Book Title: Mahabal Malayasundari Diwakar Chitrakatha 059 Author(s): Sanmatimuni, Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 5
________________ महाबल मलयासुन्दरी सेवकों ने सन्दूक नदी से निकाला और उसे खोला। सभी चौंक पड़े। अरे! रानीजी तो मूर्च्छित पड़ी हैं? तब तक चिता से धुंआ उठकर आकाश की तरफ जाने लगा। शव वहाँ सेगायब था। 'अरे! यह क्या माया है? तो फिर चिता पर कौन है ? कुछ देर बाद रानी को होश आ गया। वह सन्दूक से बाहर निकलकरपेड़ के नीचे बैठगई। उसने बताया महाराज! मैं प्रातः वन-श्वमण के लिए गई थी, उसी समय किसीराक्षस ने मुझे उठा लिया। और एक विशाल गुफा में ले जाकर पटक दिया। वह बोलामैं शाम तक लौटकर वापस आऊँगा और तेरे साथ विवाह रचाऊँगा। तब तक तू यहीं रह। anArch ceo fo7/गा ON HGठन इतना कहकर राक्षस कहीं चला गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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