Book Title: Kundkundacharya Charitra
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 52
________________ ४६ . . दिगंबर जैन. अंथमा छे. हमणा जे पृ-बी ( Globe ) देवाय छे तना करता ते अधिक मे टु छे एत्रु जैन शान्यतुं मत छ, अर्थात् उतर अने दक्षिगे घगोल प्रदेश छे. आज जे पृथ्वीपर आपणे वपीए छोए ते पृ-भीमाग छे बने रुपीए वे आनी सरखी छे एन मानत्रु जोहए. हनणा जे समुद्र आपणी पृथ्वीने वाटत यालो छे ते लवग समुद्रनो थोडो भाग फक्त खाडीरुपेज छे. उत्तर ध्रुव भने दक्षिण ध्रुव पासे आगळनो प्रदेश हजारो योजन लायो छे, त्या जबाने चुद्धिमत्ता अने कल्पना शक्तिमा उत्तम उंड अने अमेरिका सरखा देशो प्रयत्न करी रह्या छे, अने ते प्रयत्न सतत् थशे अने त्यांना हवा पाणीनी परस्थिति अनुकूल थशे तो खात्रीथी ते बाजुनो पुष्कळ प्रदेश प्रार थशे, अने तेवोज जैन धर्मनो मत छे. भस्नु. विदह क्षेत्रमाथी श्री कुदकुंद स्वामी आव्या पछी तेनने दर्शने तेनो राजा, तेना मातपिताकुदलमा अने कुदशेठ, अनेक श्रावक श्राविका अने हजारो लोको आव्या. पछी तेमणे विदेह गमननु वृत्तांत सर्वने कही धर्मोपदेश कर्यो. आ वृत्तांत जाणी तेओने संतोष थयो. पछी ते नगरना बाह्य प्रदेशमा रही जैन धर्मनो अने मुनि धर्मनो बोध श्रावक तथा अन्य लोकने आप्यो तथा केटलाक श्रीमंतोए. संसार असार छे एम जाणी तेमनी

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