक्ति को अपना परिचय देते हुए कहा-हे भाग्यवान् । गौड़ देश के राजा को मैंने पराजित किया है, पंचाल मेरी वाणी बोलता है, कानड़ा तो मेरे आधिपत्य में है, काश्मीर मेरे नाम से कांपता है, चोड को मैंने दबा दिया है, बर्बर तो मेरी आधीनता स्वीकार करने को तैयार है, जालंधर मेरी कृपा पर जीवित हैं, सोरठ मेरा सेवक है, अयोध्या के महाराजा तो मेरी खंडनी (मालगुजारी) भरते हैं, तो मथुरा के भूपाल मेरे आगे भेंट रखते हैं। अब बेचारे रोम के राजा का समय पूरा हो गया है। भोजन में नाना प्रकार के व्यंजनों का आस्वादन करते समय कहीं एकाध बडा जिस प्रकार रह जाता है, उसी प्रकार यह रह गया दिखाई देता है, मंत्रीश्वर विमलशाह ने शीघ्र ही सेना तैयार की और चन्द्रावती के के बाहर पड़ाव डाल दिया। चतुरंगिणी सेना से धरती भी कांप उठी, चार हजार ऊँटों पर धन के ढेर लगाये, सोलह हजार उँटों पर अन्नादि भरा, और तरह-२ के अनशस्त्र साथ लिये । अच्छा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com