Book Title: Mantrishwar Vimalshah
Author(s): Kirtivijay Gani
Publisher: Labdhi Lakshman Kirti Jain Yuvak Mandal

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Page 17
________________ मंत्रीश्वर विमलशाह अधिकार में कर लिया । शेर सो बकरी जैसा ही बन गया। अन्त में विमलशाह ने शेर को पिंजरे में धकेल दिया। ‘मंत्रीश्वर बिमल की अय हो, जय हो' के नारे गूंजने लगे। जय जयकार के गंभीर घोष से गगन गूंज उठा। ऐसा अद्भुत पराक्रम देखकर राजा भीमदेव तो निस्तेज ही हो गया । वह तो अगम-निमम गूढ़ विचारों में खो गया । भीमदेव घबरा उठे कि अब क्या करना ? अरे इस वणिक् को राज्य छोणले विलंब नहीं होगा। विमलशाह के नाम से अब तो भले भले योद्धा भी काँपने लगे। उनके तेज के आगे सभी प्रभाहीन हो गए । अब तो विमलशाह की कीर्ति सर्वत्र फैल गई और चारों और अनेक पराक्रम के गुणगान होने लगे। ___ अन्य मंत्रियों ने राजा को आश्वासन दिया महाराज ! चिंता न करें। इसको यमलोक पहुँचाने का दूसरा तरीका हमने ढूंढ निकाला है। - दूर से शक्तिशाली पहलवानों को बुलाकर इनके साथ विमल को दंगल में उतारेंगे । पहलवान चुटकी बजाते विमल का काम तमाम कर देंगे। प्रधानों की बात स्वीकृत हो गई । पहलवानों को बुलाकर उनके कान में कहने योग्य बातें कह दी गई । ... पाठको ! विमलशाह ने ऐसा कोन सा अपराध किया है जिसका ऐसा भारी दण्ड । अपराध कुछ नहीं, केवल उसको कीर्ति, उनल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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