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मंत्रीश्वर विमलशाह शकुन देखकर शुभ मुहूर्त और शुभ बेलामें कूच करना निश्चित् किया । रोम नगरकी सीमापर सेना आ पहुँची तथा रणभेरी बज उठी। रणभेरी की बुलंद आवाज सुलतानों के कानों से जा टकराई। आवाज सुनते ही सभी निस्तेज बन गये । विमलशाह के नक्कारों की आवाज से सुलतानों के मुख से पान भी गिर पड़े। यह दृश्य देखकर सम्मुख बैठी हुई बेगमों से कहे बिना न रहा गया कि जिसकी रणभेरी के घोषसे तुम्हारे मुखके पान गिर पड़े और तुम इस प्रकार घबरा उठे तो उनके साथ युद्ध किस प्रकार लडोगे ? 'गिरनेके बाद भी मियाँजी की टांग उँची की उची' कहावत के अनुसार सुलतान बोले-अरे ! उस बकाल को अभी पछाड़ देंगे । दोनों सेनाओं की 'परस्पर मुठभेड़ हुई, शस्त्र चमकने लगे । विमलशाहने ज्यों ही सिंहनाद किया त्यों ही शत्रुकी सेना, हाथी, घोड़े आदि सहित भाग खड़ी हुई।
सुलतान घबरा उठे और बोले-अरे ! यह बनिया तो बड़ा जबरदस्त मालूम होता है, हार जाए-ऐसा लगता नहीं । आखिर सुलतानों ने हार मान ली ? बेगमें विमलशाह के पैरों पड़ी। उन्होंने स्वर्ण के थालों में हीरा, मानिक और मोती भस्कर मुक्त हस्त से विमलशाह का स्वागत किया। दंडके रूपमें हाथी, घोड़े और चार करोड़ द्रव्य देना स्वीकार किया और मंत्रीश्वर की अधीनता स्वीकार कर ली जिससे विमलशाह का जयजयकार हुआ।
बंमणीया के पंड्या राजा को भी उसी प्रकार हराया। इस
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