________________
बुंद कुंदाचार्य चरित्र,
४ १
का प्रमाणे बारापूरना बाहिरुद्यानमां आव्या अने त्यां कुंदकुंद मुनिने जोहने ते भोए तेने साष्टांग नमस्कार कर्या ते ते वखते ध्यानस्थ हता तदुपरात ते समय रात्रिनो हतो, तेथी मुनि बोल्या नहि, त्यारे त्यां पाते रहेला गृहस्थने कथुंके अमे मुनिना पूर्व जन्मना बंधु छीए, तेमने मळया आव्या छीए अने मुनिने विदेह क्षेत्रमा लड् जनार हता, एवं कही तेओ पुनः विमानरुढ थइ विदेहमां वाल्या गया.
•
प्रातःकाल थयो के ते सर्व वृतात मुनिने खबर पडी, त्यारे तेणे श्रीमंदर स्वामीना दर्शन थया वगर भोजन करवुं नथी, एवो नियम कर्यो अने पुन. पूर्ववत् ध्यानस्थ बेठा पुनः विदेहमा समोसरणमां श्रीमदरस्वामीए तेवाज आर्शिवाद आप्या, त्यारे पद्मस्थ राजाए तेनुं कारण पूछता श्रीमदरस्वामी दिव्यध्वनिथी एवं वृत्तांत कही दर्शाव्य, के म पहेलां ने वृत्तात तने कहतु ते सांभळीने कंदकूदना वे बधुओ मुनि पासे गया, त्यारे ते ध्यानस्थ हता तेओ मूनिनी पासे एक मनूप्यने सर्व वृत्तांत कही पाछा आव्या आ सर्व हकीकत - प्रात. काळे कुंदकूद मुनिने जाणवामा आवी. तेने न्यारे विशेष आनद प्राप्त थयो अने मारु दर्शन करवा वगरण न करवुं एवो दृढनिश्चय करी तेणे ध्यान धर्यु अने ध्यानमा मने नमस्कार कर्या