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मंत्रीश्वर विमलशाह - लगा कि यहाँ पर यदि जिन मंदिर बनें और यह पर्वत एक जैन तीर्थके रूपमें प्रसिद्ध हो तो कितना अच्छा रहे !
प्राचीन काल के मंत्रीजन देव गुरु और धर्म के लिये अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिये तत्पर रहते थे । गुरुदेव के मुख से निकला हुआ वचन विमलशाह ने तुरंत शिरोधार्य कर लिया और शीघ्र ही चतुर्विध संघके साथ आरासण-कुंभारियाजी आये । वहाँ विमलशाह अन्न-जलका त्याग कर अंबाजी की आराधनामें लीन बन गये । तीसरे उपवास पर ही चक्केश्वरीजी, पद्मावतीजी और अंबाजी तीनों देवियाँ प्रकट हुई और उन्होंने विमलशाह पर अत्यंत प्रसन्न होकर वरदान मांगने के लिये कहा-मांग, मांग विमलशाह माँग, बता क्या इच्छा है ? विमलशाह बोले...-मुझे एक पुत्र और आबू पर जिनमंदिर के निर्माण का वरदान दीजिये। .
देवीने कहा-"तुम्हारा पुण्य पर्याप्त नहीं है, अतः इन दो में से एक ही वरदान मांगो। मंत्रीश्वर यह बात सुनकर चिंता में पड़ गये। अंतमें इन्होंने कहा मेरी भार्या से पूछकर आपको कल बताऊँगा । तब देवी ने इसे स्वीकार किया।
दूसरे दिन प्रातः विमलशाहने अपनी पत्नी श्रीमती को सारा वृत्तांत कह सुनाया। श्रीमतीने विचार कर कहा-हे स्वामिन् ! पुत्र से किसीका नाम चिरकाल तक स्थायी नहीं होता-अमर नहीं बनता ? इसके उपरांत यह भी कैसे कहा जा सकता है कि होने वाला पुत्र सपूत निकले या कपूत ? दुर्भाग्य से यदि वह कपूत निकल
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