Book Title: Kuvalayamala Part 2
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 10
________________ 'दुनिया की अनुकूलताएँ तो पुण्य के अनुपात से ही मिलती हैं, अभिमान के आधार पर नहीं।' तात्पर्य - सही हिसाब का ज्ञान नहीं, और उल्टे हिसाब के आधार पर अभिमान में दौड़ लगाता है, और बरबाद होता है। वहाँ भी मानसिक अशांति की सीमा नहीं । तब - पुण्य की गिनतीवाला पहले और बाद में भी शांति पाता है। क्योंकि - (१) पहले वह समझता है कि 'हे जीव ! ध्यान रखना ! यह सब अनुकूल हो जाता है तेरे रोब या लोभ के कारण नहीं बल्कि पूर्व के पुण्य की बचत के हिसाब से होता है। इसीलिए वह बचत समाप्त होने पर अनुकुलता नष्ट होनेवाली है। अतः लोभ - अभिमान के बहुत नखरे करने के बदले पुण्य-वर्धक देव-गुरू -धर्म की सेवा में अधिक लग जाने (२) उसके पश्चात् ? तो यह जानो कि पुण्य पर श्रद्धा रखनेवाले को पुण्य नष्ट होने के बाद ऐसा महसूस होता है कि 'देख ! यह लोभ-अभिमान तो व्यर्थ सिर पर पडे, अब दिखाई देता है कि पुण्य समाप्त हो चुका है अतः शान्त हो कर बैठ ! पुण्य की चिट्ठी पर काम चल रहा था; उसमें भी तू तो पराधीन ही था, तो किसी की मेहरबानी के माल में क्या खुश होना? वह मेहरबानी छोड़ भी जाए तो चिंता नहीं। दोनों स्थितियों में हम तटस्थ रह कर देखा करें। आपत्तिकाल में तो विशेषतः पुण्य के अन्य मार्ग खोलने चाहिए । इस तरह वह शांति-आश्वासन ले सकता है। अतः जो कहता है कि 'पुण्य-पाप क्या करते हो? रोब,- चालाकी,- योजनाएँ अपनाते रहना-तभी बादशाह बन कर फिर सकते हैं।' ऐसा कहनेवाले मूढ़ हैं, अज्ञान हैं। उन्हें पहले उन्माद का, और बाद में क्रोध का पार नहीं होता। ऐसी समझ होनी चाहिए कि, पुण्य-पाप पर रखी हुई द्रष्टिही जीव को शांति, समाधि तथा सच्ची बादशाहत का अनुभव कराती है। अन्यथा रोब, अभिमान, आदि में डूबे हुए लोग तो आक्रोश, अस्वस्थता और अशांति में ही भटकते रहते हैं। अभिमानी को बुरे-भले का विवेक नहीं होता - महर्षि ने कहा - 'घमंड में चढ़ा हुआ व्यक्ति फिर यह नहीं देखने बैठता कि 'मेरे कौन ? और पराये कौन ? कौन सगे? और कौन बेगाने ? कौन मित्र-स्नेही ? और कौन विरोधी ? मालिक कौन ? और नौकर कौन ? उपकारी कौन ? और अपकारी कौन ? नहीं, वह कोई अन्तर नहीं देखता । अभिमान करते वक्त इनमें से कुछ नहीं देखता कि - मैं कहाँ घसीटा जा रहा हूँ क्या मैं लाभदायक गर्व कर रहा हूँ ? मेरा अभिमान-अंधत्व तो नहीं है न? दुराग्रह है क्या? यह कुछ नहीं देखता? बस, अभिमान करता रहेगा सो करता ही रहेगा। ___ अभिमान में दोनों ओर से मार खाता है OOOO 0000OOOOOOK 0000000000000000 OOOOOOOOOOOO Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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