Book Title: Kundkundacharya Charitra
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 8
________________ २ दिगंबर जैन त्वथी, राजनीतिथी अने कवित्व शक्तिथी पोताने स्वतः अजरामर करी गया छे; वळी विशेषे पोतानी संस्कृतिथी हिंदुस्ताननो ईतिहास सुद्धां अलंकृत करी गया छे. आ तेयोनी सत्कृतनी मोटाई के वी रीते वर्णवी शकाय ? पण आ काळमां थई गयेला जैन लोकोना महान् महान् सत्पुरुपोना ईतिहासमांथी नाम निर्देश पण न रहे ते जैन लोकोने मांट केटली बबी दुर्दैवनी बात छे ? इसवीसन पूर्वे पाचसो छसो वर्षथी ते इसवीसन पछी सुमारे एक हजार वर्ष पर्यंतनो काळ जैनोनो घणो महत्वनो हतो. याम होवा छतां जैन विषये इतिहासमां घर्जुन अज्ञान रह्युं छे ते मोटी आश्चर्यकारक वात छे तेमां शंका नथी. जो जैनोनी व्यवसाय दृष्टिनो विचार कर्यो होय तो एटलं तो समजाशे के आज तेस्रो आटला वधा अज्ञान छे तेनुं कारण बराबर छे, कारण के जैन लोकनो राज्यकारभारमां सार्वभौमना संबंधमां घणो थोडो हाथ हतो; किं बहुना हतेोज नहि ए कहेवुं पण चाली शकशेज. ज्यारे संस्थानिकना सबंधमा जैन लोकोनुं प्रावल्य दक्षिणमा म्हैसूर, कर्नाटक अने उत्तरमां बंगाल, बहार, गुजरात, राजपुताना वगेरे प्रातमां घणुं हतुं एम हालना इतिहास परथी तेमज तत्कालीन शिला लेखोपरथी समजाय छे. पूर्वना म्हैसूरना महाराजाना चार प्रतापी वा भाग्यशाली वशज जैन

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