Book Title: Mahavirashtak Pravachan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 46
________________ अमराष्टकम् | ३७ न धर्मे न चार्थे न कामे न मोक्षे, न लोकैषणायां मदीया प्रवृत्तिः । इयं मेऽभिलाषा भवत्पादमूले अनन्यानुरागः भवेद् बद्ध-मूलः ॥ ८॥ मेरी न धर्म में, न अर्थ में, न काम में, न मोक्ष में और न लोकैषणा में प्रवृत्ति है। मेरी एकमात्र यही आकांक्षा है कि आपके चरणों में मेरा दृढ़ एवं अनन्य अनुराग बना रहे। __ छन्द : अनुष्टप् अमराष्टकमिदं पुण्यं, सर्व - पाप-प्रमोचकम्। य: पठेत् पाठयेत् गायेत् स लभते परमं पदम् ।। यह अमराष्टक पवित्र एवं सभी पापों से मुक्ति-प्रदाता है । जो भी व्यक्ति इसे पढ़ेगा, पढ़वायेगा अथवा गायेगा, वह परम पद को प्राप्त होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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