Book Title: Mahabal Malayasundari Diwakar Chitrakatha 059 Author(s): Sanmatimuni, Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 9
________________ महाबल मलयासुन्दरी महाबल ने चुपचाप पीठ फेर ली और लौटने लगा। तभी | |सुन्दरी ने राजकुमार की तरफ इशारा किया। देव सुन्दरी चिल्लाने लगी और एक देव प्रकट हुआ राजकुमारकेपास आया और मुस्कराते हुए बोलायह दुष्ट मेरी लाज क्या बात है प्रिये! डरो मत ! मैंने इस दुष्टा मुझे कुछ नहीं लूटकर जा रहा है। किसने तुम्हारे ऊपर ||का सब नाटक देख लिया है। चाहिए। बस इन्हें बुरी नजर डाली? | तुम्हारी धर्म परायणता भी क्षमा कर देना। देखी है। मैं तुमसे प्रसन्न हूँ। जो चाहे माँग लो। M उहाय MOG 10 OCODIN AGICIOO देव ने कहा देव दर्शन कभी व्यर्थ नहीं जाता। मैं तुम्हें तीन विद्याएँ देता हूँ। पहली विद्या से तुम अपना मनचाहा रूप बना सकते हो। दूसरी वशीकरणी विद्या से अपने शत्रुओं को वश में कर सकते हो। और तीसरी इस गुटिका को आम के रस में घिसकर जिसे तिलक करोगे, उसका मन चाहारूप बदल जायेगा। JOOOO Doo DOOR इसके पश्चात देव और सुन्दरी आकाश में उड़ गये। महाबल वापस नगरमें आगया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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