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कुंद कुंदाचार्य चरित्र. कोई आचार्य, मुनि, किंवा साधु होय त्वा जइ नमस्कार बरी पुजा करवी जोइए. आ.नियमान्वये ते वखने ते मुनिना समक्ष पुष्कळ श्रावक भावीने वेठा हता, अने केटलाक तेनी पुजा करता हता. आवो प्रकार जोइने आ कुमारनी साथ आवेला सोबतीओए तो तरतज पोबारा गण्या, पण कुमारना मननी अवस्था ते समये कइ भिन्नज थइ अने मनमा स्फुरी आव्यु के शावास मुनिवर्य ! जो मनुष्यने जगतमां तारा जेवा पुज्य थवु होय तो तेणे खरेखर तारा शांत, शंभीर, उदार अने सर्व हितकारी सद्गुणोनुन अनुकरण
करवु जोइए
जगतमा हाल स्वार्थ सविाय अन्य वस्तुमा नजर न पहाचाडनारी व्यक्तिओ पुष्कळ छे, पण स्वार्थ साधी परहित करनारी तारा जेवी व्यक्ति खरेखर विरलन, तेथी तनेज आ जगतमा धन्यवाद छ ! आवो विचार करी ते कुदकुमार वीजा छोकराओ साथे घर न जता केटलाक तेनी सोवती के जे तेनी राह जोइ रस्तामा उभा रह्या हता तेने साथे लइ ते दिगवर मुनि पासे आव्यो, अने मुनिनु तप, ध्यान अने दयाभावथी बनेलं शांत अने गभीर रुप जोइने अने त्या चालतो धर्मोपदेश सांभळीने ते कुंदकुंद कुमारनुं चित्त थंडगार थइ गयुं, अने ते मुनिने