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मंत्रीश्वर विमलशाह
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की वीरता और पराक्रम से तो राजा भली भाँति परिचित ही थे । महाराजा को ऐसा लगा कि मंत्रीश्वर अवश्य मेरा यह राज्य चुटकी बजाते बजाते ले लेंगे। इनके यहाँ ऋद्धि समृद्धि का भण्डार है, शस्त्रास्त्रों का निर्माण हो रहा है और ये स्वयं गजब के पराक्रमी हैं अतः इस वणिक्कू को राज्य हड़पते क्या देर लगेगी ? इसके लिये तो यह बाँये हाथ का खेल मात्र है । राजा तो अधीर हो उठा । भय ने उस पर अधिकार जमा लिया । प्रतिपल यही सोचने लगा कि मंत्रीका किस प्रकार नाश किया जाय। राजा का मुख श्री विहीन हो गया । आप आराम कुर्सी पर विराजमान हैं । भारी चिन्ता ने इन्हें घेर रखा है । आसपास विमल के द्वेषीजनों की भीड़ लगी हुई है । महाराज ने धीमे स्वर में सेवको से पूछा बोलो क्या उपाय है ? अविलम्ब बताओ । किसी भी प्रकार से विमल का नाश करना ही पड़ेगा ।
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'गुणों की अपेक्षा दोष अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं' वाली कहावत यहाँ पूर्ण रूप से चरितार्थ होती है । विमलशाह ने तो अपने स्वामी को प्रसन्न करने के लिये अत्यन्त विनयपूर्वक महाराजा की सेवा की परन्तु इसका परिणाम विपरीत ही निकला । महाराज के प्रति मंत्रीवर द्वारा प्रदर्शित आदर सम्मान भी विमल के नाश का कारण बन गया । उनकी यह राजभक्ति ठीक कौए के आगे अंगूर डालने के समान हुई ।
अन्य प्रधानों ने विमलशाह का पत्ता काटने की युक्ति इंड निकाली । महाराजा को बताया गया कि यदि मंत्रीश्वर का वध ही
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