________________
महावीराष्टक-प्रवचन | ११ हर वृत्ति रंग है। श्वेत वस्त्र पर रंग पोतते जा रहे हैं । स्थिति यह हो गई है कि वस्त्र निर्मल हैं, स्वच्छ हैं, इतना भी पता नहीं चल रहा है।
छोटी-छोटी बातें हैं, समझने लायक हैं। कोई किसी का अपमान करता है। हम सोचते हैं बहुत अच्छा हुआ, इसीके लायक थे, बहुत अकड़कर चलते थे, अच्छा मजा चखाया। कोई हिंसा करता है, हम कहते हैं-ठीक निशाना साधा।
दो व्यक्तियों की आपसी कोई समस्या है। आपसे समाधान लेने आए। जज बनते हैं आप; एक की पीठ थपथपाई और दूसरे पर दोषारोपण किया। दोहरे रंग चढ़ाते जा रहे हैं। रंग इतने चढ़े हैं कि रंग, रंग नहीं, मैल बन गए हैं। गंदगी है, हटाना होगा सबको, तब निर्मलता प्रकट होगी। सफाई करनी होगी, रंगों को उतारना होगा। भक्तराज भागचंद्र गाते हैं
अतानं यच्चक्षु : कमल-युगलं स्पन्दरहितं, जनान् कोपापायं प्रकटयति वाऽभ्यन्तरमपि ।
स्फुटं मूर्तिर्यस्य प्रशमितमयी वाति विमला, .. महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ।। भगवान् की आँखों में क्रोध की लालिमा नहीं है। क्रोध में/उत्तेजना में आँखें लाल होती हैं, भृकुटियां चढ़ जाती हैं। भागचंद्र जिन को अपने नयनों में समा जाने की प्रार्थना करते हैं। भगवान के नयनों को देखते हैं तो आश्चर्यमुग्ध हैं, भगवान की आँखों में रंग नहीं हैं। चारों तरफ तो रंगों से भरी दुनिया है, जबकि मेरी ये आँखें धन्य-धन्य हुई हैं, उन्होंने परमात्मा के दर्शन किए हैं जिनकी आँखों में कषायों के रंग नहीं, वे तो रंगशून्य हैं।
“न नेत्रे न गात्रे न वक्त्रे विकारः " न नयनों में, न शरीर में, न मुख मंडल पर । विकारों की हल्की-सी रेखा तक नहीं है। न अपने अंतरंग जीवन में कोई विकार है, न अन्य जीवन के विकार उन्हें प्रभावित करते हैं, न उनका कोई रंग है न बाहर के रंग उन्हें रंग पाते हैं।
अद्भुत, दिव्य रूप है-प्रभु का। प्रसन्नचंद्र दीक्षित हुए हैं, तो रोहिणेय चोर एवं हत्यारा अर्जुनमाली भी संघ में उपस्थित हैं। मृगावती जैसी महारानियों के साथ दासियाँ भी दीक्षित होकर संघ का अंग बनी हैं। सब पर असीम कृपा बरस रही है। काली-महाकली आदि महारानियाँ और अजातशत्रु सम्राट् कोणिक के सम्मुख सत्य अबाधित रूप से प्रकट हुआ है।
जहा तुच्छस्स कत्थई तहा पुण्णस्स कत्थई जहा पुण्णस्स कत्थई तहा तुच्छस्स कत्थई। .
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org