________________ महावीर अतिवीर जिनेश्वर, वर्द्धमान जिनराज महान्। गुण अनन्त, हर गुण अनन्त नहीं अन्त का कहीं निशान / / हे अनन्त ज्योतिर्मय भगवन् ! अन्तर में तव ज्योति जले जीवन का कण-कण तेरे ही दिव्य रूप में सदा ढले / वीतराग जिनराज वीर की, जन-मन-मोहन अमृतवाणी। अंधकार में ज्योति-किरण है, सुख-दुःख में हर क्षण कल्याणी / / महावीर का अनेकांत है, भिन्न-भिन्न में अभिन्नता। छोड़ कदाग्रह मत-पंथों का करो द्वैत की दूर अंधता // महाश्रमण महावीर जिनेश्वर, श्री चरणों में शत-शत वंदन। अंतर्मन के कण-कण से - क्षण-क्षण में नितनव अभिनंदन / / -उपाध्याय अमरमुनि i nfoterta Personason 205Avi.orse