Book Title: Mahavirashtak Pravachan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ १० | महावीराष्टक - प्रवचन पड़ोसी को दुगुना मिलेगा। फिर क्या था, दरिद्र प्रसन्नता से नाचता हुआ आया और सबसे पहले उसने रहने के लिए सुंदर मकान मांगा, मकान मिला। भोजन मांगा, भोजन मिला। जितना उसने अपने लिए मांगा पड़ोसी को उससे दुगुना मिला। जो-जो मांगता गया वह मिलता रहा, लेकिन वह फिर भी परेशान रहने लगा। पहले अपने पास कुछ था नहीं इसलिए परेशान रहा, अब पड़ोसी के पास अपने से दुगुना होने से परेशान है । सोचता है वह कि प्रार्थना मैंने की, मंत्रसिद्धि मुझे मिली, देवता को प्रसन्न मैंने किया, और पड़ोसी को भी फल मिल रहा है - वह भी मुझसे दुगुना । एक दिन अपनी परेशानी की चर्चा कर रहा था तो उसके एक मित्र ने उसे सलाह दी — “ऐसा मांगो कि तुम्हारी एक हानि हो और उसकी दुगुनी । ऐसी सलाह देने वालों की कमी नहीं है दुनिया में । वह घर आया और प्रार्थना की देवता से कि मेरी एक आँख फूट जाए। फूट गई आँख । फिर कमरे से बाहर आकर देखता है। उतने में पत्नी कहती है— हाय हाय यह क्या हो गया, एक आँख कैसे फूट गई? वह रोने लगी, चिल्लाने लगी। पति कहता है— रो मत, पड़ोसी को देख पहले। वह बाहर आकर पड़ोसी को देखता है, उसकी दोनों आँखें फूटी देखकर खुश होता है। ये हैं कृष्ण लेश्या वाले, जिनकी आत्मा काले रंगों से रंग गयी है। दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए अपना भी नुकसान कर लेते हैं। दूसरों को दुःख देने के लिए स्वयं दुःखी होते हैं। किसी भी कीमत पर दूसरों को त्रास देना है, पीड़ा देनी है। नील और कापोत लेश्या में तीव्रता कुछ कम होती है । ये अशुभतम, अशुभतर और अशुभ लेश्याएं हैं। I तेजा लेश्या में सुख देने का शुभ भाव जग जाता है । पीत लेश्या में शुभतर होता है। शुक्ल लेश्या में शुभतम भाव जगते हैं, अपना सर्वस्व लुटाकर जनहित के भावों से ओतप्रोत है— आत्म-परिणति । अंतिम अवस्था है – विशुद्ध अवस्था जहाँ श्वेत रंग भी नहीं है । वीतराग स्फटिक स्वयं निर्मल है किंतु बाह्य रंग सामने आने पर रंग झलकता है। किंतु वीतराग तीर्थंकर इतने रंगशून्य हैं कि बाहर का रंग भी नहीं झलकता है। भागेंदु ने लाल रंग को लाक्षणिक रूप से लिया है, वैसे सभी रंगों से शून्य हैं। एक तरफ हम हैं कि कितनी सहजता से रंग भरते जाते हैं । रात-दिन के अनुभव हैं सबके अपने-अपने जीवन की हर घटना एक कूंची है रंगों से भरी । F Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50