Book Title: Mahabal Malayasundari Diwakar Chitrakatha 059
Author(s): Sanmatimuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ सुनसान बीहड़ जंगल में मलया अकेली चल | रही थी। अचानक सिंह की दहाड़ सुनकर वह कॉपगयी। फिर सोचने लगी मुझे शरीर से भी ज्यादा अपना धर्म प्यारा है। धर्म मेरी रक्षा करेगा। धर्म का पालन करते हुए प्राण भी त्याग दूंगी तो सद्गति प्राप्त होगी। फिर डर किस बात का? महाबल मलया सुन्दरी तभी सामने ही सिंह दहाड़ते हुए आगया। मलया हाथ जोड़कर सिंह के सामने खड़ी हो गई और बोली हे वनराज ! तुम इस जंगल के राजा हो। मैं प्रजा हूँ। अपनी प्रजा की रक्षा करना तुम्हारा धर्म है। क्या तुम अपनी प्रजा की रक्षा नहीं करोगे? CMORE ००० 57 मलया के भावों का प्रभाव सिंह पर पड़ा। वह मुड मलया ने रातभर गुफा में विश्राम किया। सुबह पास के गया। मलया के आगे-आगे चलने लगा। जैसे कहा सरोवर में स्नानादि कर पेड़ों के फल खाये। अब वह रहा हो निश्चत होकर वहीं रहने लगी। कुछ समय बाद मलया मैं तुम्हारी रक्षा 4M सुन्दरीने एकसुन्दर पुत्र को जन्म दिया। करूंगा। चलो! मेरे पीछे-पीछे आ जाओ। मेरेलाल तू चन्द्रमा से भी सुन्दर है। XJOSL सिंह मलया को एक गुफा के द्वार पर छोडकरचला गया। 22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36