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खोने वाले कैसे खोते हैं ? - ऐसा न कहना कि उल्टे-सीधे धंधे करें तो गँवाना ही पडे न ? नहीं, यह तो एक निमित्त-मात्र है। सचमुच तो पूर्वकृत अशुभ कर्म ही मुख्यतः काम करता है। इसी लिए सीधा धंधा करने वाले को भी ऐसे कर्मों का उदय होने पर किसी भी राह से सम्पत्ति चली जाती है, अथवा लड़का लुट जाता है या नौकर लेकर भाग जाता है, या आग लगती है, अथवा विदेश से बहुत बडे परिमाण में माल आ जाने के कारण उसके दाम गिर जाते हैं । ऐसी ऐसी बातें हो जाती हैं उसमें उलटे धंधे का प्रसंग कहाँ रहा? फिर भी हो गया यह पूर्व कर्म के कारण हुआ, ऐसा मानना ही पड़ता है। ऐसे ही यदि पूर्व के शुभ कर्मों का उदय प्रबल हो तो उस समय उल्टे धंधे करते हुए भी कमाई होती
बताओ, राजा का मुकुट उडाए अथवा राजा को उसकी टांग पकड़ कर सिंहासन पर से नीचे गिरा दे, यह काम कैसा है ? सीधा या उल्टा ? ऐसे उल्टे धंधे में कमाई हो या सजा? लेकिन देखों ! शुभ कर्म शक्तिमान हो तो कैसी कमाई होती है ?
उल्टे धंधे में कमाई का उदाहरण :
एक राजा था। उसके नगर में एक गरीब आदमी लंबे अरसे से गरीबी का दुःख भोग रहा था। उसे एक ज्योतिषी मिला । उसने कहा "तुम चाहे कितनी ही कोशिश करो, फिर भी तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। परन्तु एक समय ऐसा आएगा जब तुम बड़े धनाढ्य हो जाओगे, इसलिए धैर्य रखो।'
बुरे की कौन आशा रखता है ? :
बस, भविष्य में भला होगा इस आशा में उसका सारा दुःख जाता रहा ! दिल हलका हो गया! आशा बड़ी चीज है न? फिर भी खूबी यह कि सब को अच्छे की ही आशा होती है - कि अच्छा होगा, भला होगा; परन्तु बुरे की आशा - अपेक्षा कोई नहीं रखता।'
बुरे की आशा करे तो धर्म के दरवाजे खुल जाएँ।
बताओ, लक्ष्मी जाती है या नहीं ? जाती तो है ही, फिर भी यह विचार कहाँ आता है कि
__ 'कदाचित् यह लक्ष्मी चली जाने की ही संभावना है ! अतः चलो, जब तक हाथ में है तब तक इसका सदुपयोग कर लूँ । भाग्य में होगी तो और मिल जाएगी और शायद न भी मिले तो भी सुकृत तो न खोऊँ ?
"ऐसी सम्भावना कौन सोचता है ? तो क्या मौत नहीं आएगी? तो भी कौन सोचता है कि
'शायद मौत जल्दी भी आ जाए, इसलिए जगत की जंजाल कम कर के, रंगराग में कटौती कर के, परलोक-हितकारी दान - शील - तप, देव-गुरु की भक्ति आदि धर्मों में से जो कुछ साध सकूँ सो साध लूँ' कौन ऐसा सोचता है ? कोई नहीं; क्योंकि मृत्यु की
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