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महावीराष्टक-प्रवचन | १५
क्या, स्वर्ग का वैभव भी कुछ अर्थ नहीं रखता। वह तो देवताओं से भी ऊपर की भाव स्थिति में है। पार्थिव या दैविक ऐश्वर्य की क्या कामना करनी है, आध्यात्मिक ऐश्वर्य ही ऐश्वर्य है। आयुष्यमन् ! तुम अपनी अनन्त शक्ति को पहचानो। जागो ! प्रमाद मत करो ! जो तुम कर सकते हो वह तो देवता भी नहीं कर सकते हैं।
भगवान् महावीर का मंगलमय उद्बोधन सुन, राज्य-ऐश्वर्य को त्यागकर राजा दीक्षित हो गए। अब क्या था, इन्द्र भौतिक ऐश्वर्य के साथ स्पर्धा कर सकता था लेकिन आध्यात्मिक ऐश्वर्य के साथ प्रतिस्पर्धा कैसे हो सकती है? वह हतप्रभ हो गया। भक्ति-भाव से गद्गद् हृदय से राजर्षि के चरणों में नतमस्तक हो गया। ___मनुष्य की ही मूढ़ता है कि वह देवताओं के पीछे भाग रहा है, धर्म के नाम पर देवताओं को खुश करने के लिए पशुबलि देने जैसे जघन्य पाप करता है। कुछ तो बड़े ही अज्ञानी हैं। अभी कुछ दिन पहले एक व्यक्ति पकड़ा गया। वह अपने युवा पुत्र के साथ मंदिर में दर्शन करने गया। पुत्र प्रणाम कर रहा था कि पिता ने झट कुल्हाड़ी उठाई और मारने दौड़ा। पुत्र ने तत्काल लपककर पिता का हाथ पकड़ लिया। हल्ला हुआ, भीड़ इकट्ठी हुई, पिता पकड़ा गया। पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि पिता को अपनी लम्बी आयु के लिए और समृद्ध होने के लिए पुत्र की बलि देनी थी।
ऐसी अनेकानेक घटनाएँ यदा-कदा अखबारों की सुर्खियों में होती हैं। ऐसा क्यों? भगवत् स्वरूप को ठीक से समझा नहीं, जो भगवान् हैं वह बलि नहीं चाहता। अभयदान देने वाला भगवान् और उसका भक्त किसी पश, पुत्र, पुत्री या किसी भी अन्य प्राणी की हत्या नहीं कर सकता है। जो धर्म के नाम पर बलि चढ़ाता है उसने धर्म को समझा नहीं; और तो और, अपने आप को भी नहीं समझा।
भगवान् महावीर की धर्म-देशना है -'मनुष्य ! तू स्वयं अनन्त शक्ति संपन्न है। अपनी शक्ति को त भल गया है, तम्हें विस्मरण हो गया है। अज्ञान और मोह की बेहोशी में तुझे पता नहीं कि तू कौन है। तू स्वयं ईश्वर है, परमात्मा है। वह सो गया है, उसे जगा। परमात्मा-भाव का जागरण होने पर श्रेष्ठता कहीं बाहर से लानी नहीं पड़ेगी? श्रेष्ठता स्वयं आकर सामने झुक जाती है।
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