Book Title: Mahavirashtak Pravachan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 18
________________ महावीराष्टक-प्रवचन | ९ दिखानी थी वह जगह यूं ही छोड़ दी। कोई रंग भरा ही नहीं। शिष्य गुरु की इस विलक्षण कला को देखकर आश्चर्य से बोल उठा-“अह...... कोई रंग तो भरा नहीं, और चाँदनी का चित्र बन गया।" हम सभी उस बालक की भूमिका के चित्रकार हैं। परम विशुद्ध निर्मल आत्मा का चित्र बनाना चाहते हैं और सोचते रहते हैं-किस रंग से चित्र बनाएं प्रयत्न करते हैं, अलग-अलग रंग भरते जाते हैं। कभी हल्का, कभी गहरा, लाल, पीला, नीला-अनेकानेक प्रकार से अनेकानेक जन्मों से रंग भरते ही आए हैं। फिर भी आत्मा विशुद्ध नहीं बनी। ____ गुरु कहता है रंग ही मत भरो, कोई रंग नहीं, न राग का रंग, न द्वेष का रंग, न क्रोध का रंग, न माया का रंग, न लोभ का रंग, न मोह का रंग, न क्षोभ का रंग, न विकारों का रंग, हल्का भी नहीं, गहरा भी नहीं, कोई रंग नहीं। निरंग ही रखो, वह रंग से शून्य ही है। सैद्धांतिक रूप से भी इसे समझ लें। योग के माध्यम से, कषाय से अनुरंजित आत्म-परिणति लेश्या है। कषाय से अनुरंजित अर्थात् रंगी हुई आत्म-परिणति लेश्या है। लेश्याएं छह हैं। कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत . लेश्या, तेजो लेश्या, पद्म लेश्या और शुल्क लेश्या। नामों से स्पष्ट होता है कि उनके रंग के अनुसार लेश्याओं के ये नाम हैं। कृष्ण लेश्या का काला रंग, नील लेश्या का नीला रंग, कापोत लेश्या का कबूतर जैसा चितकबरा रंगा, तेजो लेश्या का लाल, पद्म लेश्या का पीला और शुक्ल लेश्या का सफेद रंग है। __ एक गाँव में एक दरिद्र व्यक्ति था। उसके पास था तो कुछ नहीं, पर बहुत कुछ पाना चाहता था। घर की दयनीय स्थिति से तंग आकर पत्नी भलाबुरा कह देती। वह परेशान होकर प्रयत्न भी करता रहा, पर कमा नहीं पाया। एक दिन किसी गुरु के पास गया। बहत रोया। अपनी स्थिति की कहानी सुनाते-सुनाते रोता जा रहा है, चरण पकड़ लिए गुरु के और विनीत करता है-गुरु ! ऐसा कुछ कर दो, कुछ करना न पड़े और बहुत सारा धन पा लूं। धन मेरे पास नहीं और मेहनत करना मुझे अच्छा नहीं लगता। काम तो मैं कुछ नहीं जानता। पर गुरु ऐसी कृपा करो मुझ पर कि धन के अंबार लग जाएं मेरे घर में । उससे तंग आकर गुरु ने मंत्र दिया, और कहा इस मंत्र का जाप करो, देवता प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देंगे। मंत्र जाप करता रहा वह, देवता को भी दया आ गई। प्रसन्न हुए उस पर और वरदान दिया-"जो तुम चाहोगे वह मिल जाएगा। पर ध्यान रखना, तुम्हारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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