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THE FREE INDOLOGICAL
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-The TFIC Team.
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મર
" पत्र था तो शि
|| श्री वीतरागाय नमः ॥
श्री कुंदकुंदाचार्य चरित्र.
(इस्वी सन पूर्व ५०० वपेनो जनोनो संक्षिप्त इतिहास )
अनुवादक अने प्रकाशक
मूलचंद किसनदास कापड़ीआ, ऑ. संपादक, "दिगंबर जैन " -सूरत. यात
वडोदरा निवासी शा. गीरवरलाल नारणदास मघवी तरफधी नेमना स्वर्गवासी व जमनादासना स्मरणार्थ 'दिगवर जैन' पत्रना ग्राहकोने मातमा वर्षमा
( प्रथम ) भेट.
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13405
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१७००० पुस्तको मफत !!
उपलं मथालु वाचीने वाचको अजब थता हशो के आ १७००० पुस्तको मफत मळवानी वात शु खरी हो । प्रिय वाचको, एमा जराए शका लावशो नहिं. ए वात तद्दन खरीज छे ते तमे जाणता तो हशोज अने न जाणता हो, तो हु जणावु छु के सुरतथी हिंदी-गुजराती बन्ने समीलीत भाषामा प्रकट थता, आखा हिंदुस्तानमा जाणीता मासिक पत्र ‘दिगवर जैन" पत्रना ग्राहकोने मात्र रु. १॥ ना वार्षिक लवाजममाज दरेक वर्षे लगभग १० पुस्तको तद्दन भेट ( मफत) मळे छ (अने ते उपरात वीरनिर्वाण उत्सवनो भाशरे १५०-२०० पानानो अने ५०-६० चित्रोवाळो पाच भाषाना लेखोथी भरपुर दळदार खास अक पण मफत मळे छे) जेथी ए पत्रना सातमां वर्ष (वीर सवत २४४०) ना लगभग १७०० ग्राहकोने कुल्ले १७००० पुस्तको मफत वेंचावानाज छे. केम वाचको, हवे तो तमारी खात्री थई केनी के उपलु मथालु खरुज छे, त्यारे हवे तमे ए लाभ मेळवता हो, तो बीजाने ए लाम मेळववानी प्रेरणा करो अने तमे जो ए पत्र पारकानुं लावीने वाचता हो, तो जातेज ग्राहक थई जाओ.
मेनेजर, दिगंबर जैन-सुरत.
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दिगंबर जैन ग्रंथाला..
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C
॥ श्री वीनरागाय नगः॥ श्री कुंदकुंदाचार्य चरित्र. (इस्त्री० सन पूर्व ५०० वर्षनो जनोनी मलित टनिहाय)
अनुवादक अन प्रभागक, मूलचंद किसनदास कापडिआ.
ऑ. संपादक, "दिगंबर जैन"-गात.
प्रथमावृत्ति. चीर संक्त २४१० प्रति
बटोगनिवासी शा० गीरघरलाल नाणदाम संघर्ष तरफी तेमना म्वर्गवासी भाई जमनादामना सणारये "दिगबर जैन" पत्रना ग्राहकाने मानमा वर्षमा
(प्रथम) भेट.
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मूल्य रु. ०-:
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Hema
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प्रस्तावना.
લગભગ સાત વષઁ ઉપર ખાસ્ટ્સ (સાલાપુ)નિવામી નૃણીતા જૈન તિહાસ શેાધક શ્રીયુત તાત્યા નેમીનાથ પાંગલે શ્રીમાન્ કુંદકુંદાચાર્યનુ જીવન ચરિત્ર' પુસ્તકરૂપે મરાઠી ભાષામા પ્રકટ કર્યું તુ, તેમાં જૈન પ્રતિદ્વાસને લગતી બાબતે અતી જાણવાલાયક હોવાથી માએ આ ચરિત્ર · દિગ ખર જૈન ' પુત્રના પ્રથમ વર્ષમાં ગુજરાતી અનુવાદ કરીને પ્રકટ કર્યું હતુ, જે પ્રકટ થવાથી જૈન ઇતિહાસથી ગુજરાતના વાચા કેટલીક રીતે જાણીના થયા અને દિગમ્બરી મત પ્રથમનેાજ અને કેટલા પ્રાચીન છે તે સર્વેને વામા આવ્યુ. આદ આ પુસ્તક કરીને પુસ્તકરૂપે પ્રકટવ'ની માગણી અનેક વખત અનેક ગ્રહક્થા તરફથી થયા કરતી હતી, તૈયી અનાએ તેજ લેખ એટલે આ કુટુંદાચાર્ય ચરિત્ર” ગુજરાતી ભાષામા અને આાળમેધ લીપિમા પુસ્તકરૂપે પ્રકટ કર્યું છે, જે સર્વે વાચકે ને એક અચ્છી ઐતિહાસિક સામગ્રી પુરી પાડગેજ એમ આશા છે. વળી આ પુસ્તક સર્વેને સહેલાથી વિનમર્યેજ મળી ાય, તે માટે વાદરા નિવાસી શા દેશવલાલ ત્રીભોવનદાની પ્રેાથી ત્યાના શા, ગીરધરલાલ નારણદાસ (ગંગાદાસ) સઘની તકથી તેમના સ્વર્ગવાસી ભાઈ જમનાદાસના સ્મરણાર્થે “ દિગમ્બર જૈન ” પુત્રના ગ્રાહકોને સાતમાં વર્ષની પ્રથમ ભેટ તરીકે પ્રકટ કર્યું છે. અમે એજ ઈચ્છીએ છીએ કે આવીજ રીતે મૃત્યુના મણાર્થે શાસ્ત્રાન માટે કમા નીકળતી રહે અને તેના લાભ “ દિગમ્બર જૈન ના વાચકાને હરહમેશ મય્યાજ કરે તથાસ્તુ
જૈન તિ સેવક
વીર સ, ૨૪૪૦ ફાગણ સુદ ૮.
}
મૂળચદે સનદાસ કાપડીઆ-સુરત
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॥ श्रीनिमय नमः ।।
में श्री कुंदकुंदाचार्य चरित्र. RREARRESPECIARRIArea (इ. स. पूर्वे पांचसो वर्षनो जेनोनो
संक्षिप्त इतिहास.) मंगलं भगवान्वीरो मंगलं गौतमो गणी।
मंगलं कुंदकुंदायो जैनधर्मास्तु मंगलम् ।। भरतखंडना इतिहासमाधी इस्वीसन पूर्व त्रणे चार शतक पर्यंतनो काळ अथवा तेनी पछीना वे त्रण शतकपर्यंतनो काळ अमूल्य एवा विद्वान नररसोथी एकदम परिप्लुत हतो, एवं इतिहास जोनारामो तरतज समजी सकगे, कारण के ते काळे गौतम बुद्ध जेवा महर्षि, चाणक्य नेवा राजकारस्थानी पुरुष, चंद्रगुप्त, अशोक, विक्रमादित्यादि सरखा दयालु, धार्मिक मने शूर राजा हता पने कालिदास, भवभूति भने नाण सरसा उचम कवि मने प्रयकार उत्पन्न थईने पोताना उदार धर्मन
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दिगंबर जैन
त्वथी, राजनीतिथी अने कवित्व शक्तिथी पोताने स्वतः अजरामर करी गया छे; वळी विशेषे पोतानी संस्कृतिथी हिंदुस्ताननो ईतिहास सुद्धां अलंकृत करी गया छे. आ तेयोनी सत्कृतनी मोटाई के वी रीते वर्णवी शकाय ? पण आ काळमां थई गयेला जैन लोकोना महान् महान् सत्पुरुपोना ईतिहासमांथी नाम निर्देश पण न रहे ते जैन लोकोने मांट केटली बबी दुर्दैवनी बात छे ? इसवीसन पूर्वे पाचसो छसो वर्षथी ते इसवीसन पछी सुमारे एक हजार वर्ष पर्यंतनो काळ जैनोनो घणो महत्वनो हतो. याम होवा छतां जैन विषये इतिहासमां घर्जुन अज्ञान रह्युं छे ते मोटी आश्चर्यकारक वात छे तेमां शंका नथी.
जो जैनोनी व्यवसाय दृष्टिनो विचार कर्यो होय तो एटलं तो समजाशे के आज तेस्रो आटला वधा अज्ञान छे तेनुं कारण बराबर छे, कारण के जैन लोकनो राज्यकारभारमां सार्वभौमना संबंधमां घणो थोडो हाथ हतो; किं बहुना हतेोज नहि ए कहेवुं पण चाली शकशेज. ज्यारे संस्थानिकना सबंधमा जैन लोकोनुं प्रावल्य दक्षिणमा म्हैसूर, कर्नाटक अने उत्तरमां बंगाल, बहार, गुजरात, राजपुताना वगेरे प्रातमां घणुं हतुं एम हालना इतिहास परथी तेमज तत्कालीन शिला लेखोपरथी समजाय छे. पूर्वना म्हैसूरना महाराजाना चार प्रतापी वा भाग्यशाली वशज जैन
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र.
धर्मी हता एवं शिला लेखोपरथी समजाय छे, तेवीज रीत रामपुताना, गुजरात-काठीयावाट मातमां जैनानुं पणुं प्रारल्य तु एवं इतिहासपरथी देखाय छे. आ राजाभए सार्वभौमत्व माटे अथवा राज्य माटे प्रयत्ना न कर्ता होवाथी तेमना संबंधे कदाचित् इतिहासकारोथी अज्ञात रहेवायुं हमे ए एक कारणएटले “जितो रागपादयोः येन स जिनः" अर्थात जैन लोक पोताना मनने जीतीने काम क्रोधादि मनोविकार रिमोने निर्बन्त्र करनार त्यारे तेने ( कदाचीत् ) राज्यनो लोभ क्यांधी होय ! होय तो तेमो पोतानुं राज्य दया अने न्यायधी पालन फरीने वृद्धावस्थामां दीक्षा लईने पोताना पुत्रने राज्य भारता होत. आनां सारं उदाहरणो इसवीसन पछीना हवार दम मालम पडशे.
खंडेलपुरना राजा जिनसेन - जेणे महा पुराण रच्तुं तेनुं, तेमज मंदसोर, पटना वगेरे स्थळोना राज्योनां आवाज उदाहरण मळी आवशे. आकारणी कदाचिन इतिहासकारोए तेओने अज्ञात रहेवा दीघा हो; आ बीजुं कारण. सिवाय जैनोना अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामीना निर्वाणपद पाम्या पी जैनना इसवीसन पछी भेळववानी भाशा
साम्राज्यनुं शरणं कमी कमी थतुं गयुं तेमज हजार वर्ष पछी तेभए स्वराज्य
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दिगंबर जैन. छोडी व्यापारी, धंधो तुरतने माटे ग्रहण कर्यो ते लीजें कारण. आ त्रण कारणोथी इतिहासमा जैनोनुं घणु प्रावल्य हतुं, कारणके धर्म संबंधी चळवळ अने सुधारणा संबंधने लईने जैनोनो उपर लखेलो काळ घणोज महतनो हतो एवं इतिहास परथी ठरे छे, ए सिवाय जैन संस्कृत वाङमय-साहित्य दृष्टिथी विचार करतां उपरोक्त काळ घणोज महत्वनो हतो एमा शंका नथी. आ कारणथी तो जैनोने इतिहासमां स्थळ आप्युं होत, तो घणुं सारं हतुं!! ____ अस्तु, उपर निर्दिष्ट करेला इसवी सन पूर्व पांच छ शतकनो अथवा ते पछीना सुमारे एक हजार वर्षना काळमांना जैन धर्मीय महत्व पछी अनेक व्यक्तिओ थई गई. श्रीमहावीर स्वामी सरखा धर्मनुं पुनर्जीवन करनार, जंबुकुमार, जीवंधर, वगैरे सरखा पराक्रमी राजा, गौतम (गणधर-बुद्ध महि), भद्रबाहु, कुंदकुंदाचार्य, उमास्वामी, समंतभद्र, जिनसेन, गुणभद्र, नेमिचंद्र, मानतुंग वगेरे सरखा अनेक उत्कृष्ठ वाडमयना कर्ता, उपदेशक, धर्मग्लानि समये उत्तेजन देनार अथवा निःस्वार्थ एवा पुरुषो उत्पन्न थई गया. आ मोटामोटा नररत्नोए संस्कृत वाङमयनो असंख्य रत्न भंडार धर्म ग्रंथोना रुपमा गुप्तपणे एटलो अघो मूक्यो छे के तेनुं परिशीलन करवाने आजेः-अनं.
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र, तपारं किल शब्दशास्त्री स्वल्पं तथायुर्वहवश्च विनामा आ श्लोकने अनुसरी-आटला मानवी प्राणीआनुं आयुष्य पुरुं थाय के नहि ते शंका रहे छे.
हवे साहसिक एवो प्रश्न उत्पन्न थाय छे के जो जैनोनो आटलो अमूल्य संस्कृत वाङमयरुपी रत्न भंडार छे, तो ते आ अद्यापि सर्वना निदर्शन माटे बहार केम आवतो नथी ! कालीदास, भवभूति, बाण, एना ग्रंथ लोकोनी पासे केम जोवामां आवे छे ? आनो आ उत्तर बस थशे के युनिवर्सिटिए उपरोक्त कर्तानां पुस्तको शिक्षण क्रममा नीम्या अने ते योगे सर्वने तेमनो रस चाखवाना समय मळ्यो एटले लोकोनी ते ग्रंथ विषये पूर्ण ओळख थई छे अने थाय छे. जो युनीवर्सिटी न होत तो ते ग्रंथोनी आजे नीकळती हजारो लाखो आवृति नीकळी होत के नहि ते जैनोना वाङमयात्मक ग्रंथो संबंधे जे थयु छे, ते परथी समजी शकाशे. आ परथी समजाय छे के जे तरेहना, जे जातिना, अने जे मतना लोक होय ते प्रमाणे तेओ पोतानी ज्ञातिने, पोताना मतने, पोताना धर्मने अथवा पोताना वाङमयने आगळ लाववामां यत्न कर्या करे. आज पर्यंत आपणा जैन लोको पैकी युनीवर्सीटी मध्यमाथी पपा यत्न करनारी व्यक्ति एक पण नहोती. वळी आपणा जैन
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दिगंबर जैन. वाडमयनुं वळ आगळ कोण लावे छ । पोतानां वाळकोनी अव नति अने पारकानी उन्नति करवी एटली निःस्पृहता बतावता जितस्वार्थ माता पिता कोई ठेकाणे पण कोइए जोया छ ? आवीज जैन वाडमयनी स्थिति छ । त्यारथी ते आज सुधी आपणे जैन लोकोनी उन्नतिनी खरी दिशा समनता नथी तेथी अथवा प्रस्तुत देश, काल, वर्तमान (क्षेत्र, काल, भाव) ने अनुसरी शुं करवू जोइए ते आपणा लक्षमा (मापणी सामाजिक परिस्थितिने लइने) आवतुं नथी तेथी मापणने खरो मार्ग मळ्यो नथी; पण आज पोतानी, पोताना समाजनी, पोताना थर्मनी अने पोताना देशनी उन्नति करनार जैनोए शुं करवू जोइए, वे दिशा देर्शाववामां श्रेय रहेलं छे एQ आपणा देश बंधुना मनमा होवू जोइए, पण तेओना मनमा आ संबंधी घणो थोडोज विचार होय छे. पोतानी रोटलीपर घी नांखो एटले 'यी चोपडा' एवी मोटी वुमो पाडी तओ बोले छे, तेथी तेज रीते वीजा पण पोतानुं मौन्य छोडी तेओर्नु अनुकरण करे. पण आनी थोडी घणी पण दाद लागशे ! तनी स्थितिनुं आपणे अनुकरण करवू जोइए; अने आजना निःस्पृही अने दयालु अमेज सरकारनुं राज्य होवाथी भने तेमनी राजनीति अनुकरणीय होवाथी पूर्वना
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. काळमां जैन विषये रहेलो हस्तिना पीडयमानोऽपि न गच्छे. जिनमंदिरम् ।। सापने जतो करवो पण जैनने "मारवो"जे एक पोकळ तिरस्कार केवळ जैनना संघनी शक्तिना अभावने लइने दीसतो हतो तेनो आज घणोखरो अटकाव थयेलो छ, अने जैनोनी खरी उन्नतिनी आ शतकमां.शरुआत थइ छ एटले कहेवानुं तात्पर्य ए छे के प्रत्यवाय तो बीलकुल देखातोज नथी. केवळ द्वेष वुद्धिथीज जैनोना साहित्यने शुं पण जैनोने सुद्धा आपणा प्रेमाळ देशबंधु तरफथी अर्घ चंद्र मळ्यो हतो, पण हुं खात्रीथी कहुं छु के आपणी दक्षिण महाराष्ट्र सभाए जे क्रम स्वीकार्यों छे, ते जो सर्व जैन संस्था स्वीकारशे, तोपरिणाममा सर्वमांथी एकदम उन्नतिए पहोंचनार यहेला जैनज थशे. आथी सर्व लोकने(जापानी लोकने माटे हाल कहेवाय छे तेम)आश्चर्य श्रशे ! जैन बाडमयनां खरां मर्म अने महत्व जाणनारा पंडितो हाल जर्मनी सुद्धामां पडया छे. काल दास, भवभूति सरखा कवि-शा माटे आगळ आवे छे ? अने हरिश्चंद्र (धर्मशर्माभ्युदय कान्यना कर्ता), वाग्भट्ट (नेमिनिर्वाण अने अलंकार शास्त्रना कता), वीरनंदी [चंद्रप्रभ काव्यना कर्ता], वादिभसिंह(जीवंधर चम्पूना कर्ता), गुणभद्र [आत्मानुशासनना कर्ता], आवा अनेक जैन विद्वानो अप्रसिद्ध का रहे ए समजवानो समय नजदीकज
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दिगंबर जैन.
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आव्यो छे. ज्यां निःस्पृहताए खरेखर वास कयों छे त्यां कोइ
वखते पण
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काळो ह्ययं निरवधिविपुला च पृथ्वी ॥ ( भवभूति.) आ उक्तिने अनुसरनार सत्यनोज विजय थया वगर रहेनार नथी. अस्तु, प्रस्तुत आ संबधे आटलुंज लखी हुं मुख्य विषय पर वकुं छं.
ए
आ उपर निर्दिष्ट करेला काळथी जैनेतरोने एटले जैन सिवाय अन्य लोकने अज्ञात रहेला अनेक पुरुष थह गया, में जुदुंज कही दीधुं छे. ते काळमां जैन धर्मना विद्वान शिरोरत्न पट्टाचार्योमां आद्य भट्टारक श्रीमान १००८ श्री कुंदकुंद आचार्य दिगंबर मुनि - जेणे, जैनोना वे पंथना दिगम्बर अने श्वेताम्बरमा प्रथम उत्पत्ति दिगम्बरोनी थह अने पछी श्वेतांवर उत्पन्न थया, ए वात ते काळनी समाजने दर्शावी आपी हती अने ते काळे समाजनी महान् सुधारणा करी हती तेओ थइ गया, तेमनुं संक्षिप्त चारित्र आज भारतवासी सर्व वाघवोनी समक्ष सादर रजु करूं छं. ते चरित्र लखवा पहेला अनोना अतिम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामीना निर्वाणकाळथी ते श्री कुंदकुंदाचार्यनी उत्पत्ति थइ ते पर्यंतनी थोडी ऐतिहासिक मा -
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. हीति क्रमेक्रमे आपवी उपयोगी थह पडगे एवं धारी ते माहीति क्रमे आगळ दाखल करुं छु.
श्री कुंदकुंदाचार्यतुं नाम नहि जागनार एवो एक पण मनुप्य जैनोमांथी मळवो मुश्केल छे. इस्वीसन पूर्व ५२६ मा वर्षमा श्री महावीरस्वामी तीर्थकर मोक्षे गवा, ते समये वाद्धोनो प्रसिद्ध राना चिंबिसार जे जैनपुराणमां श्रेणिक राजा ए नामथी प्रसिद्ध छे ते थइ गयो. ए प्रथम कट्टो बौद्धधर्मी हतो, तेने बे स्त्रियो हती; एक जैनधर्मी 'चलनादेवी' अने वीजी बौद्धधर्मी 'वुद्धमती'. ते समये जैन अने बौद्ध धर्माने घणुं वैषम्य हतुं तेम बौद्धमती राणी ग्रेणिकराजाने जैनधर्म विरुद्ध कहती हती. राजा पण काइ अविद्वान नहोता. तेणे वुद्धमती राणीना गुरुनी अने चेलनादेवीना गुरु दिगम्बर मुनिनी स्वतः परीक्षा करी. परीक्षाने अंते सुवर्ण हतुं ते मुवर्ण ठयं अने पीतळ ते पीतळ ट्यु. बौद्ध गुस्नी परीक्षा कर्या पछी ते केवळ दांभिक हतो तेम जणायुं, पण ज्यारे जैन दिगम्बर मुनिनी परीक्षा करवाने वनमा गयो के तरतज चेलनादेवीए कयु हतुं के जैनमुनि ए शांत परिणाममा होय छे, तेथी राजाए धायु के तेनी स्वत'कसोटीथी परीक्षा करवी ए योग्य छे, तेथी वनमा योग धारण करी ध्यानस्त थयेला दिगम्बर मुनिना गळामां एक पासे पडेला दुष्ट
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दिगबर जैन, काळा भयंकर सापने नाखी दीयो, पण आटलो भयंकर उपसर्ग मुनिने कर्या छतां मुनि ध्यान विरत थया नहि; वळी ते राजा आवृत्तात कहवाने चेलनादेवी पासे गयो. तणी आ जाणी व्याकुल चित्त थइ एकदम दोउती माची, अने मुनिने नमस्कार करी पोताना पतिए करेला अपराध बदल आलोचना करवा लागी लेणीए त्या सर्पने नोयो, के तरतज तेणीना कामळ हृदयह विदारण थयु ते सर्पने लाखो कोटी जाईने मुनिने थता त्रास बदल तेणीने अत्यंत दु ख थयु, अने एक्दम गळामाथी साप काढवा तत्पर थई, पण ते साय काडवार्थी लाखो जीवनी (कोडीनी] हींसा थशे, तेथी तेणीए दूत पासेथी साकर मगावी एक बाजु वेरी के तरतज कीडीओ साकर उपर आवी साप उपरथी उतरी गइ अने पिपिलिका रहित सर्प एकलो गळामा रह्यो. पछी ते सर्प काढी नाख्यो भने मुनिए ध्यान विसर्जन कर्यु. पछी रामा श्रेणिकने पोताना कृतकर्म बरल पश्चाताप थयो अने जैनधर्मनी सत्यता भासया लागी अन जैनधर्म ग्रहण को. पछी श्री महावीरस्वामीने तणे असंख्य प्रश्न पूछी पोतानी शकाभानु समाधान कयु. आ राजानी हैयातीमाज तेना एक पुत्रे जिनधर्मनी दीक्षा लीधी. आ राजा घणो न्यायी हतो. साराशक मा विविसार (श्रेणिक) राना श्री महावीर स्वामी
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. नो समकालिन हतो. आ राजा पछी तेनो पुत्र 'कुनिक' के ने गादीपर बेठो ते बौद्ध हतो. तेणे पोताना वापने केदमा नांख्यो हतो. आ वंशमाथी पछी गादीपर नंदराजा, चंद्रगुप्त, अशोक, वेठा हता. आ राजानी राजधानी पटणा (पाटलीपुत्र) हती.
श्री महावीरस्वामीना समयमां गौतम (गणधर) थई गया, ते गौतमना संबंधमां घणो वाद रहेलो छे. कोई तेने चौद्धधर्मना संस्थापक कहे छ, केटलाक तेने शाक्यमुनि ए नामथी ओळखावे छे, पण आनी माहीती जैनग्रंथोमांथी एवी मळे छ के ते महान विद्वान ब्राह्मण हता. तेमनुं नाम इंद्रभूति द्विज हतुं. तेमनु अभिमान जोइने एक जणे तेमने निचला श्लोकनो अर्थ पुछ्यो हतोः
काल्यं द्रव्यपदकं नवपदसहित जीव पटकायलेश्याः । पंचान्ये चास्तिकाया व्रतसमितिगति ज्ञानचारित्रभेदाः ।। इत्येतन्मोक्षमूलं त्रिभुवनमहितैः प्रोक्त मर्हन्दिरीशैः। प्रत्येति श्रद्धधानि स्पृशति चमतिमान् यःस वैशुद्धदृष्टिः ॥१२॥ ____ आ श्लोकपर पुष्कळ प्रयत्ल कों, पण अर्थ समजवामा तेनुं कई चाल्यु नही; त्यारे तेणे पोतानुं मान छोडी श्लोक
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दिगबर जैन. विचारवा माटे 'तारो गुरु वताव" एम सामाने का, तेथी ते माणस ते विद्वान् पण मानी द्विजने श्रीमहावीरस्वामी समक्ष लई गयो. ते द्विज वीतरागमुद्रा जोईने गतमान थई गया अने जैनधर्मनी पूर्ण माहीती मेळवी जैनी बन्या. तरतज तेओए श्री महावीरस्वामीना समोशरणमांनी वार सभामा मुख्य व्याख्यातानी पदवी मेळवी, पछी तेणे ते समामां राजा श्रेणिकने तथा अनेक जीवोने तीर्थकरनी वाणीनो धर्मोपदेश को. महावीरस्वामी निर्वाण पद पाम्या पछी केटलांक वर्ष भरतखडमा फरी धर्मोपदेश करी १२ वर्ष पछी गौतमस्वामीए निर्वाणपद प्राप्त कर्यु.
आ पछी सुधर्मास्वामीए तेबीज रीते धर्मोपदेश कयों. आ पछी जंबूस्वामीए तेज कर्तव्य स्वीकार्य. तेमनुं शरीर अति सुंदर हतुं. तेमणे केटलाक दिवस राज्य कर्या पछी दीक्षा लई ३८ वर्षो धर्मोपदेशना काममा गाळ्या. महावीरस्वामी पछी ६२ वर्षमा थई गयेला गौतम, सुधर्मा अने जंबूस्वामीने केवली हे छे, त्यार पछी विष्णुकुमार, नन्दिमित्र, अपराजीत, गोवर्धन अने भद्रबाहु ए पाच विख्यात मुनि थई गया. आने श्रुतकेवळी कहे छे. आ पांच, १०० वर्षमां थई गया एटले श्री महावीरस्वामी पछी १६२ वर्षमा थइ गया. अर्थात् इ. स. पूर्व ३६४ वर्षमा थइ गया. भद्रबाहुना समयमां चंद्रगुप्त राजा थइ गया.
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. जैन ग्रंथमां वे चंद्रगुप्तनुं वर्णन छे, ते वंने संबंधी उल्लेख क्रमें क्रमे करवामा आवशे. आ उपरथी वे चंद्रगुप्त नुदाजुदा थई गया होवा नोईए ए, अनुमान नीकळे छे, पण ते नछी करवाने आथी वीज प्रमाणो बोईए.
पूर्व पाटलीपुत्र (पटणा)मा 'नंद' ए नामनो राजा राज्य करतो हतो तेने शकट, नंद, सबंधु अने काची ए नामना चार मंत्री हता. तेओनी साथे राजा आनदथी राज्य करतो हतो. एक वखत ते राजा पर शत्रुए सवारी करी. राजानी पुष्कळ सेना होय तोन आ प्रसंग लडवानो छे, तेथी राजाए शकट' मंत्रीनी सलाह पुछी, त्यारे शकटे राजाने कयु के-हुँ सैन्य पार्छ फेरवु, पण मने ले गमे ते करवानी परवानगी आपो'. राजाने या वात पसद पडी अने तरतज शकटे राजा पासेथी नीकळी कोशागार [तिजोरी]माथी पुष्कळ द्रव्य आपी तेनुं सैन्य पार्छ वाळ्यु. पछी एक दिवसे राजाए पोताना कोशागारनी तपास करी, तो द्रव्य थोडं लाग्यु, त्यारे राजाए खजानचीने ते बावत पुछतां तेणे सर्व हकीकत निवेदन करी. तेथी राजाने क्रोध आल्यो भने तेणे शकटने तेना छैयां छोकरां साथे केदमां नाख्यो, त्यां तेना कुटुंबनां सर्व माणसो दुःखी थई गतप्राण थया अने फक्त शकट एकलो रह्यो. पुनः ते नंद अनापर. शत्रुए.
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दिगंबर जैन. चढाइ करी, त्यारे ते राजाए शकटने बंध मुक्त करी तेनी सलाह पुछी, त्यारे शकटे "राजाने केद न करो, हुं सैन्मने पार्छ मोकलावु छु' एवु कही पोते परसैन्यना सेनापतिने मळी नन्द तरफनी दहेशत तेना मनमा नगाडी अने नन्दनु सैन्यवळ चतावी ते सैन्यने पाछु मोकलाव्यु, त्यारे राजाए पुनः तुष्ट थई सचिन--पद तने आपवा माङयु. जवावमां शकटे कयु के ने पढवीथी मारी कुटुबीय मंडली मरण पामी, ते पदवीज मारे जोईए नहि. पछी ते पोते संतुष्ट थई राजानी पासेज रह्यो.
___ पछी ते एक वखत फरतो हतो, त्या रस्तामां एक चाणक्य नामना द्विनने दर्भ खणतो जोई तेने पुच्यु--"उगेला दर्भने शा माटे खणे छेा त्यारे चाणक्ये उत्तर आप्यो के तेनुं कारण ए छे के मारे फो वाग्यु तेथी हुँ तेने खणु छु, कारण के आपणने दु ख देनारने निर्वश करवो तेज उचित्छे." आ बात शकटने गमी. जेणे आपणा कुटुंबनो नाश कर्यो ते नंद राजानोज निर्वश करवो एवो घाट तेणे घडयो. आ कार्य माटे तेणे चाणक्यने पोताने आश्रये राख्यो. पछी शकट अने चाणवय बनेए परराजा तरफ गमन कयें अने ते रानाथी नंदनो 'पराभव कर्यो अने चाणक्ये लावेला चद्रगुप्तने नंदनी गादीपर बेसाडयो. आ प्रमाणे बोलेला वचन खरां को अने पछी संसार
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र.
१६ मां काई सार नथी एवु समनी शकटे जिनदीक्षा लीवी. पछी शास्त्र पठनमा पोतानो सर्वकाळ छेवट सुधी गाळ्यो. अही सुधी शकटतुं आ अल्प चरित्र, आ परथी एक तो शकट जैनी हतो एबुं ठरे छे, बीजु शाकटायन व्याकरण नामनो जे ग्रंथ छे,तेनो कतो पण आज (शकट) हतो एवु अनुमान काढी शकाय छे. आ वात वे हजार वर्ष पूर्वेनी छे, त्यारे उपरना अनुमान बहुधा खराज छे एवं लागे छे
शकटे, चाणक्ये आणेला चंद्रगुप्तने गादीपर बेसाडवाथी ते राज्य उत्तम रीतिथी चालवा लाग्युं ते जैनधर्मी हतो, एवो जैन ग्रंथमाथी उल्लेख मळी आवे छे आ प्रथम 'चंद्रगुप्त'. तेना पुत्र जे बंधुसागर तेणे पोताना पिता पछी राज्य चलावी छेवटे पोताना पुत्र 'अशोक' ने राज्य सोपी पोते दीक्षा लीधी. आनो धर्म संवधी काइ स्पष्ट उल्लेख नथी अशोक सर्व कळामां निपुण हतो तेथी तेणे सर्व राजा अने शत्रुने जीती पुष्कळ देशो कबजे कर्या. तेणे पोताना बुनाळ नामक पुत्रने विद्वान वनाववा माटे एक गुरु पासे मोकल्यो. ते गुरुए तेने नित्य शाल्योदन खबरावी अध कर्यो. पछी अशोक ज्यारे भूमंडळ फरी आव्यो त्यारे पुत्रनी स्थिति जोई तेने खेद थयो त्यारे तेणे पोताना पुत्रने एक सुदर राजकन्या साथे लग्न करावी आप्यु. पछी ते
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दिगंबर जैन. उभयने चंद्रगुप्त नामनो पुत्र थयो. तेने राज्यारोहण करी अशोक दीक्षा लीधी अने चंद्रगुस राज्य करवा लाग्यो, आ बीजो चंद्रगुप्त ___आ चंद्रगुप्त जैनी हतो, ते संबंधी पूर्ण आधार छे. आना समयमा भदवाहु आचार्य विद्यमान हता. ते राजा जैन धर्ममां घणो निष्णात हतो. ते एक वेळा निद्रामा हतो त्यारे नीचे आपेला सोळ स्वप्न कही तेनी फलश्रुति पुछी. आ सोळ स्वप्नो खरेखर घणां मजेदार अने सापत स्थितिने मळता आये छे तेथी तेने फलश्रुतीसह अहीं नीचे लखु छु--
सोळ समो भने तेनां फळो. १. कल्पवृक्षनी डाळ तूटेली दीठी. फल-आ पचम [कलि] कालमा घणाज थोडा
लोको जिनदीक्षा लेशे. २. सुर्यास्त थयेलो जोयो. फल-पंचम काळमां भद्रवाहू पछी पूर्ण अंभपूर्व
झन धरावनार रहशे नहि. ३. चंद्र चालीणी सरखो सछिद्र जोयो.
फल-जिनशासनमा अनेक भेद पडशे. ४. बार फेणवाळो सर्प जोयो.
फल-बार वर्षनो दुष्काळ पडशे.
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. ५. देवोनुं विमान उपर पार्छ जतां जोयु. फल-पंचम काळमा चारण मुनि विद्याधर आ
भूमिमां आवशे नहि. ६. उकरडापर कमलोत्पत्ति. फल-बहुधा वैश्य लोक मात्र जैनधर्म पाळशे.
ब्राह्मण अने क्षत्रि अन्यमती थशे. ७. संतोनुं वृंद नाचतुं जोयु. फल-आ पंचमकाळमां मनुप्यो चंडी, मुंडी, मैरगति
नाना प्रकारना कुदेवोनी सेवामां रही अनेक
जीवोनी हिंसा करशे. ___ . ८. आगीने चमकतो जोयो. ___ फल-जैनधर्म सम्यक् सविस्तर रहशे नहि अने
मिथ्यात्वनो प्रचार थशे. ९. सरोवर बहुधा सूकुं हतुं तेमा एक बाजु थाडा पाणी
जोयां. फल-जे ठेकाणे जिन कल्याणिक थशे त्यां धर्मनी
क्षीणता थशे. १०. सोनानां पात्रमा कुतरां खीर खाता जोयां.
फल-उत्तम कुळमाथी लक्ष्मी नीचकुळमां रहे
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दिगंबर जैन. ११. वादरो हाथीपर बेठेलो जोयो. फल-पंचम काळमां नीचं लोक राज्य करशे. क्षत्रिय
राजा काइ रहेने नहि. ११. समुद्रमर्यादानुं उल्लंघन जोयु. फल-पंचम काळमा राजा लोक अन्यायी अने नीति
भ्रष्ट थइ परवित्तनुं हरण करशे. ..१३. महारथने नाना वाछरडा जोडेला दीठां.
फल-वृद्धावस्थामा दीमा पळाशे अने तरुणपणामां
क्वचित् कोइ दीक्षा लेशे. १४. राजपुत्र उंटपर वेटेल जोयो.
फलाजा लोक धर्म अने दया न करतां हिंसा करशे. रत्नराशीमां माटी मेळवेली जोइ.
फल-राजा लोक निग्रंथ मुनिनो द्रोह करणे. १६. वे काळा हाथी लडता जोया. .. फल-ज्यां जोइए त्यां पर्जन्य (मेघ) पडशे नहि.
आ प्रमाण स्वप्नोंनी फलश्रुति 'जाणी राजा चंद्रगुप्तने अति दु ख थयु अने उदास थवो. भद्रबाहु मुनीए पण हवे वार वर्षको दुष्काळ पडने एवँ जाणी पोताना शिप्यो साथे दक्षिण देशमा विहार करता जवान ठराव्यु. चंद्रगुप्ते राजनी
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र.
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भावी स्थिति भयप्रद धशे, एवं जाणी भद्रबाहु मुनि पासे | दीक्षा लीघी अने तेणे तेमनुं शिष्यत्व स्वीकारी तेमनी साधे रहेवा लाग्यो.
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भद्रबाहु मुनीए पण पोताना १२ हजार शिप्यो साथै, | दक्षिणमां नवानुं ठराव्युं, पण ते स्वत. अवधिज्ञानी (अंतर्ज्ञानी) होवाथी पोतानो अंत थोडा वखतमांज धवानो छे एवं जाणी योवाना 'विशाखा' नामक शिप्यने पट्टाचार्यनो अधिकार आप्यो, अने तेने दक्षिणमां रवाना करी पोते ध्यानस्थ रह्या, त्या रे चंद्रगुप्त पण वाकीना शिप्यो साथै दक्षिणमां न नतां गुरु पासेन रह्या. ते बार हजार पैकी रामाचार्य अने एक बे हजार आचार्ये पटणामां केटलाक श्रावकोए आ भयंकर दुष्काळमां संभाळ लेवानी विनति करवाथी पाटली पुत्रमा रह्या भा विनंति भद्रबाहुना शिष्याने करी हती, पण मोनी विनंति पर लक्ष न आपतां तेओ दक्षिणमां ठेठ गया. बंगालामां सांभळेला भविष्य प्रमाणे जेम जेम दुष्काल • पोतानुं उग्र स्वरुप प्रकट करवा लाग्यो, तेम तेम रामाचार्यादिकनी नित्य क्रिया डोलायमान थवा लागी, हुष्काळने -लइने पटणामा रहेला आचार्योनी एव भयभीत स्थिति थह के एक दिवस त्यां एक मुनि आहार लेवा जतां ए भुखथी
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दिगंबर जैन. पीडित एक मनुष्ये ते मुनिने जोइने तेनुं खून कीg अने मुनिनुं पेट फाडौ तेमाथी अन्न भक्षण कयु. आ वांत बाकीनामोए रामाचायेने कही, त्यारे तणे रात्रीमा माहार लेवा जवु एवं ठराव्यु. पण पछी रात्रीए आहारे जता कुत्री मुंकवा लागी त्यारे तेणे आहारे जतां एकेक लाकडी लइ जवान ठराव्यु ! पछी एकदा एक मुनि आहारे जता हता तेने एकदम एक गर्भवाळी स्त्रीए जोया. यतिनुं रुप जोइ ते सोनो एकाएक गर्भ पडी गयो, आ सर्व वृत्तात पुनः रामाचार्यने निवेदन करता तेणे वस्र भने पाघरण वापरवान ठराव्यु. आ प्रमाणे आ दिगंवरमांथी वीजी शाखा उत्पन्न थइ. आ शाखानु नाम श्वेतांवरीनी शाखा. आ पछी वधतां वती बलाढ्य थइ. गुनरातमां पहुंषा श्वेतांबरी मतनांज लोक जोवामां आवे छे. आवी श्वेतांवरीनी उत्पत्ति छे.
पछी दुष्काळ उतरी गया पछी दक्षिणमां गयेला विशाखाचार्य आदि दश अगीभार हजार शिष्य पाछा आव्या. दक्षिणमा जइने तेणे तीर्थयात्रा करी कर्णाटकमां गमन करी पोतानी वकृत्व शैलीथी सर्वने धर्मोपदेश दीयों अने जैन धर्मनो उत्तम रीतिथी प्रचार कर्यो, पछी आवीने 'रामाचार्य ने मळ्या अने थयेला दोष तेमने दर्शावी कृत अपराध बदल प्रायश्चित
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. लीधु, अने पूर्ववत् मुनि क्रिया प्रमाणे ते चालवा लाग्या. रामाचार्यने स्थूलाचार्य अने बीजा केटलाक शिष्यो हता. तेओ दुष्काळमां प्रचलित थयेली ति वास्तविक धारी स्वेच्छाचारीपणे चालवा लाग्या, अने- तेवोज पोताना शिष्योने उपदेश देवा लाग्या. आ श्वेतांवरीनो मूळ पायो. सारांश के भद्रबाहूना समयमा आ नवीन श्वेतांबरी मतनी उत्पत्ति दिगंबरीमाथी थइ, एटलोज उल्लेख अहीं करवो बस छे.
वीरसंवत् १६२ थी ते २४५ सुधीमां विशाखाचार्य, प्रोष्टिलाचार्य, नक्षत्राचार्य, नागसेनाचार्य, जयसेनाचार्य, सिद्धार्थाचार्य, धृतिसेनाचार्य, विज्याचार्य, बुद्धिलिंगाचार्य, देवाचार्य भने धर्मसेनाचार्य एवा अगीयार भाचार्य भद्रबाहुना पट्टपर क्रमे क्रमे बेसता गया. आ आचार्य ११ *अंग अने दश पूर्व ज्ञानना धारक हता. आ इसवीसन पूर्वे ३६४ वर्षथी ते १८१ वर्ष सुधीमा थइ गया, पछी तेओनी पछी ते पट्टपर अगीआर अंग पाठी आचार्य, नक्षत्राचार्य, जयपालाचार्य, पांडवाचार्य, ध्रुवसेनाचार्य, अने कंसाचार्य ए वीरसंवत् ३४५ थी ते ४६८ सुधीमां थइ गया. एटले इ० स० पूर्वी १८१ वर्षथी ते ५८ वर्ष सुधीमां उपरोक
* नाघ-पूर्व अने अंग संबंधी उन्लख आगळ कयों छे.
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दिगंबर जैन. पांच आचार्य थह गया. पछी एकदम मनुष्योनी बुद्धि कमी थवा लागवाथी पूर्वपाठी ज्ञाननो लोप थयो पण १.१ अंग पैकी, ज्ञान कमी कमी थवा लाग्यु. - त्यार पछी ते पट्टपरःसुभद्राचार्य-१० अंगना धारक ६ वर्ष सुधी. यशोभद्राचार्य-९ , , १८, " बीजा भद्रबाहूजी
, , २३, , लोहाचार्य- ७ , , अंदवली आचार्य
१ , , २८" " मायनंदी आचार्य-, , २१, धरसेनाचार्य , , १९, " पुष्पदंताचार्य- , , ३०, " भूतबळी आचार्य
" " २०" " ___आ सर्व आचार्यो क्रमे क्रमे थइ गया. ते वीरसंवत् ४६८ थी ते ६८३ सुधीमा थया; एटले इ० स० पूर्व ५८ वर्षी ते इ० स० १५७ सुर्धामा-उपरोक्त आचार्य थई गया; एटले
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र.
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|चार्य ज्या पट्टपर ११ मुं वर्ष वेतुं, त्यारथी इसवीसन शरु थयो. तदुपरात बीजा भद्रबाहूनी समयमां विक्रम संवत् ४ हतो. आ संवत् विक्रम राजाना गादीपर वेसवाथी शरु थयो, आ ग्रंथपरथी जणाय छे.
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- विक्रमनो अन्म, ज्यारे सुभद्राचार्यने पट्टपर बेठां वे वर्ष थया त्यारे थयो, एवो उल्लेख छे. विक्रम राजाने बांबीसमे वर्षे सिंहासन मळ्युं एवं ठरे छे. विक्रम संवत्ना समय पछी इसवी सन ३८ वर्षथी शरु थयो, एवं आ परथी ठरे छे, पण वास्तविक शेते आज विक्रम संवत् अने इसवी सन बेमा जे अंतर देखाय छे ते छप्पन वर्षनुं छे, त्यारे विक्रम संवत् ने आज प्रचलित छे ते तेना जन्मथी थयो हशे एवं देखाय छे, कारण के सुभद्राचार्यने पट्टपर ४ अधिक वर्ष, यशोभद्राचार्यनां १८ वर्ष अधिक, बीना भद्रबाहूना २३ वर्ष अने लोहाचार्यना ११ वर्ष मळी ( ४ - १४-२३ – ११=५६ ) एम ५६ वर्ष बराबर मंळी रहे छे.. आ-परथी विक्रम जन्मंथी ते आजनो प्रचलित संवत् शुरु भयो एवं दीसे छे, पण आ संवत् छे एवं टरे छे, सारांश के वीर संवत्ना ४७० वर्ष पछी विक्रम संवत् शरु थयेलो छे, पण वीर सत् विक्रमना जन्मथी चाहयो होय. तो ते बराबर छे. तेना राज्यथी किंवा अंतथी मान्यो होय, तो केटांक वर्ष
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दिगंबर जैन.
तेमांथी वाद थवां जोइए, अने तेथो वीर संवत् कंदक पाछळ जाय. चीर संवत्नो अद्यापि योग्य निर्णय थयो नथी. केटला - कनो मत ( आधारथी ) २५५६ वर्षनो अने केटलाकनो मत २४३२ वर्षनो पढे छे, तो आज पुष्कळ विद्वान गृहस्थो ert सन्माननीय जैन पत्रकारोए २४३२ लखेका छे- प्राथ कर्या छे तेथी हुं पण ते ग्रहण करीने चाल्यो छु जैन इतिहास.
ग्रथकारोए विक्रम संवत् ४ मध्ये थयेला वीजा भद्रबाहूने पट्टना पहेला अधिकारी कर्या छे एनुं कारण एवं देखाय छेके
संवत् शरु थयो त्यारथी आ पहेला स्थपाया एटले आम थयुं.
या पूर्वे थह गयेला अने उपर वर्णवेला आचार्य केवळ कमे
• क्रमे धर्मोपदेश करी गया ते पूर्वाचार्योए पोताना पट्ट शिष्योने . किंवा मुनिने संघना नायकने अधिकार आप्यो इशे एटल ठरे छे. तेना अमुक एक ठेकाणे पट्ट ( गादी ) छे एवो कांह स्पष्ट उल्लेख मळनो नथी. पट्टनी सर्व माहिती भद्रबाहुर्थी अने थोडी 'कुंद कुंद' आचार्ययी मळी भावी छे ते पाछळ लखवामा आवशेज. भद्रबाहून पट्ट उज्जयिनिमां हतो.
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* हाल तो २४४० मु वर्ष चाले छे, पण आ लेख भगाउनो खायलो होवार्थज अने २८३२ लखेला है,
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. पट्टाचार्य- बीजुं मान गुप्तगुप्ती आचार्यने आपेलं छे अर्थात लोहाचार्य, अर्हद्वली आचार्य, माघनंदी, धनसेन, पुष्पदंताचार्य, भूतवळी आ सर्वने पट्ट साथे काइ संबंध न होवाथी तेनो विशेष उल्लेख कों नथी. फक्त ते अंगज्ञानना धारक हता एटलुंज.
वरिसंवत् ४९२ मध्ये अने विक्रम संवत् ४ मा वीजा भद्रबाहु गादीपर ( पट्ट पर ) हता. २२ वर्ष सुधी पट्टारुढ रही तेणे वीर संवत ११४ मां पोताना शिष्य गुप्तगुप्ती मुनिने पट्टाधिकार आप्यो अने पोते ध्यानस्थ थया. गुप्तगुप्ती मुनिए नव वर्ष पट्टाधिकार चलावी वीरसंवत् १२३ मा ते पट्ट माघनंदी आचार्यने आप्यो ते समये श्वेतांवर पट्टनी स्थापनाथइ त्यार पछी माघनंदी आचार्ये ४ वर्ष पट्ट चलावी वीर संवत ५२७ मा एटले विक्रम संवत् ४० मां ते उपर पोताना मुख्य शिष्य 'जिनचंद्र ने बेसाडी पोते ध्यानस्थ थया, ते समये इसबसिन् २ हतो. इसवीसन २ मध्ये जिनचंद्र आचार्य पट्टास्ट थया, ते आपणा चरित्र नायकना मुख्य गुरु अने तेमनु एकदर आयुप्य ६५ वर्ष ९ महीना अने ९ दिवसनु हतु तेने फाल्गुन सुदि १४ ने दिने पोतानी वयना ५६ मा वर्षे गुरु मापनदी आचार्य पासेथी गादी मळी. ते महा मनोनिग्रही हो
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दिगंबर जैन. वाथी सर्व शिष्य तेमनो संयम जोइने अतिशय नमता रहेता । हता. तेणे पोताना सर्व शिष्योने होगीयार करी पोते पोतानी अस्खलित वाणीथी सर्व प्राणी मात्रने धर्मोपदेश करता अने पोतानी ६५ वर्षनी वये पोताना पट्टशिप्य कुंदकुंद आचार्यने स्वतः पोताना-पट्ट उपर देसाडी पोते वननो मार्ग स्वीकार्यों
आ पट्टशिप्य आपणा चरित्रना नायक छे. ते तरफ हवे आपणे वळीए. वांचक वर्ग, नायकनी बहु वात जोइ, पण तेना चरित्र पर्यंत ऐतिहासिक माहिती होवानी जरुर लागवाथी ते अहीं लखी छे. आ नूतन माहिती वदल कंटाळोन खाता उलटथी एक धर्मनी ऐतिहासिक नवीन माहीती मेळवी ने आनंद प्रदर्शित करशो, एवी पूर्ण माशा छे. हवे महावीर तीर्थकरथी अत्यार सुधी नवल विशेषअ॒शुंथयु, तेनो सक्षेप विचार करीए. वांचक वर्ग, थोडी सबूरी करजो. आ माहीति आपने उपयुक्त होय तेवुज छे.
जैन धर्म अनादि छे, तो तेनी स्थापना प्रथम तीर्थकर वृषभदेव-चौदमा मनु नाभिरायना चिरणजीवी-एमणे करी एवो जैन धर्मनो मत छे. जैन धर्ममा विशेष महत्वनी व्यक्ति शं ते तिर्थकर छे ? तीर्थकर एटले धर्म तीर्थना प्रर्वतक तेने ज्ञान मति, श्रुति, अवधि (अंतर्ज्ञान), मन पर्यय (मन भोळखवु), केवल
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. २७ ज्ञान [ त्रैलोकमांना सर्व, स्थावर, जंगम जीवोनु, देवादिकोनु, स्वर्ग, मृत्यु अने पाताल- ज्ञान होवू ते. ] तेनी प्राप्ति थयेली छे. १२ अंग अने १४ पूर्व जेटलं ज्ञान तेओने छे.
१२ अंगर्नु संक्षित वर्णन:
१ आचारांग-मुनि क्रिया, २२ परिषह, २४ परिग्रह वर्णनात्मक शास्त्र,
२ मुत्रकृतांग-देव, गुरु, शाल, धर्मनुं तथा श्रावकोर्नु विनयात्मक शास्त्र.
३ स्थानांग- गृणस्थान अने १४ गुणस्थानोनुं वर्णनात्मक शास्त्र.
४ समवायांग-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, धर्म, अधर्म, ७ नरक, १६ स्वर्ग, वर्णनात्मक शास्त्र.
- ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति जीव, अस्ति, नास्ति, नित्य, अनित्य अने ६०००० प्रश्नोत्तरो.
६ ज्ञातकथांग-तीर्थकरना तथा गणधरना पुण्यनुं वर्णनात्मक शास्त्र.
__ ७ उपासकाध्यन-अहंत देव, निग्रथ गुरु, दय,धर्मर्नु वर्णनात्मक शास्त्र.
८ अंतकृतांग-अंतकृत केवलीनुं वर्णनात्मक शास्त्र.
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दिगंबर जैन. ९ अनुत्तरांग--प्रत्येक तीर्थकर साथे दश मुनिओर्नु स्वर्गगमन थयुं तेनुं वर्णन शास्त्र.
१० प्रश्नव्याकरणांग-धर्म कथा ४ अने धन, धान्य, लाभ, हानिनुं शास्त्र.
११ विपाकसूत्रांग-वेदनीय, साता असाताकर्म वर्णन.
१२ दष्टि प्रवादांग-१४ पूर्व, ५ प्रज्ञप्ति ५ चुलीका, १ सूत्र अने १ प्रथमानुयोगर्नु वर्णनात्मक शास्त्र.
प्रत्येक अंगनी पद संख्या १८ हजारथी ते एक अन्ज सुधी- । नी छे. बार अंगनी पद सख्या ११ अन्ज, १३ करोड, १२ लाख ३८ हजार ने पाच छे. प्रत्येक पदमा ५१ करोडयी अधिक श्लोक छे. आ बार अंगनुं वर्णन छे.
१४ पूर्वन संक्षिप्त वर्णनः- १ उत्पाद पूर्व-सर्व वस्तुमी उत्पत्ति, विनाश अने स्थीरपणानुं वर्णन. . २ अग्रायणी पूर्व-सुनय, कुनय अने पृथ्वीनुं जाति भेदात्मक वर्णन. . ३ विर्यानुवाद पूर्व-६३ शलोका पुरुषोनी शक्ति अने धैर्यात्मक वर्णन.
४ अस्ति-नास्ति पूर्व-सप्तमंग ( स्यावाद) अने
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. शाश्वत, विनाशक वस्तुनुं वर्णन.
५ ज्ञान-प्रवाद पूर्व-मति आदि ज्ञानवा ८ मेद अने गणित विषय फल उत्पत्ति वर्णन.
६ सत्य-प्रवाद पूर्व-हृदयादि ८ स्थानथी स्वरोच्चारास्मक वर्णन.
७ आत्म-प्रसाद पूर्व-कर्ता, भोक्ता, नित्य, अनित्य, जीव स्वभाव अने जि. गु. ४६.
८ कर्म-प्रवादपूर्व-आठ कर्मनुं वर्णन.
९ प्रत्याख्यान पूर्व-पापक्रियानो त्याग भने ६ संहनन ( शरीर )नुं वर्णन.
१० विद्यानुवाद पूर्व-महा विद्या ५००, लघुविद्या ७००, अष्टांग निमित्त ज्ञान वर्णव. - ११ कल्याणवाद पूर्व-६३ शलाका मंगलोत्सव, ६ कल्याणिक, १६ भावनानुं वर्णन.
_१२ प्राणानुवाद पूर्व-वैद्यक, गारुड, श्वासोच्छ्वास, ८ योग, वायुज्ञाज्ञानात्मक वर्णन.
१३ क्रिया विशाल पूर्व-पुरुषोनी ७२ कला, स्त्रीना ४६ गुण, शिल्पभेद ८नु वर्णन.. . .१४ लोकबिंदु पूर्व-त्रण लोकनुं वर्णनात्मक शास्त्र.
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दिगंबर जैन.
चौदपूर्वनी पद संख्या ९१,१०,००,००१ छे. आ
चौदपूर्वनुं वर्णन.
आटलं ज्ञान तीर्थकर, केवली, श्रुतकेवली अने केवलीने - होय छे. आ ज्ञान श्री महावीर तीर्थंकरने हतुं. साधारण केवलीने पण आ ज्ञान होय छे. फक्त तेने पांच कल्याणक नथी होतां. कल्याणक एटले इंद्र तरफथी धनारो तीर्थकरनो उत्सव. श्रुतकेवलीने १२ अंगना शास्त्री मुखोद्गत होय छे. महावीरथी ते जम्बुस्वामी पर्यंत उपरोक्त ज्ञान हतुं. भद्रबाहु सुधी ते कमी प्रमाणमां रघु. धर्मसेनाचार्य पर्यत ११ अंग अने १० पूर्वनुं ज्ञान रहूं. कंसाचार्य सुधी पाठे ११ अंगनुज ज्ञान रधुं सुभद्राचार्य १०, यशोभद्राचार्य ९, वीजा बाहुभद्राचार्य ८ अंगना धारक हता भूतवळी पर्यंत एकज अंगनुं ज्ञान रचुं अने कुंदकुंदाचार्य सुधी एक अंगना ज्ञाता कोइ रधुं नहि; पण आज जेम अंगज्ञाननो अभाव थयो छे, तेवीज स्थिति ते वखते नहोती. अहिं थोडी, त्या थोडी, एम थोडी थोडी माहीति रहेली हती. सारांश- कुंदकुंद आचार्यना समयमां तीर्थंकरना समयनुं अगम्य ज्ञान रचुं नहोतुं, पण तेनो अभाव ते वखते थयो नहोतो. एटले ते समये शास्त्रीयज्ञान घणं थोडं पण हवं- बीजा चार वर्षमां भयंकर दुष्काळ
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. पडवाथी जैन धर्ममा एक नवीन मत प्रचारमा आव्यो हतो, ते कोण? ते श्वेतांबर मत हंशे ते वधारे पातानो पग लंबान्यो गयो, तेथी ते मनो घणो प्रसार थयो हतो. ए सिवाय वौद्धमत पण किचित हतो. अहीं बौद्धमत क्यारे स्थापन थयो, तेनो उल्लेख करीए तो अयोग्य थशे नहि एम धारी नीचे लखु छु.
बौद्धमतनी उत्पत्ति. महावीरस्वामी पूर्व बरोबर बसो वर्ष पहेला नैनोना त्रेवीशमा सर्वजगद्विख्यात श्री पार्श्वनाथ स्वामी थह गया हता. तेनी पछी पिहिताश्रय जैन मुनिनो शिष्य बुद्धिकीर्ति महान शास्त्रवेत्ता हतो, ते पलास नगरीमां सरयू नदीने कांठे तप करीने रहेतो हतो. तेणे नदीमां एक मृत मच्छी जोइ, त्यारे पोताना मनमा बोल्यो-'अहिंसा परमो धर्म:'-हिंसा न करवी ए परम धर्म छे, पण आ मच्छी हिंसा कर्या वगर मरी गइ छे, तो तेने भक्षण करवामा हरकत शानी ? अर्थात् तेमां काइ दोष नथी, कारण के तेमां जीव नथी, मच्छी निरजीव छे आवो विचार करी तेणे ते खाधी तेना गुरुए आ जाणवाथी तेने प्रायश्चित करवानु कह्यु, पण तेणे ते कयु नहीं । अने अंगपर लाटवस्त्र धारण करी वौद्ध मत्त स्थापन कर्यो. आ बौद्ध धर्मनो मूळ पायो. आज 'अहिंसा परमो धर्म,' छे एवं
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दिगंबर जैन. लाखो बौद्ध लोको माने छे, पण वर्षमा केटला माठला, वांदा, मादि प्राणीनो नाश थतो हशे- ते जापानी अने चीना लोकोना हीतहासपरथी स्पष्ट समजाशे. आ माटे विशेष उल्लेख विस्तार पूर्वक अहीं करवानी जरुर नथी. आ बौद्धोनी उत्पत्ति.
हवे केटलाक कहे छे के अशोक वगेरेए ते धर्म उत्तम पाळ्यो ए वात जूदी छे, पण मूळ रचना एवी छे के ते क्खते आ धर्म आपणा चरित्र नायकना समयमा एकदा उन्नति जोइने गभीर स्थितिमा आवी पहोंच्यो हतो, अने ते वस्ते आपणा चरित्र नायकनो उदय थयो. तेओ वधी वाजुओपरथी आवता हुमलाने अटकाची शक्या नहि, छता तेओए ते हुमलाने कोइ पण रीते श्रेष्ठता अपावी नहि. अत्यारे वीजी बाजु न वळता अमारा थाकी गयेला वांचक वर्गने हवे आपणा चरित्र नायकनी ओळखाण करावधानी शरुआत करुं छु
आपणा चरित्र नायक कुंददाचार्यनो जन्म मालक देशमां (मालवामा ) बुदी-कोटा नजीक आवेला वारापुर नामे संस्थानमां थयो, ते वखते ते नगरमा कुमुदचंद राजा कुमुदचंद्रिका राणी साथे राज्य करतो हतो. अने बहुधा धंधाद्वारी. व्यापारी वसता हता. तेमा एक कुंदश्रेष्ठी नामे सधन
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. अने धार्मिक व्यापारी हतो. आ गृहस्थ आपणा चरित्रनायकनो तीर्थरुप हतो तेने कुंदलता नामनी सहचारिणी हती. ते कोण हता ते वाचकवर्गने जणाक्वानुं काम नथी. आ उभयथी वीर सवंत ४९७ विक्रम सवंत ५ मा आपणा चरित्र नायक जन्म्या. मातपिताना नाममा रहेढं सादृश्य जोइने सर्वेए अर्भकनु नाम 'कुंदकुंद' पाडयु. पोताने पुत्र थयो तेथी कुदशेठे त्याना श्री शांतिनाथ स्वामीना मंदिरमां देवनी पूजा करी जन्मेला पुत्रदशनी यशोध्वजा आकाशमा चढावी, एटले त्याना ते मदि रपर ध्वजा चढावी तया शिखरपर कलश पण चढायो अस्तु.
आगळ जतां आ पुत्र खेलतो खेलतो सौने आनंददायक थइ पडयो. दिवसे दिवसे कुमार वृद्धि पामतो गयो पांच वर्ष पछी केवल बाल्यावस्था पसार थह, अने वीजा चार वर्ष गया एटले खेल करवा सिवाय बीजो घघो हतो नहि, तेना सोबती मो. मां पाते हमेशा सौथी बंधारे चढीआतो हतो. ते पुत्र एकदम म्होटो थवा लाग्यो. आ जोइने पिताने शिक्षण माटे काळजी थइ. ते वखते आजना नेवु शिक्षण नहोतुं. शाळा, विद्यालय विश्वविद्यालयनो ते वखते अभाव हतो ए सष्ट छे. बहु थाय तो ते वखते एक अध्यापक पोताने घेर विद्यारीओने राखी शिक्षण आपता. ते वखते कळी आजना जेत्रो प्रखर जीवनकलह
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दिगंबर जैन, पण नहोतो. अने लोक जीवनकलह माटे शीखता नहता, पण आजे जेम ज्ञान माटे पाश्चात्य स्टेन्डर्डबाइ सरवा चेला अगम्य (पूर्वात्य) गुरुनी सेवा करवा मइया छे; ते प्रकारना ज्ञान, अ. ध्यात्मक ज्ञान शिखवापर लोकनु चित्त हतु. ते वखते भारतवर्ष सुसंपन्न हतो अने सीकंदर वादशाहनी स्वारी सिवाय तेने बी. जा एकपण दुःखनो परिचय पडयो नहतो. आवा सुभिक्ष वखने शुं लोकान पेटभर मेळववाने ज्ञाननी जरुर हती ? नहीं. नहीं! तेनुं समग्र चित्त क्षत्रियविद्या अने ब्रह्मविद्या-अध्यात्म विद्यामांज हतुं. कुंदशेठ पोते स्वत सधन व्यापरी होवाथी द्रव्यनी आशा एवी विशेष न हती. तेमन पोतानो पुत्र क्षत्रियविद्यामा पटुव मेळवे तेम पण लाग्यु नहीं ते समये मोटा अने सर्वमान्य अध्यात्मज्ञान प्रचलित होवाथी त्या तेनु चित्त वज्युं, ए कहेगनी जरुर नथी, पण गुरुने माटे कोनी योजना करवी ए पश्न हतो. पूत्रने पण होंगीयार भने विद्वान थाउ एवी इच्छा हती भने तेथी तेणे पोते पोताना गुरुनी-शिक्षकनी गोठवण करी ते नीचे प्रमाणे.
एक दिवसे कुंदकुंद कुमार पोताना गोठीआ साथे खेलतो खेलतो वनमा आन्यो, त्या तेने एक नग्न, शात अने क्षमावान मुनि दृष्टिगोचर थया. साधारण नियम एवो छ के
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कुंद कुंदाचार्य चरित्र. कोई आचार्य, मुनि, किंवा साधु होय त्वा जइ नमस्कार बरी पुजा करवी जोइए. आ.नियमान्वये ते वखने ते मुनिना समक्ष पुष्कळ श्रावक भावीने वेठा हता, अने केटलाक तेनी पुजा करता हता. आवो प्रकार जोइने आ कुमारनी साथ आवेला सोबतीओए तो तरतज पोबारा गण्या, पण कुमारना मननी अवस्था ते समये कइ भिन्नज थइ अने मनमा स्फुरी आव्यु के शावास मुनिवर्य ! जो मनुष्यने जगतमां तारा जेवा पुज्य थवु होय तो तेणे खरेखर तारा शांत, शंभीर, उदार अने सर्व हितकारी सद्गुणोनुन अनुकरण
करवु जोइए
जगतमा हाल स्वार्थ सविाय अन्य वस्तुमा नजर न पहाचाडनारी व्यक्तिओ पुष्कळ छे, पण स्वार्थ साधी परहित करनारी तारा जेवी व्यक्ति खरेखर विरलन, तेथी तनेज आ जगतमा धन्यवाद छ ! आवो विचार करी ते कुदकुमार वीजा छोकराओ साथे घर न जता केटलाक तेनी सोवती के जे तेनी राह जोइ रस्तामा उभा रह्या हता तेने साथे लइ ते दिगवर मुनि पासे आव्यो, अने मुनिनु तप, ध्यान अने दयाभावथी बनेलं शांत अने गभीर रुप जोइने अने त्या चालतो धर्मोपदेश सांभळीने ते कुंदकुंद कुमारनुं चित्त थंडगार थइ गयुं, अने ते मुनिने
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दिगंबर जैन.
छेटेथी नमस्कार कर्या अने ते मुनिनो धर्मोपदेश सांभळी तेना मनमा जुदी जुदी कल्पना तरंग उठवा लाग्या के खरेखर मुनि ! आ संसार असार छे, माबाप भाइ सर्व मायानुं बजार छे, आ जीवने मनुष्य, तिर्थंच, नरक अने देवगतिमा एकलं भ्रमण करवुं पडे छे. जेम सुखनो भोक्ता एकज छे तेम असा दु.खोनो भोक्ता आ जीव छे. नरजन्म दुर्लभ छे अने तेमां सद्धर्मप्राप्ति दुर्लभ छे, तेथी काक्तालियन्यायवत् मळेलो जन्म चाल्यो न जाय ते माटे इश्वरचिंत्वनमा तल्लीन थवा जेवुं खरं कल्याणजीवन बीजुं कोइ नथी. आ सुनिनुं कहेतुं तेने तद्दन यथार्थ लाग्युं. आपणे जो स्वतः आ विचार प्रमाणे चालीए तो मानापने दुख थशे पण विचारने अंते ए आव्युं के - मात्राप कोना ? जीवमां जीव छे त्यां सुधी मारुं सौ बोले छे पण एकदा जीव नोकळी गयो एटले सर्व संबंध अने सगपण तूटया. जे मृदु शरीरने उत्तम स्वादिष्ट पदार्थोथी पोषण करीए, उत्तम वस्त्रोथी सुशोभित करीए, ते शरीरनो आखर चीता उपर नाश थवानो ! अर्थात् आ संसार मात्र मायावी - क्रोध, मान, माया, लोभनु बजार छे. क्रोध, मानने जीत्या सिवाय खरी आत्मोन्नति नथी. हवे जे थाय ते भले. थाय, पण हुं आवा सज्जन अने हितकर मुनिनी सोबत
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. छोडनार नथी. आवो दृढ निश्चय करीने ए ते मुनि पासे गया. ते मुनि कोण हता ते वाचके जाणी लीधु हशे. आ संवत ४० मा पहारुढ थयेला निनचंद्र मुनि हता. कुदकुदकुमार तेने नमस्कार करी तेमनी पासे जइ बेठो, अने तेमनी पासे नानामृत प्राप्त करवानी इच्छा दर्शावी. आ वखते तेनी वय ११ बर्षनीज हती.
आ कुंदकुदकुमार भाखरे जिनचंद्र मुनीनु शिष्य स्वीकारी पोते तेना संघनी साथे ज्ञान- पान करतो करतो चाल्यो. या सर्व वृत्तात तेना मातापिताए जाण्यु, एटले तेमो माश्चर्य चकित थया, पण एक दृष्टिथी तेभोने ते योग्य लाग्यु अने विचार्यु के पुत्र ज्ञानप्राप्ति माटे गयो छे, अज्ञान माटे नहिं अने तेथीन तेमओए पोताना मननुं समाधान स्वत. कयु.
कुंदकुंदकुमारे पोताना गुरु पासे रही जैनशास्त्रनो उत्तम अभ्यास कर्यो, अने जिनचंद्र आचार्यना सर्व शिष्योमा पोते पट्टशिष्य थया अने आ अधिकार तेनी ससार विषये पूर्ण विरक्ति जोइनेज आपवामां आव्यो. कुंदकुंदकुमारे पोतानी २३ मा वर्षनी वये गुरु जिनचंद्र पासेथी दीक्षा लीधी. जिनचंद्राचार्य पोते अवधिज्ञानी मुनि हता; तेणे पोतानो अंतकाळ समीप नाणी पोताना पट्टाशष्य कुंदकुंदने पट्टाधिकार आप्यो,
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दिगंबर जैन. अने पोते ध्यानस्थ रह्मा-समाधिस्थ थया जे समये तेने पट्टाधिकार मळवाथी ते पट्टाचार्य थया, ते वखते वीरसंवत ५३६ हतो. आ पट्टाभिषेक पोताना गुरु पासेथी पोष वद । मे थयो अने हवेथी कुंदकुंदचार्य पट्टाधिकारी वन्या. अत्यार सुषी सपळी गादी उजयनीमा धइ गइ, एवो पट्टावलीमा पूर्ण उल्लेख छे. आ वखते मात्र जुदे ठेकाणे स्थापनामा आवी तेनो उल्लेख पछी करीश. ज्यारे ए पट्टाधिकारी थया ते वखते दिगवर मुद्राधारी मुनि हता, ए मात्र पक्की रीते लक्षमां लेबु जोइए, कुदकुदाचार्यनी नीचे घणा शिष्योनी मंडळी हती, तेमां मुख्य शिप्यनु स्थान मास्वामीने आपलं हतुं, अने तेज तेनी पछी पट्टाधिकारी बन्या. अस्तु.
जिनचंद्राचार्य स्वर्गस्थ थया पछी तेणे उत्तम रीतिथी योतानो अधिकार बजाववानी शरुआत करी. पोताना शिष्योने चारे तरफ मोकली जैन धर्मनो प्रसार कर्यो अने चारे वाजुए धर्मोपवेश सतत् शरु को. गुरुनी पछी ते स्वतंत्र आत्मकल्याण माटे तप करवा लाग्या. आगळ जता आत्मनिश्चयथी अनेक कल्पित शंकाचं समाधान कर्यु, ते वखते वेने मात्र विशेष श्रम पडयो, कारणके ते समये अंग अने पूर्वज्ञाननो लोप. थयेलो हतो, ए सिवाय अवधि ज्ञानी कोइ हतो नहि, त्यारे पोताने
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र.
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उप्तन्न थयेली शका कोण निवारशे तेनी मोटी मुशिबत थइ, पण तेना मनमा एक युक्ति सूझी - ते ए के + विदेह क्षेत्रमां श्रीमंदर स्वामी साश्वत केवलो छे त्या जइने तेनी पांसेथी स्वतंत्र शंकानु निवारण करवुं, पण आपणे मानवी छीए. ते क्षेत्रमां आपणु गमन क्याथी थइ शके ? विद्याधर के विमाननी सहायता वगर ते करवुं मुश्केल अने अशक्य. त्यारे या विचारथी ते निरुपाय थइने पोताना गुरुए कहेली मुनि क्रिया सिवाय बीजी गति नथी तेम जाणी तप करवा मंडया अने पंच महाव्रत उत्तम रीतिथी पालन करवा लाग्या.
पछी कोइ एक वेळा श्री कुंदकुदाचार्य फरतां फरता एकला बारापुरीना बहीरुद्यानमा आवी तप करवा लाग्या, अने दृढ ध्यानथी पदस्थ, पिंडस्थ, रुपस्थ अने रुपातीत ए चार ध्याननो विचार करवा लाग्या. ध्यानस्थ थयेला मनमा तेणे श्रीमदरस्वामीनुं समोशरण रचीने श्रीमदरस्वामीने त्रिकरण शुद्धिथी नमस्कार कर्या, तेनी साथे चमत्कार एवो थयो के विदेह क्षेत्रमां रहेला श्रीमंदरस्वामी ते आचार्यने त्या समोशरणमां-सभामां गंभीर नादथी दिव्य ध्वनि द्वारा ' सद्धर्मवृद्धिरस्तु ' एवो आर्शि
+ नोंध - विदेह क्षेत्र सबधी भुगोलात्म वर्णन आगळ योड़क यूँ छे,
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दिगंबर जैन.
वाद आयो. ते वेळा ते सभामां विदेह क्षेत्रना चक्रवर्ति पद्मरथ राजा समोशरणमां बेठेला हता, तेणे नम्रताथी पूछयुं के - अहीं कोइ नवीन आव्यो नथी अने कोने ' सद्धर्मवृद्धिरस्तु ' कहुँ. त्यारे उत्तर त्यांज मळ्यो के राजा, आ द्वीपनी दक्षिणे भरत क्षेत्र छे त्यां पंचमकाल - भयंकर काल वर्तमान छे. ते क्षेत्रमां बारापूर नगरीना बाह्योपवनमा रहेला श्रीकुद कुंदे ध्यानस्थ रही मने नमस्कार कर्या; तदुपरात त्या पचमकाळ होवाथी अधर्मी, पाखंडी, व्यसनी हिंसक आदि मनोवृत्तिना घणा लोक बसे छे. सयंमी, जिन मतानुयायो मुनि घणा थोडा छे; कुलिंगी वणा छे. ते क्षेत्रमा घणा थोडा नर छे तेथी ते कुदकुद मुनिए पाप नष्ट थवा अने मनमाथी शका दूर थवी ए घणुं मुश्केल छे तेम जाणी दुरथीज फक्त स्मरण करी मने नमस्कार कर्या, तेथी में तेने आटलोज आशीर्वाद आप्यो.
जे वखते कुदकुदनुं उपलं वृत्तान्त श्रीमंदरमुनिए पद्मरथने कबुं ते वखते ते स्थळे श्री कुंदकुंद मुनिना पूर्वजन्मना वे भाइ के जे मरीने पुण्यबलथी तेज क्षेत्रमा जन्म्या हता ते हाजर हता अने ते ओए उपल वृतांत जाण्यु, तेथी ते तरतत्र त्याथी उठीने विमानरुढ थइ भरत - क्षेत्रमां आव्या अने श्रीमंदरस्वामीए * टीप - जैनधर्म पुनर्जन्ममा समत छे.
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बुंद कुंदाचार्य चरित्र,
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का प्रमाणे बारापूरना बाहिरुद्यानमां आव्या अने त्यां कुंदकुंद मुनिने जोहने ते भोए तेने साष्टांग नमस्कार कर्या ते ते वखते ध्यानस्थ हता तदुपरात ते समय रात्रिनो हतो, तेथी मुनि बोल्या नहि, त्यारे त्यां पाते रहेला गृहस्थने कथुंके अमे मुनिना पूर्व जन्मना बंधु छीए, तेमने मळया आव्या छीए अने मुनिने विदेह क्षेत्रमा लड् जनार हता, एवं कही तेओ पुनः विमानरुढ थइ विदेहमां वाल्या गया.
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प्रातःकाल थयो के ते सर्व वृतात मुनिने खबर पडी, त्यारे तेणे श्रीमंदर स्वामीना दर्शन थया वगर भोजन करवुं नथी, एवो नियम कर्यो अने पुन. पूर्ववत् ध्यानस्थ बेठा पुनः विदेहमा समोसरणमां श्रीमदरस्वामीए तेवाज आर्शिवाद आप्या, त्यारे पद्मस्थ राजाए तेनुं कारण पूछता श्रीमदरस्वामी दिव्यध्वनिथी एवं वृत्तांत कही दर्शाव्य, के म पहेलां ने वृत्तात तने कहतु ते सांभळीने कंदकूदना वे बधुओ मुनि पासे गया, त्यारे ते ध्यानस्थ हता तेओ मूनिनी पासे एक मनूप्यने सर्व वृत्तांत कही पाछा आव्या आ सर्व हकीकत - प्रात. काळे कुंदकूद मुनिने जाणवामा आवी. तेने न्यारे विशेष आनद प्राप्त थयो अने मारु दर्शन करवा वगरण न करवुं एवो दृढनिश्चय करी तेणे ध्यान धर्यु अने ध्यानमा मने नमस्कार कर्या
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४२
दिगंबर जैन. ।
तेथी में तेन आ वखते आशीर्वाद आप्यो.
आ हकीकत जाणी त्या हाजर रहेला कुदकुंद मुनिना चंधुद्वय तरतज पुनः विमानरुढ थया अने ज्या श्री कुंटकुद मुनि तप करता हता त्यां आवी तेमने नमस्कार कर्या बने विदेहमां चालवानी विनंति प्रदर्शीत करी. आधी मुनिने घणो उलास थयो अने विमानारुढ थइ निकल्या. मुनिए निकळती वखते पिच्छी अने कमंडलु साथ लइ लीधा. तेमा पिच्छी विमानमा शिघ्रगतिथी रस्तामां कोई स्थळे पडी गइ, तेनो पचो लाग्यो नहीं त्यारे पिच्छी सिवाय अयोग्य देखाय, एम जाण विमान त्या अटकावी तेनी तपास करी, पण ते कंइ मळी नहीं, त्यारे पासेना मानस सरोवरपर ते गया अने त्यां गीध पक्षीनी पडेली कोमळ पांखनी पिच्छी करी लधिी अने पछी तेणे विदेह तरफ प्रयाण कर्यु. रस्तामा हक्षेित्र, नामिगिरी, मेरु वगैरे पर्वत आव्या ते उलघी विदेहमा जइ अयोध्यापुरी नगरीनां नामना बाहोद्यानमा रहेला प्रदेशमा श्रीमंदरस्वामीना सपोसरण पासे उता. ते नगर जोया पछी कुंदकुंद मुनिने ते दे देवोए कयुं के आ स्थळे सतत् चतुर्थकाळ एटले सौख्यको काळ छे अहीं कोइपण लेगमात्र दुःखी म.लम पडतुं नथी. आ अचळ क्षेत्र छे.
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र. आवी संक्षिप्त माहीती मेळवी ते अणे समोशरण पासे -जवा नोकळ्या. मुनि इर्यापथ शोघी शमोमरण पासे द्रष्टि करी नमस्कार करी चाल्या. त्यां ते वे देवोने माटी मुश्केली ए पडी के आ ठेकाणे पांचसे धनुष्य कायावाळा सर्व माणसो छे, अने था तो चार हाथ देहवाळो छे, तो तेने क्या बेसाडयो ? बीजे कई वेसाडवाथी तेनो पत्तो लागशे नहीं. आखरनो विचार करी तेओ कुंदकुद मुनिने मूल्य पीठपर एटले श्रीमदरमुनिनी एकदम समक्ष लाव्या. पछी कुंद्रकुट मुनिए श्रीमंदर मुनिने लण प्रदक्षिणा करी नमस्कार कर्या, अने तेनु स्तवन करी तेओ त्याज आगळ बेठा.
आटलं थया पछी त्या विदेह क्षेत्रना सार्वभौम राजा पद्मस्थ त्या आव्या अने तेणे श्रीमंदरस्वामीने नमस्कार करने ते महा पीठपर वामनमुर्ति जोइ; ते मूर्तिने हळवेथी चपटीमां लइ हथेलीमा बेसाडी, अने श्रीमंदर स्वामीने आ मूर्ति कोण छे ए कहेवानी विनंति कही, त्यारे शाश्वत् नाथंकर श्रीमंदर
खामीए पोतानी दिव्य ध्वनिधी उत्तर आप्यो के, जे मुनि विषये में काले कयु हतुं अने जेने में 'सद्धर्मवृद्धिरस्तु' एवो आशीवाद आप्यो हतो तेज आ भरतक्षेत्रमा आ काळना धर्माध्यक्ष आज छे. आना चे बंधुए तेने अहीं लावी मुक्या छे..
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दिगंबर जैन.
पछी स्वतः कुंदकुंद मुनि उठया, अने तेने जे जे शंका हती ते ते त्यां कही बतावी. श्वेतांवरोनी उत्पत्ति विषयनुं वर्णन कही बताव्यु तेवीज रीते कर्णाटकमां आवेला मुडचिद्री, श्रवण बेळगुलनी, गोमटेश्वरानी मूर्ति विषये चतुर्थकालनी स्थिति; तेमज गिरनार पर्वत उपर आवेली चंद्रगुफानुं वर्णन तेमणे जाप्यु सिवाय जे काह शंका हती तेनुं मुनिए निवेदन कर्यु अने समाधान पण प्राप्त कर्तुं त्यां विदेह क्षेत्रमां कुंदकुद मुनिने बधा मळी आठ दिवस व्यतित थया. सर्व रचना जोइने तेणे पोताने स्वतः सवन्य मानी लोधो.
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त्या एक दिवस पद्ममरथ राजाए कुंदकुंद मुनिने आहार लेवानी विनंति करी. तेना उत्तरमां मुनिए कहां के अमारुं क्षेत्र जुदुं छे तो अमे परक्षेत्रमांधी केवी रीते आहार लइ शकीए ? तेम करवुं मुनिक्रिया माटे योग्य नथी. आ उत्तर सांभळी राजाए तेमनी स्तुति करी अने खड्गधारापेक्षाए मुनिक्रिया तीक्ष्ण छे अने तमे ते पाळी तेथी तमने धन्यवाद घटे छे. तेटली मुदतमां सुनिए कंइ विद्यापठन कर्यु. चार युग भने अनुयोगनुं संपूर्ण वर्णन जाण्यु. पछो पूर्ण शंका रहित थया अने घणुज विशेष ज्ञान मळवा कुंदकुंद मुनि पूर्ववत श्रीमंदरस्वामीने नमस्कार करी सर्वनी रजा लह चे देवोनी साथै विमानारुढ
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कुंद कुंदाचार्य चरित्र. ४६ थया. निकळती वखते त्यां मुनिने तेमणे एक धर्म-सिद्धांत पुस्तक आप्यु, ते लइने तेओ चाल्या, त्यां वाटमां तेओ मेरुपर्वत उता. अने जिनविन दर्शन करीने विज्यार्द्ध पर्वतपरजिनविबर्नु दर्शन करवा गया. त्याथी कैलासगिरी, सम्मेदशिखर वगेरे क्षेत्रों करता करतां चाल्या. पछी पुनः रस्तामा साथे लावेला हता ते पुस्तक पडी गयुं ते पुस्तकमा राजनीति, मंत्र अने अनेक विद्यानो भंडार हतो. आखो लबग समुद्रमांथी आवता आ अंथ पडयो ते मन्यो नहि आतु. तसज विमानारुढ थइ ते देवद्वय अने मुनि मळी त्रणे जण भरतक्षेत्रमा आव्या, अने बारापुरना बहिरद्यानमां कुंदकुंद मुनिने छोड़ी दीघा. त्या ते देवोए तेमना उपर पुष्प दृष्टि अने पूजा करी मार्गप्रयाण कर्यु. विदेहमा जवा माटे कुंदकुंद मुनि नीकळ्या त्यारे वाटमा पिच्छी गुमावी हती अने गीध पंखोनी पांखनी- पिच्छी करी म्हती तेथी तेमनु नाम गृध्रपिच्छाचार्य पडयु, अने विदेहमां गया त्यारे तेने ऐलाचार्य कहेवा लाग्या.
कुंदकुंदाचार्य विदेह क्षेत्रमा गया हता एवो. उल्लेख छे; विदेह क्षेत्रमा जाने तेथे त्यांना शाश्वत् तीर्थकर श्रीमंदस्वामीनां दर्शन कयाँ हता अनेस्वतः थयेली शंका श्रीमंदरस्वामी पासेधी निवारण करावी लाच्या हता. विदेह क्षेत्र संबंधीनू वर्णन जैन
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४६ . . दिगंबर जैन. अंथमा छे. हमणा जे पृ-बी ( Globe ) देवाय छे तना करता ते अधिक मे टु छे एत्रु जैन शान्यतुं मत छ, अर्थात् उतर अने दक्षिगे घगोल प्रदेश छे. आज जे पृथ्वीपर आपणे वपीए छोए ते पृ-भीमाग छे बने रुपीए वे आनी सरखी छे एन मानत्रु जोहए. हनणा जे समुद्र आपणी पृथ्वीने वाटत यालो छे ते लवग समुद्रनो थोडो भाग फक्त खाडीरुपेज छे. उत्तर ध्रुव भने दक्षिण ध्रुव पासे आगळनो प्रदेश हजारो योजन लायो छे, त्या जबाने चुद्धिमत्ता अने कल्पना शक्तिमा उत्तम उंड अने अमेरिका सरखा देशो प्रयत्न करी रह्या छे, अने ते प्रयत्न सतत् थशे अने त्यांना हवा पाणीनी परस्थिति अनुकूल थशे तो खात्रीथी ते बाजुनो पुष्कळ प्रदेश प्रार थशे, अने तेवोज जैन धर्मनो मत छे. भस्नु.
विदह क्षेत्रमाथी श्री कुदकुंद स्वामी आव्या पछी तेनने दर्शने तेनो राजा, तेना मातपिताकुदलमा अने कुदशेठ, अनेक श्रावक श्राविका अने हजारो लोको आव्या. पछी तेमणे विदेह गमननु वृत्तांत सर्वने कही धर्मोपदेश कर्यो. आ वृत्तांत जाणी तेओने संतोष थयो. पछी ते नगरना बाह्य प्रदेशमा रही जैन धर्मनो अने मुनि धर्मनो बोध श्रावक तथा अन्य लोकने आप्यो तथा केटलाक श्रीमंतोए. संसार असार छे एम जाणी तेमनी
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र.
४७ पासे दीक्षा लीधी. आवा गरीब अने श्रीमत मळी एकदर ७०० लोक मुनिपद ग्रहण करीने तमना शिष्य बन्या, केटलीक श्राविका थइ, तेणे सर्व परिग्रह (वस्त्रादि) त्याग क्यों बने फक्त अंग उपर १६ हाथ साडी, पिच्छी, कमंडलुनो स्वीकार कयों, केठलाक व्रतधारी बन्या, आ प्रमाणे ते नगरीमा तेमणे धर्मप्रभावना उत्तम रीतिथी करी. नित्य अनशन युक्त तप करीने पारणा करवा लाग्या, आथी तेमनी चारे दिशाए विख्याती थइ.
पछी श्री कुंदकुंद स्वामी पोताना शिष्यने साथे र इने धर्मोपदेश करवा माटे फरता फरता चाल्या तेमणे बहुधा हिंदु स्तानना घणा भागोमा विहार (प्रवास) करी धर्मोपदेश कों, अने केटलेक ठेकाणे पट्ट (गादी) स्थापित करी, ते ते प्रातोमा सतत् धर्मोपदेश मळवाथी धर्म जागृति रहे तेवी व्ववस्था करी. जैनमां चार सघ छे-१ मूलसंघ २ नदिसंग ३ सिंहसंघ ४ काष्टासंघ आ पैकी कुंदकुंदाचार्य पूर्वे थइ गयला ऋषभसेनाचार्य मूलसंपनी स्थापना करी, बाकी त्रण संघ कुदकुद आचार्य स्थापित कर्या छे एवो उल्लेख छे, तेमज १ भारती २ पुष्कर भने ३ चंद्रकान्ति एम त्रण गच्छ अने १ बलात्कार २ देश अने ३ कालोन एम त्रण गच्छ कुंदकुद स्वामीए स्थापित कर्ण छे. बलात्कार गणना चार पट्ट १ दिल्ली २ मलयाद्रि?
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दिगंबर जैन.
(उज्जयिनी ) ३ हुमस (दक्षीणमां) ४ वरंग (कर्णाटक). देश - णना चार पट्ट १ दिल्ली २ द्वारसमुद्र (काठीयावाड) अने बीजांचे स्थळो अने काछोग्रगना पट्ट चर, १ दिल २ यदलापुर ३ केयन अने ४ लखमीसर, आ प्रमाणे पट्टनी स्थापना कुंदकुंदाचार्ये करी. आ प्रमाणे माहिति आधुनिक भट्टारकना ग्रंथद्वारा मळे छे. आ प्रमाणे कुंदकुद मुनिए पुष्कळ ठेकाणे प्रवास करो देश करौ ते स्पष्ट जणाय छे. स्पष्ट जणाय छे. एमनो मुख्य पट्ट उज्जयिनीमां होएत्रो पट्टावलीनो अभिप्राय छे भद्रवाहु [बीज]] थी आता सर्व पट्टाधिकारी उज्जधिनीमा थया, एव पट्टा बलि परथी समजाय छे कु दकुद्राचार्य घणा मोडा थया, पण आचार्य सर्व भारको अने ग्रंथोमा आद्य छे ते परथी तेम
ए
नुं महल सष्ट व्यक्त थाय छे आज कोल्हापुरमां ने पट्ट छे ते मूलसंघमायो छे एवो तेमा उल्लेख छे. एटलापरथी तेणे दिल्लीथी ते कर्णाटक पर्यंत देशाटन कर्य, अने धर्मोपदेश आप्यो ए स्पष्ट देखाय छे
आ प्रमाणे प्रवास करीने उज्जयिनीमां आव्या पछी श्वेतांबर मतनुं विशेष जोर थ छे एम समजाय छे. केटलाक लोक एवं कहे छे के आश्रम पूर्वना आचार्ये स्थापित करेलो छे जिनेद्रनुनिना न पहावा लावी तेने वस्त्रो वगेरे पहेरावी दाग
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र.
तुए दागीना घाल्या छे अने खोटो मत स्थापित कर्यो छे; त्यारे शक होय तो तेनो बंदोबस्त जल्दी करवो जोइए अने खरेखर भद्रबाहु पछी श्वेतांरर लोक अने मुनि राजाश्रित हता तेथी मनमान्यु पोतानु वर्तन करवा लाग्या कुंदकुंद आचार्य सरखो जिनसिंह चोगरदम गर्जतो होवाथी लोकना मनमां एवी भ्रांति उत्पन्न थइ के " दिगंबर अने श्वेतांबर एकज छे. आटलं तो नहि, पण कळी श्वेतांवर पूर्वनो छे अने दिगंबरनी उत्पत्ति श्वेतांबर पछी थइ छे." आ प्रमाणे लोकमां असंतोष उत्पन्न थवाथी तेओ उपर प्रमाणे तकरार कुंदकुंद आचार्य पासे लाव्या अने खरूं कोण एनो प्रथम निर्णय करवा माटे अने पछी असत्यबुं खंडन करवा माटे विनति करी. पछी श्वेतांबरी लोकने श्री नेमिनाथ निर्वाणना-क्षेत्र गीरनार पर्वत उपर वाद करवानो छे एवं जणावी त्यां दिगंबर लोकने मेगा कर्या अने त्यां भेगा थयेला संघर्नु संघ-पतित्व कुंदश्रेष्ठीने आपी सर्व दिगंबर मंडळी गिरनार पर गइ अने श्वेतांबर लोक पण पोतपोताना गुरुने लइने त्यां आल्या.
जेवी रीते माळवामाथी अने वीजा भागमाथी दिगंबर लोकनो संघ लइ कुंदकुंदाचार्य गिरनार पर गया तेवीज सेते गुजरातमांथी महिचंद्र, जिनचंद्रादि अनेक साधुओ साथे लइ
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दिगंबर जैन. गुजरातमावी श्वेतांबरी लोकनो संघ गिरनार गयो. उभय गिरनार पर्वतनी तळेटीगां मळ्या. उभये जुदा जुदा ठेकाणे मुकाम नात्यो. सौ पातपोताने सोटा बने सरा वर्णववा लाग्या. पछी एक दिवस ते पर्वतनी तळेटीगां उभयपक्षनी सभा बोलावी ते ठेकाणे ठाठथी वाजतगाजते प्रथम येतांबर यति अने लोका व्या पछी श्री कुंदकुंदमुनि पोताना ७०० शिष्योने साथे रइ दिगंबर संब साथे ते स्थळे नाल्या. पछी तरतज वादविवाद थयो. श्वेतांबरोए कां के "वस्त्र वगर जीवने कदी मुक्ति थती नथी." ! अने दिगररोए एवं कां के जीवनी उत्पत्तिन नग्नावस्यामां थाय छे अने ज्यारे तेनु परण थाय छे त्यारे नन्नावस्थामाज जगत छोडी जाय छे. तेनी साथे वस्त्र वगरे जे कंइ नथी एटले मूळ अवस्था दिगंबर वृत्तिज-आ जीवने कार्यकारी छे. आ प्रमाणे घणा दिवस वाद चाल्यो. श्वेतांबर, दिगंबरी सघन कहेवू कबूल करे नहि अने दिगंवर, श्वेतारी संघनु कह सामळे नहि. दिगवरी संघमां जेम कुंदकुंदाचार्यने अनेक सुविद्या सहाय हती, तेम श्वेतांबरी संघमां जिनचंद्र भने महिचंद्रने अनेक कुविद्या आवडती हती. एक पोतानी विद्याना जोरथी कोइ दुर्गन्ध प्रश्न नाखे, तो चीजो तेने तोडी .नोखे आ प्रमाणे वाद एकदम मटी न जाय, तेम निर्णय पण
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र.
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एकदम थाय नहि. उभयक्षना लोक कंटाळ्या, ते वखते एक दिवसे कुंदकुंदाचार्ये एवो निश्चय कर्यो के आज हुं खरा निश्चय पर लावुं, त्यारेज उठीने सभानी बहार जाउं आवी प्रतिज्ञा करीने तेलो सभामां आवी दाखल थया के तरतज भरसभामां तेनो उपहास थयो एटले एवी रीते थयुं के एक नानुं माछ श्वेतांबरी लेके कमंडलुमां नांखी तेने ढांकी दइ कुंदकुंदमुनिने एवो प्रश्न कर्यो के आमां शुं छे ! आम ज्यारे पूछयुं के तरतज तेणे तेमां कमलपुप्प के एवो उत्तर आप्पो अने तरतज कमळपुष्प सर्वने देखाइयुं, त्यारे श्वेतांवरी लोक झांखा पडया, परंतु आजनो प्रसंग योग्य नथी, एवं तेमणे क. बाद शरु थयो. ते वादमा श्वेताचरोए वीर, कालिकादेवी इत्यादि जैनमत विरहित देवोनुं आवाहन कर्यु, पण श्री कुंदकुंद मुनिए मूलमंत्रनुं स्मरण करी ते ठेवोनु त्या आगमनज बंध कर्यु पछी बाद कर्यो अने कयुं के दिगंबरी धर्म प्रथम के aajat प्रथम - एनो कोइ प्रबळ पुरावो बतावो अगर सिद्ध करी आपो. त्यारे सर्व श्वेतांबरोने लटपट यह पढी अने तेज रहित थह स्तव्ध रखा. पछी कुंदकुंद आचार्य चंने संघने साथै लइ गिरनार डुंगर उपर गया, अने त्यां रहेला श्रीमन्नेमिनाथ निर्वाण स्थाननुं दर्शन करी, विदेह क्षेत्रवासी
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दिगंबर जैन. शाश्वत् तीर्थकर श्रीमंदरम्वामीनु स्मरण कर्यु अने पंचपदर्नु स्मरण करी एवु बोल्या के दिगंबरी धर्मनी स्थापना प्रथम के श्वेतावरीवर्मनी स्थापना प्रथम-एनो निर्णय थवानो होय तो अही कोइ पग तेवो चमत्कार थाओ ! तरतन थोडी वेळाए त्यां 'दिगंबरी धनी स्थापना प्रथम एवी थोडो वखत सुधी गभीर नादथी आकाशवाणी थइ. आ थयु के तरतज श्वेतांबरी लोक मद्गलित थइ त्यांथी भागी गया. पछी बुंदकुंद मुनिने दिगंबर संघ मोटा ठाठथी पोताना सघमा लइ गया. त्यां बने संघने आनंद थयो, पण पसनं अभिमान होवाथी श्वेतांवरी पक्षे ते वत्तायु नहि, तेमां केटलाके दिगंबरी पक्ष स्वीकायों, पण केटलाके केवळ गर्वने लइने निषेध कर्यों अने गुजरातमा जहने तेओ वधाने प्रवळ थया. अस्तु आ प्रमाणे श्वेतांवरी पक्षहूँ खंडन थयु, ए जोडने दिगबरी संघे त्यां एक जिनमंदिर बंधावी तेनी प्रतिष्ठा कुंदकुंद आचार्यने हाथे करावी. पछी त संघ पोताना गुरु कुंदकुंद मुनि साथे- पाछी वालापुरीमा गयो. त्या कुंदकुदाचार्ये एक पट्टनी स्थापना करी, ते उपर एक विद्वान शिष्यनी योजना करी, अने पोते तत्वनुं अने अनुप्रेक्षानुं चिखन करवा काळ व्यतित करवा लाग्या.
एमना सर्व शिष्योमा उमास्वामी-जेमणे "तत्वार्थ सत्र"
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कुंदकुंदाचार्य चरित्र.
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नामनो ग्रंथ रच्यो छे, ते मुख्य हता. तेमणे विद्वत्ताना वळथी योतानी वयना फक्त १९ मा वर्षे कुंदुकुद आचार्य साथै बाद कर्यो, पण तेमा तेमनो पराजय थयो, पछी तेकण कुंदकुढाचार्यनुं शिप्यत्व स्विकार्य, अने तेमनी पासे २९ मे वर्षे दीक्षा लड् अभ्यास कर्यो. तेज उमास्वामी गुरु कुंदकुंदाचार्यनी पश्चात् पट्टाधिकारी थया.
कुंदकुदाचार्ये घणा अध्यात्म विषय पर ग्रंथ लख्या पैकी आज तमांना अष्टपाहुड, पंचास्तिकाय, समयसार इत्यादि ग्रंथ उपलब्ध छे, ते केवळ अनेकांत स्याद्वाद मरुना छे. आ प्रमाणे चारेगम धर्म पसार वरीने पोताना शिप्य उमास्वामीने पट्टपर स्थापी पोते अरण्यमा जइ घोर तप वरखा लग्या भने वीरसंवत् ५८७ विक्रमसंवत् १०१ अने इ. स. ६३ मा श्रीमान कुंदकुंदमुनि ध्यानस्थ रही वर्गस्थ थया.
आ प्रमाणे इ. स पूर्वे सुमारे पाचसो वर्षनो जैननो घणोज संक्षिप्त इतिहास आटलोन मळी आव्यो छे.
समाप्त.
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"दिगंबर जैन " ना ग्राहकोने अपायली भेटो.
“दिगंबर जैन" पत्रना ग्राहंकोने छेल्लां चार वर्ष दरम्यान नीचेनां पुस्तको नवीन प्रकट करी भेट तरीके मफत वैचवामां भाव्या हता.
वर्ष ३ जुं वीर संत २४३६ नी वे भेटो-१ धर्मपरीक्षा ( रु. १, ), २ कळीयुगनी कुळदेवी ० ) ० lll.
वर्ष ४ थं. वीर सं २४३७नी सात भेटो - १ सुकुमाल -
३ श्रुतपंचमी महात्म्य ० ) 2 ५ धर्मा मृत रसायन. ६ कन्या
चरित्र ०/२ सुदर्शन शेठ ०। ४ श्रावक प्रतिक्रमण ० ) - || विक्रयनी केर. ७ तमाकुना दुष्परीणामो. ० ) -
वर्ष ५ मुं. वीर सं. २४३८ नी १० भेटो - १ मोक्षमार्ग प्रकाशक ( हिंदी ) रु. १ || २. जैन धर्मनी माहिती 1. ३. इश्वरकर्ता खंडन ० ) - ४. गीलसुंदरी रास ० ) . ५. पर्चे - द्रीय संवाद ० ) || ६ सामायिक भाषा पाठ ० ) . ७. कलीयुगकी कुलदेवी ( हिंदी ) ८. भट्टारक मीमासा ० ) ९. प्राचीन दिगंबर - अर्वाचीन श्वेतांबर ० ). १०. पच कल्याणक पाठ सार्थ ० ) - वर्ष ६ - वीर सं. २४३९ नी १० भेटो - १. हनुमानचरित्र हिंदी ०/- २. मनोरमा गुजराती - हिंदी ० ॥ ३ पुत्रीने
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