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मंधीश्वर विमलशाह
करना हो तो उपाथ सरल है। ज्यों ही विमलशाह राजसभामें प्रविष्ट हो, त्यों ही शेर को पिंजरे से मुक्त कर दिया जाए । विमलशाह से रहा नहीं जाएगा और ज्यों ही वह उस वनराज को पकड़ने के लिये आगे बढेमा, वहीं शेर उसे चीरकर खा जाएगा । ..महाराम ! गुड़ की ढेरी से यदि कार्य सिद्ध हो जाता हो तो। विष देने की क्या आवश्यकता ? विमलशाह के राजसभा में प्रवेश करते ही उसका खूब सम्मान करे, उसकी वीरता का बखान करे, इस पर उसे क्रोध चढ़ जाएगा और इच्छित कार्य पूरा हो जाएगा।
महाराज को प्रधानों की सलाह पसन्द आई और तदनुसार षडयन्त्र रचना हो गई।
राजसभा लाती है। मंत्रीश्वर विमल वहाँ आते हैं। पूर्व योजना के अनुसार शेर को मुक्त किया गया । नगर पर आतंग छा गया, जनता चीत्कार कर उठी । सभी के दिल दहल उठे। नगर में श्मशान की सी नीरवता छा गई । योद्धा गण नौ दो ग्यारह हो गए तथा सारे पाटणमें खलबली मच गई, पर किसकी मजाल जो शेर के सामने जाए । सभी दुम दबाकर भाग निकले । ऐसे प्रसंगों पर वीर पुरुष रोके नहीं रुकते ।
विमलशाह उठे और शेर के सामने सीने तान कर खड़े हो गए । उनके तेज से शेर निस्तेज बन गया और दुम हिलाने लगा। शेर ने अवसर देखकर ज्यों ही पंचा मारा कि विमल ने थप्पड़ मार कर बकरे को पकड़े हैं उसी भांति उसे कान से पकड़कर अपने
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