Book Title: Kundkundacharya Charitra
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 11
________________ कुंदकुंदाचार्य चरित्र, तपारं किल शब्दशास्त्री स्वल्पं तथायुर्वहवश्च विनामा आ श्लोकने अनुसरी-आटला मानवी प्राणीआनुं आयुष्य पुरुं थाय के नहि ते शंका रहे छे. हवे साहसिक एवो प्रश्न उत्पन्न थाय छे के जो जैनोनो आटलो अमूल्य संस्कृत वाङमयरुपी रत्न भंडार छे, तो ते आ अद्यापि सर्वना निदर्शन माटे बहार केम आवतो नथी ! कालीदास, भवभूति, बाण, एना ग्रंथ लोकोनी पासे केम जोवामां आवे छे ? आनो आ उत्तर बस थशे के युनिवर्सिटिए उपरोक्त कर्तानां पुस्तको शिक्षण क्रममा नीम्या अने ते योगे सर्वने तेमनो रस चाखवाना समय मळ्यो एटले लोकोनी ते ग्रंथ विषये पूर्ण ओळख थई छे अने थाय छे. जो युनीवर्सिटी न होत तो ते ग्रंथोनी आजे नीकळती हजारो लाखो आवृति नीकळी होत के नहि ते जैनोना वाङमयात्मक ग्रंथो संबंधे जे थयु छे, ते परथी समजी शकाशे. आ परथी समजाय छे के जे तरेहना, जे जातिना, अने जे मतना लोक होय ते प्रमाणे तेओ पोतानी ज्ञातिने, पोताना मतने, पोताना धर्मने अथवा पोताना वाङमयने आगळ लाववामां यत्न कर्या करे. आज पर्यंत आपणा जैन लोको पैकी युनीवर्सीटी मध्यमाथी पपा यत्न करनारी व्यक्ति एक पण नहोती. वळी आपणा जैन

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