Book Title: Mahavirashtak Pravachan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 40
________________ भवतु *****......... महामोहातंक - प्रशमनपराऽऽकस्मिक भिषग्, निरापेक्षो बन्धुर् - विदितमहिमा मंगल-करः । शरण्यः साधूनां भव-भय-भृतामुत्तम-गुणो, महावीर स्वामी नयन- पथ - गामी भवतु मे ॥ ८ ॥ जो जनता के मोहरूपी भयंकर रोग को नष्ट करने के लिए आकस्मिक वैद्य बनकर आए थे, जो विश्व के निरपेक्ष बन्धु थे, जिनका यश त्रिभुवन में सर्वविदित था, जो जगत् का मंगल करने वाले थे, एक से एक उत्तमोत्तम गुणों के धारक थे, ऐसे भगवान् महावीर स्वामी मेरे नयनपथ पर विराजमान रहें अर्थात् मेरे नयनों में समा जाएं। मे सड़क के किनारे एक अंधा व्यक्ति खड़ा है। जो भी व्यक्ति वहाँ से गुजरता है, उसके पैरों की आहट सुनकर उसे बुलाता है और प्रकाश के संबंध में पूछता है। पूछता है हर किसी से कि क्या है प्रकाश ? कोई कहता - सुबह का समय है। सूरज निकला है, सब ओर प्रकाश ही प्रकाश है । अन्धा व्यक्ति जानना चाहता है कि संध्या समय सूर्यास्त होने पर प्रकाश नहीं रहता, तब क्या करते हैं ? तब क्या होता है ? Jain Education International अन्धस्य दीपेन किम् ? लोग कहते - सूर्यास्त होने पर रात में दीपक जलाते हैं । दीपक का भी प्रकाश होता है । अंधे ने फिर पूछा कि दीपक कैसे जलाते हैं, तो एक व्यक्ति उसे अपने साथ ले गया और उसी के हाथ से दीपक जलवाया कि उसके प्रश्न का समाधान हो । लेकिन प्रश्न का समाधान नहीं हुआ । उसका प्रश्न बना रहा — प्रकाश क्या है ? समस्या कुछ है, समाधान कुछ और ही दिया जा रहा है। कितने ही तर्क वितर्क करो, प्रमाण दो, लेकिन अंधे को कैसे बता सकोगे कि प्रकाश क्या है ? अंधे के लिए ये सब व्यर्थ हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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