Book Title: Mantrishwar Vimalshah
Author(s): Kirtivijay Gani
Publisher: Labdhi Lakshman Kirti Jain Yuvak Mandal

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Page 20
________________ मंत्रोपर चिनलमाह हो । वे पूर्णतः स्वामी भक्त थे । उनकी धाक से शत्रुगण काँपते थे। एक बार सिन्धु देश के राजा हमीर सुमेरा ने पाटण पर आक्रमण किया । रणभेरी बजी, खूब जोर शोर से लड़ाई हुई । हमीर और राजा भीमदेव मैदान में उतरे । अन्त में हमीर पराजित हुआ। बिमल ने इस युद्ध में अत्यन्त वीरता बताई। इस अवसर पर राजा भीमदेव मंत्रीश्वर पर अत्यन्त खुश हो गये। ऐसे न्यायवान् नरश्रेष्ठ पराक्रमी तथा स्वामिभक्त मंत्रीश्वर को एक या दूसरे उपाय से मारने के षडयंत्र रचे जा रहे थे-यह कैसी विचित्रा थी? प्रभात में नित्य की भाँति मंत्रीश्वर राजसभा में आये पर राजा भीमदेव ने मुँह फेर लिया। उनके मन की मलिनता का विमल शाह को जरा भी झान नहीं था। उन्हें आश्चर्य हुआ। ऐसा क्यों ? .. शीघ्र ही विमलशाह ने महाराज से पूछा महाराज ! आपकी माराजगी का क्या कारण है ? आष जसे पाटण के प्रभु का ऐसा करने से क्या तात्पर्य ? इतने में तो एक व्यक्ति बीच में ही बोल उठा-मंत्रीश्वर ! राजा भीमदेव की कृपा की अपेक्षा रखते हो तो तुम्हारे पूर्वज लाहिर मंत्री के समय का ५६ करोड़ टंक का जो कर्न निकलता है उसे अदा कर दो और फिर महाराज तुम पर प्रसन्न है। अन्य कोई कारण नहीं है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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